Thursday, February 11, 2016

: कल्पितमासनं हिमजलै: च दिव्याम्बरं
नाना रत्न विभूशोत्न मृग मादा मो दान्कितं चंदनम!
जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृकल्पितं गृह्याताम !!१!!
हे दयानिधे! हे पशुपति! हे देव! यह रत्न निर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्नावलि विभूषित दिव्य वस्त्र, कस्तूरिकागन्धसमन्वित चन्दन, जूही, चम्पा और मानसिक [ पूजोपहार] ग्रहण कीजिये!
सौवर्णे नव रत्न खण्ड रचिते पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भा फलं पानकम !
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कपूर्र खण्डोज्जवलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभु स्वीकुरु!!२!!
मैंने नवीन रत्न खण्डो से सुवर्ण पात्र में घृत यक्त खीर, दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन, कदलीफल, शरबत, अनेकों शाक, कप्पुर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल और ताम्बूल–ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं, प्रभु ! कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये !
छत्रं चामरयोर्यगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणा भेरि मृदंग काहल कला गीतं च नृत्यं तथा
साष्टांग प्रणति स्तुतिर्बहुविधा ह्येत्समस्तं मया
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहान प्रभु!!३!!
छात्र, दो चंवर, पंखा, निर्मल दर्पण, वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभीके वाद्य, गान और नृत्य, साष्टांग प्रणाम स्तुति—ये सब मैं संकल्प से ही आपको समर्पण करता हूँ, प्रभु! मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये!
आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थिति:!
संचार: पदयो: प्रदक्षिणविधि : स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम !!४!!
हे शम्भो! मेरी आत्मा आप हैं, बुद्धि पार्वती जी हैं, प्राण आपके गण हैं, शरीर आपका मंदिर है, सम्पूर्ण विषय-भोग की रचना आपकी पूजा है, निद्रा समाधि है, मेरा चलना फिरना आपकी परिक्रमा है तथा सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं, इस प्रकार मैं जो-जो भी मर्म करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है!
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो!!५!!
प्रभु! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र, अथवा मनसे जो भी अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको आप क्षमा कीजिये! हे करुणासागर श्रीमहादेव शंकर! आपकी जय हो!
——————————————————–

No comments:

Post a Comment