Thursday, February 11, 2016

✒✔       🎆 भवंभवानी सहितं नमामि🎆

आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: ,प्राणा:शरीरं गृहं पूजा ते विषयोप भोग रचना , निद्रा समाधिस्थिति: ।
संचार: पदयो: प्रदक्षिण विधि: , स्तोत्रानि सर्वा गिरो , यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधानाम ।।
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...........हे शम्भो / मेरी आत्मा तुम हो , बुद्धि माता पार्वती जी हैं ,प्राण आपके गण हैं , शरीर आपका मंदिर है, सम्पूर्ण विषय- भोग की रचना आप की पूजा है , निद्रा समाधि है , मेरा चलना -फिरना आप की परिक्रमा है तथा सम्पूर्ण शब्द आप के स्तोत्र हैं , इस प्रकार जो जो भी मैं कर्म करता हूँ, वह सब आप की आराधना ही है।

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