Wednesday, January 25, 2017

धर्मार्थ वार्ता

[1/13, 08:32] ‪+91 88897 47545‬: *ख़ुशी पैसों पर नहीं, परिस्थितियों पर निर्भर करती है......*
*एक बच्चा गुब्बारा ख़रीद कर ख़ुश था*
*तो दूसरा....*
*उसे बेच कर..!!!*

🌹🌹सुप्रभात🌹🌹
[1/13, 08:50] ओमीश: *रामकृष्ण परमहंस* और *स्वामी विवेकानंद* के बीच एक दुर्लभ संवाद

*स्वामी विवेकानंद*     :  मैं समय नहीं निकाल पाता. जीवन आप-धापी से भर गया है।

*रामकृष्ण परमहंस*   :  गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती है, लेकिन उत्पादकता आजाद करती है।

*स्वामी विवेकानंद*     :  आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?   

*रामकृष्ण परमहंस*   :  जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो, यह इसे जटिल बना देता है, जीवन को सिर्फ जिओ।

*स्वामी विवेकानंद*    :  फिर हम हमेशा दुखी क्यों रहते हैं?   

*रामकृष्ण परमहंस*   :  परेशान होना तुम्हारी आदत बन गयी है, इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते।

*स्वामी विवेकानंद*     :  अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?

*रामकृष्ण परमहंस*   :  हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है, सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है, अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते है, इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता।

*स्वामी विवेकानंद*    :  आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?

*रामकृष्ण परमहंस*   :  हां. हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है, पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है।

*स्वामी विवेकानंद*    :  समस्याओं से घिरे रहने के कारण, हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं...

*रामकृष्ण परमहंस*   :  अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो, अपने भीतर झांको, आखें दृष्टि देती है, हृदय राह दिखाता है।

*स्वामी विवेकानंद*     :  क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?

*रामकृष्ण परमहंस*   :  सफलता वह पैमाना है जो दूसरे लोग तय करते है, संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो।

*स्वामी विवेकानंद*    :  कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

*रामकृष्ण परमहंस*  :  हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है. जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो, जो हासिल न हो सका उसे नही।

*स्वामी विवेकानंद*     :  लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?

*रामकृष्ण परमहंस*   :  जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, "मैं ही क्यों?" जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, "मैं ही क्यों?"

*स्वामी विवेकानंद*    :  मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूँ?

*रामकृष्ण परमहंस*   :  बिना किसी अफ़सोस के अपने अतीत का सामना करो, पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो, निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो।

*स्वामी विवेकानंद*    :  एक आखिरी सवाल. कभी-कभी मुझे  लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही है।

*रामकृष्ण परमहंस*  :  कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती, अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो, जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है, यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है, मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है।🙏�🙏�🙏�🙏
[1/13, 10:02] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: सर्वेभ्यो श्रीगुरूचरणकमलेभ्यो नमो नम: सुप्रभातम्🌸🙏🌸
विपदी धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रम: ।
यशसि चाभिरूचिव्र्यसनं श्रुतौ प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ॥

आपात्काल मे धेेैर्य , अभ्युदय मे क्षमा , सदन मे वाक्पटुता , युद्ध के समय बहादुरी , यशमे अभिरूचि , ज्ञान का व्यसन ये सब चीजे महापुरूषोंमे नैसर्गिक रूपसे पायी जाती हैं।
[1/13, 12:41] ओमीश: 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ एवं मातृशक्ति प्रेम परिवार की ओर से लोहड़ी व मकर संक्रांति, की आपको एवं आपके पूरे परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ🙏
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
     🌷मकर संक्रांति विवरण🌷
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14 जनवरी को श्लेषा नक्षत्र तथा गर करण तथा प्रीती योग में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
संक्रांति विशेष:--👇👇👇👇
स्थिति:  बैठी, वाहन:  हाथी, वस्त्र :   लाल, पात्र :   लोहा, आयुध:धनुष, पदार्थ : दूध, पुष्प  : केतकी, अवस्था : युवा, आभूषण: मुकुट, फल:: लक्ष्मी, राष्ट्र फल: दुर्भिक्ष
इस वर्ष कई वर्षों के बाद शुभ योग आये हैं अतः गंगा स्नान व् दान पुण्य बल पूर्वक करें।
📝दान सामग्री:--
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तिल, कम्बल, दूध, तिल की गाय, लोहे के पात्र, मुकुट, खिचड़ी, खड़ाहूँ, लाल वस्त्र, स्वेत पुष्प।🙏

अपने हेल्थ, व परिवार की खुशियों के लिए अपनी राशि के अनुसार करें ये दान👇👇
1- मेष राश‌ि वालों को त‌िल, गुड़ का दान करना चाह‌िए।
2- वृष राश‌ि वालों के ल‌िए त‌िल और उनी वस्‍त्र का दान करना शुभ रहेगा।
3- म‌िथुन राश‌ि वाले मकर संक्रात‌ि के द‌िन सफेद त‌िल और हरे रंग के वस्‍त्र का दान करें।
4- कर्क राश‌ि वालों के ल‌िए साबूदाना, त‌िल और ऊनी कपड़े दान करना शुभ रहेगा।
5- स‌िंह राश‌ि वाले त‌िल, गुड़ या कंबल का दान करें।
6- कन्या राश‌ि वालों को उड़द, त‌िल या तेल का दान करना चाह‌िए।
7- तुला राश‌ि वाले रुई, राई, तेल और त‌िल का दान करें।
8- वृश्च‌िक राश‌ि वालों को त‌िल, ख‌िचड़ी और चावल का दान करें।
9- धनु राश‌ि वाले त‌िल या चने की दाल का दान कर सकते हैं।
10- मकर राश‌ि वाले तेल, त‌िल या कंबल का दान करें।
11- कुंभ राश‌ि वालों को कंघी, तेल, त‌िल या काले वस्‍त्र दान करना चाह‌िए।
12- मीन राश‌ि वाले व्यक्त‌ि चना, साबूदाना, त‌िल और कंबल में से जो चाहें अपनी इच्छा से दान कर सकते हैं।🙏
भारत देश में मकर संक्रांति 14, जनवरी को मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने घरों पर मन्दिरों में जाकर भगवान की पूजा करते है।
लोहड़ी 👇👇👇👇
लोहड़ी का त्यौहार नए साल की शुरूआत में फसल की कटाई और बुवाई के उपलक्ष में मनाया जाता है।
👆।। इति मङ्गलम्।।👆
       आचार्य ओमीश ✍
    +919699662944
[1/13, 14:33] पं अनिल ब: राम नाम मनि दीप धरू जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरौ जौ चाहसि उजियार।।

बहुत पुरानी बात है वैतरणी नदी के किनारे एक नगर बसा था|

उस नगर में बहुत अच्छे प्रशासन के लिए एक नियम था| वहाँ के लोग हर साल किसी एक व्यक्ति को राजा बनाते थे ।

वह राजा निश्चिंत हो कर सम्पूर्ण वर्ष समस्त प्रकार के भोग और विलास का आनंद लेता और जब साल समाप्त होता तब नगर में एक नया राजा बना दिया जाता था और पुराने राजा को नदी के दूसरी ओर जो जंगल था उसमे छोड़ अाते थे और इस प्रकार पुराना राजा जंगल के हिंसक जानवरों का शिकार बन जाता था|

इस प्रकार यह व्यवस्था अनेक वर्षों तक चलती रही। फिर एक दिन ऐसा आया जब एक ऐसे व्यक्ति को राजा बनाया गया जो बड़ा सूझबूझ वाला बुद्धिमान, समझदार तथा ईश्वर का भक्त था|
सांसारिक भोग विलास में उसे कोई भी रूचि नहीं थी और वह सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत में विश्वास रखता था। राजा बनते ही उसने नदी के पार जो जंगल था उसे कटवा दिया और फिर जंगल के सभी जंगली जानवर वहाँ से डर कर भाग गए |

धीरे धीरे राजा ने वहाँ एक भव्य खुबसुरत महल बनवा लिया |वहां एक नया नगर बना और बसा दिया और जीवन के लिए आवश्यक समस्त साजो सामान वहाँ भेज दिया |

साल के अंत मे नगर के रिवाज अनुसार राजा को नदी के पार भेजा गया तो राजा खुशी खुशी आराम से अपने बनाए हुए नगर में चला गया।

यह कहानी एक उदाहरण. है

सत्य यह है कि राजा जीव आत्मा है जिसे अनेकानेक जन्मों के बाद मनुष्य का जन्म मिलता है किन्तु इस बहुमूल्य जीवन को वह भोगविलास में समाप्त कर देता है और अंत समय उसे जंगल रूपी चौरासी मे जाना पड़ता है |

समझदार राजा वह है जो भोग विलास के स्थान पर अपना नाता ब्रह्म से जोड़ लेता है जिसने इस संसार में रह कर स्मरण और भजन करते हुए सांसारिक पदार्थों से अपनी संलिप्ता से मुक्ति प्राप्त कर ली है ।, इस प्रकार वह अपना परलोक भी सुधर लेता है और अंत समय उजला मुख लेकर अपने असली घर वापिस चला जाता है।
जय महाँकाल🙏🏼🌹🙏🏼
[1/13, 15:47] ‪+91 97545 35118‬: किसी स्त्री का पति, चोर, मद्यमांस का सेवन करने वाला और कलियुग के सभी विशेषण से परिपूर्ण हो

तो वह स्त्री क्या 84 लाख योनियो में श्रेष्ठ मनुष्य योनी को सफल और भगवद धाम जाने के लिये किसी
दिव्यसंत को  गुरु बना सकती है

यहाँ पर पति ही गुरु होता ये नियम काम नहीं करेगा
[1/13, 18:03] प सुभम्: 👁 👁 
          
    *आँखें खोलकर*
         *संसार को जानने का*
                *अवसर मिलता है*

      *और आंखें बन्द करके*
         *खुद को जानने का..!!!*


  *जय हो...*🙏
[1/13, 18:07] ‪+91 96916 06692‬: अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||

कौन कहता है भगवान आते नहीं, तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं |

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||

कौन कहता है भगवान खाते नहीं, बेर शबरी के जैसे खिलते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहता है भगवान सोते नहीं, माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहता है भगवान नाचते नहीं, तुम गोपी के जैसे नचाते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहता है भगवान नचाते नहीं, गोपियों की तरह तुम नाचते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
[1/13, 22:04] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: धर्मार्थ परिवार में उपस्थित आप सभी विद्वत भू देवों एवं विदुषी देवियों को सादर नमन।
बालक थोड़ा विलंब से उपस्थित हुआ जिसके लिये आप सबसे क्षमा प्रार्थी है।
सबसे पहले आज इस परिवार की नवीन शाखा के रूप में आये हुये अतिथि देवों,आदरणीय सुनील तिवारी जी एवं आदरणीय दीपक तिवारी जी का हृदयाभिनन्दन करता हूं।
             सुस्वागतम्
                      😊
                🌸🙏🌸
साथ ही आप सब को मकर संक्रांति की ढेरसारी शुभकामनाएं!!!...
"अपने दिल, दिमाग और आत्मा में महान लक्ष्य रखिये और उनको अपनी योग्यता, प्रतिभा और छुपी हुई शक्ति से नियंत्रित करते हुए आकाश की ऊंचाई में उडती एक ऐसी पतंग की तरह से शुरू कीजिये जो कि नकारात्मक शक्तियों रुपी उन पतंगों को काटे जो कि आपको नीचा दिखाने के लिए आपकी पतंग को काटना चाहती हैं और फिर उस ऊंचाई पर उतनी देर रहने का प्रबंध करिए जितनी देर आप चाहते हैं"!!!
मैं महसूस करता हूँ कि एक सच्चा और सफल विजेता वही होता है। जो महान लक्ष्य, महान दूरदर्शिता और महान कल्पनाशक्ति को एक नियंत्रित मीठा बोलने वाली जुबान और अच्छे प्रेमपूर्ण व्यवहार के साथ रखता है!!!...
"तिल गुड खाइये, मीठा-मीठा बोलिए"!😊
      🌹🙏🌹
[1/13, 22:15] P Alok Ji: संक्रांति का अर्थ

'संक्रान्ति' का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना, अत: वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश करता है, संक्रान्ति की संज्ञा से विख्यात है।[6] राशियाँ बारह हैं, यथा मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक , धनु, मकर, कुम्भ, मीन। मलमास पड़ जाने पर भी वर्ष में केवल 12 राशियाँ होती हैं। प्रत्येक संक्रान्ति पवित्र दिन के रूप में ग्राह्य है। मत्स्यपुराण [7]ने संक्रान्ति व्रत का वर्णन किया है। एक दिन पूर्व व्यक्ति (नारी या पुरुष) को केवल एक बार मध्याह्न में भोजन करना चाहिए और संक्रान्ति के दिन दाँतों को स्वच्छ करके तिल युक्त जल से स्नान करना चाहिए। व्यक्ति को चाहिए कि वह किसी संयमी ब्राह्मण गृहस्थ को भोजन सामग्रियों से युक्त तीन पात्र तथा एक गाय यम, रुद्र एवं धर्म के नाम पर दे और चार श्लोकों को पढ़े, जिनमें से एक यह है- 'यथा भेदं' न पश्यामि शिवविष्ण्वर्कपद्मजान्। तथा ममास्तु विश्वात्मा शंकर:शंकर: सदा।।'[8], अर्थात् 'मैं शिव एवं विष्णु तथा सूर्य एवं ब्रह्मा में अन्तर नहीं करता, वह शंकर, जो विश्वात्मा है, सदा कल्याण करने वाला है। दूसरे शंकर शब्द का अर्थ है- शं कल्याणं करोति। यदि हो सके तो व्यक्ति को चाहिए कि वह ब्राह्मण को आभूषणों, पर्यंक, स्वर्णपात्रों (दो) का दान करे। यदि वह दरिद्र हो तो ब्राह्मण को केवल फल दे। इसके उपरान्त उसे तैल-विहीन भोजन करना चाहिए और यथा शक्ति अन्य लोगों को भोजन देना चाहिए। स्त्रियों को भी यह व्रत करना चाहिए। संक्रान्ति, ग्रहण, अमावस्या एवं पूर्णिमा पर गंगा स्नान महापुण्यदायक माना गया है और ऐसा करने पर व्यक्ति ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है।[9] प्रत्येक संक्रान्ति पर सामान्य जल (गर्म नहीं किया हुआ) से स्नान करना नित्यकर्म कहा जाता है, जैसा कि देवीपुराण[10]) में घोषित है- 'जो व्यक्ति संक्रान्ति के पवित्र दिन पर स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक रोगी एवं निर्धन रहेगा; संक्रान्ति पर जो भी देवों को हव्य एवं पितरों को कव्य दिया जाता है, वह सूर्य द्वारा भविष्य के जन्मों में लौटा दिया जाता है।[2]
[1/14, 00:39] ओमीश: जानिए क्या है त्रिपिंडी श्राध्द

त्रिपिंडी काम्य श्राध्द है। लगातार तीन वर्ष तक जिनका श्राध्द न किया गया हो, उनको प्रेतत्व प्राप्त होता है। अमावस्या पितरों की तिथि है। इस दिन त्रिपिंडी श्राध्द करें।

पृथ्वीपर वास करने वाले पिशाच तमोगुमी होते है। अंतरिक्ष में वास करने वाले पिशाच रजोगुणी एवं वायुमंडल पर वास करने वाले पिशाच सत्तोगुणी होते है। इन तीनों प्रकार की प्रेतयोनियो की पिशाच पीड़ा के निवारण हेतु त्रिपिंडी श्राध्द किया जाता है।

त्रिपिंडी श्राध्द का आरम्भ करने से पूर्व किसी पवित्र नदी या तीर्थ स्थात में शरीर शुध्दि के लिये प्रायश्चित के तौर पर क्षौर कर्म कराने का विधान है।

त्रिपिंडी श्राध्द में ब्रह्मा, विष्णु और महेश इनकी प्रतिमाएं तैयार करवाकर उनकी प्राण-प्रतिष्ठापुर्वक पूजन किया जाता है। ब्राह्मण से इन तीनों देवताओं के लिये मंत्रों का जाप करवाया जाता है। हमें सतानेवाला, परेशान करने वाला पिशाचयोनि प्राप्त जो जीवात्मा है, उसका नाम एवं गोत्र हमें ज्ञात नहीं होने से उसके लिये अनाधिष्ट गोत्र शब्द का प्रयोग किया जाता है। प्रेतयोनि प्राप्त उस जीवात्मा को सम्बोधित करते हुए यह श्राध्द किया जाता है।

जौ, तिल, चावल के आटे के तीन पिंड तैयार किये जाते हैं। जौ का पिंड समंत्रक एवं सात्विक होता है, वासना के साथ प्रेतयोनि में गये जीवात्मा को यह पिंड दिया जाता है। चावल के आटे से बना पिंड रजोगुणी प्रेतयोनी में गए प्रेतात्माओं को दिया जाता है। इन तीनों पिंडो का पूजन करके अध्र्य देकर देवाताओं को अर्पण किये जाते हैं।
कुलवंश को पीड़ा देने वाली प्रेतयोनि को प्राप्त जीवात्माओं को इस श्राध्द कर्म से तृप्ति हो और उनको सदगति प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना के साथ यह कर्म किया जाता है।

सोना, चांदी, तांबा, गाय, काले तिल, उड़द, छत्र-खड़ाऊ, कमंडल में चीजें प्रत्यक्ष रुप में या उनकी कीमत के रुप में नकद रकम दान देकर अध्र्य दान करने के पश्चात ब्राह्मण एवं सौभाग्यीशाली स्त्री को भोजन करवाने के पश्चात यह श्राध्द कर्म पूर्ण होता है।

स्थल निर्णय:

यह विधि किसी खास क्षेत्र में ही की जाती है ऐसी किवदंति खास कारणों से प्रचारित की गई है किन्तु धर्म सिन्धु ग्रंथ के पेज न.- 222 में ''उद्धृत नारायण बलि प्रकरण निर्णयÓÓ में स्पष्ट है कि यह विधि किसी भी देवता के मंदिर में किसी भी नदी के तट पर कराई जा सकती है। अत: जहां कहीं भी योग्य पात्र तथा योग्य आचार्य, इस विधि के ज्ञाता हों, इस कर्म को कराया जा सकता है।
[1/14, 09:02] ‪+91 98896 25094‬: @*मकर संक्रांति का महत्व *@

'तमसो मा ज्योतिर्गमय'
हे सूर्य! हमें भी अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो...

हिंदू धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं।

सूर्य पर आधारित हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्व माना गया है। वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है। होली, दीपावली, दुर्गोत्सव, शिवरात्रि और अन्य कई त्योहार जहाँ विशेष कथा पर आधारित हैं, वहीं मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है। मकर संक्रांति का महत्व हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय।

सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है।

इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि 21 मार्च को धरती सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है तो इस मान ने नववर्ष तभी मनाया जाना चाहिए। इसी 21 मार्च के आसपास ही विक्रम संवत का नववर्ष शुरू होता है और गुड़ी पड़वा मनाया जाता है, किंतु 14 जनवरी ऐसा दिन है, जबकि धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।

मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है। सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है। पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ भी सकता है। इसीलिए मृत्यु हो तो प्रकाश में हो ताकि साफ-साफ दिखाई दे कि हमारी गति और स्थिति क्या है। क्या हम इसमें सुधार कर सकते हैं? क्या हमारे लिए उपयुक्त चयन का मौका है?

स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है।

आप सभी आदरणीय अग्रजों को मकर संक्रांति की ढेर सारी शुभकामनाये 🙏🙏🙏🙏
[1/14, 09:26] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: ☄☄☄☄☄☄☄☄☄☄
*जिसका जैसा “चरित्र” होता है*
         _उसका वैसा ही “मित्र” होता है_
        *”शुद्धता” होती है “विचारों” में*
         “_आदमी” कब “पवित्र” होता है_
        *फूलो में भी कीड़े पाये जाते हैं..,*
         _पत्थरों में भी हीरे पाये जाते हैं..,_
                 *बुराई को छोड़कर*
             *अच्छाई देखिये तो सही..,*
        _नर में भी नारायण पाये जाते हैं..!!_
             *मैं आप लोगो के साथ हूँ*
                  *ये मेरा भाग्य है।*
        _पर आप सभी लोग मेरे साथ है_
                 _यह मेरा सौभाग्य है_…

        🌹🙏सुप्रभात🙏🌹
[1/14, 09:29] पं ऊषा जी: मकर संक्रांति रवि के उत्तरायण को हुआ करती,
इसी से देव दिन की भी यहाँ गणना हुआ करती।
महा गायत्री के शुभ मन्त्र का ॐकार है यह दिन,
शुभद रष्मिश्रियों की दीप्त आभा से भरा यह क्षण।
चरक सुश्रुत के आयुर्वेद में पावन बड़ा यह दिन,
सभी अध्यात्म ओ दर्शन में भी है गूढ़ यह शुभ क्षण।
पुनः तिल-गुड़ की जैसे मिल के समरस भाव लाना है,
सभी जन एक हों ऐसा ही भारत को बनाना है।
सभी भारत की संतानें हैं भाई बंधु परिजन से,
सभी नीरोग, सुख समृद्धियुत हों दिव्य तन मन से।
पुनः संक्रांति पर आओ कि हम सब एक हो जाएँ,
न भाषा, जाति, पंथों के भंवर में आज खो जाएँ,
गीले शिकवे मिटाकर स्नेह के बंधन में बंध जाएँ,
सभी ऋषिपुत्र आओ स्वर्ग धरती पर ही ले आएं ।
---डॉ. विनोद कुमार शर्मा
[1/14, 09:29] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *माघे निमग्ना: सलिले सुशीते*
             *विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।।*

📝 *भावार्थ*👉🏾माघमासकी ऐसी विशेषता है कि इसमें जहाँ-कहीं भी जल हो, वह गंगाजलके समान होता है। इस मास में शीतल जलके भीतर डुबकी लगानेवाले मनुष्य पापमुक्त हो जाते हैं।
💐👏🏾 *उत्तरायणीपर्व मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ–🤗🤗🤗
🐾🐾🍂आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी🍂🐾🐾
[1/14, 10:28] ‪+91 88897 47545‬: *मकर सक्रांति*,* मकर सक्रांति *

इस बार मकर संक्रांति सर्वार्थ सिद्धि योग व अमृत सिद्घि योग में मनेगी।
14 जनवरी को सुबह 7:38I बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा।
इस संक्रांति का नाम मिश्र  है। जो पशु-पक्षी वर्ग को सुख देने वाली है।

नक्षत्र के आधार पर संक्रांति का नाम राजसी है
जो दलित व पिछड़े वर्गों के लिए हितकारी है। रात्रि 4 प्रहर व्यापिनी होने से कृषी वर्ग के लिए कष्टदायक है। गरकरण में संक्रांति का प्रवेश होने से मध्यम फलदायक है।

संक्रांति का वाहन हाथी है
तथा
उपवाहन गधा है।
जो जनता के लिए सुख समृद्धिकारक व लक्ष्मीकारक है। यह
पश्चिम दिशा की ओर जा रही है और
वायव्य कोण में दृष्टि है।

लाल वस्त्र पहने हैं तथा
धनुष आयुध ले रखा है।
हाथ में लोहे का पात्र है।
दूध का सेवन कर रही है।
शरीर पर गोरोचन का लेप है।
बिल्वपुष्प का मुकुट है। सफेद कंचुकी पहन रखी है। बैठी अवस्था में है और
15 मुहूर्त वाली है।
संक्रांति का पुण्यकाल: शनिवार को
प्रात: 7:40 बजे से 15:40 बजे तक।

शुभ कार्य होंगे प्रारंभ ।
[1/14, 10:45] व्यास u p: 🌞 *ऐ सूर्य देव मेरे अपनो को*
               *यह पैगाम देना;*
*खुशियों का दिन*
               *हँसी की शाम *देना;*
*जब कोई पढे प्यार से*
              *मेरे इस पैगाम को*
*तो उन को चेहरे पर*
              *प्यारी सी मुस्कान देना।*
🌹🍁🙏 *सुप्रभात* 🙏🍁🌹
🌻🌺😊🙏🙏🙏😊🌺🌻
आप को सहपरिवार  मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं🙏
[1/14, 11:01] पं संदीप: माघ मकर गतिरवि जब होई. तीरथ पतिहआव सब कोई. देव दनुज नर किन्नर श्रेणी. सादर मज्जहि सकलत्रिबेनी. मकर संक्रांति पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ।
[1/14, 11:09] ओमीश: श्री मात्रे नमः
सादरं प्रणामकुसुमानि!
🙏🔔💥💐🍟महासंक्रन्तिपर्वणः सपरिवारं हार्दिक्यः शुभाशयाः 🍕आचार्य ओमीशः:
👇👇👇👇
भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते।
तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये।।

मकरसङ्क्रान्तिपर्वणः सर्वेभ्यः शुभाशयाः।💐
[1/14, 11:26] ‪+91 94751 18880‬: धर्मादिपुरुषार्थचतुष्टये कामस्यावश्यकता मोक्षप्राप्ते प्रतिबन्धकस्वरूपा।एवं स्यात् कथं धर्मादिपुरुषार्थचतुष्टये कामस्य अन्तर्भावो क्रियते।🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[1/14, 11:57] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: बहुत बहुत बधाई आप सभी गुरूजनों को🌸🙏🌸😊
सूरज ने मकर राशि में दाखिल होकर
मकर संक्रांति के आने की दी खबर
ईंटों के शहर में
आज बहुत याद आया अपना घर.
गन्ने के रस के उबाल से फैलती हर तरफ
सोंधी-सोंधी वो गुड की वो महँक
कूटे जाते हुए तिल का वो संगीत
साथ देते सुरीले कंठों का वो सुरीला गीत.
गंगा स्नान और खिचड़ी का वो स्वाद,
रंगीन पतंगों से भरा आकाश
जोश भरी "बधाईयों" की गूँज
सर्दियों को अलविदा कहने की धूम.
अब आप सब का साथ ही त्यौहार जैसा लगता है
सबके आँखों की चमक दीवाली जैसी
और प्यार के रंगों में होली दिखती है.
धर्मार्थ के गुरूजनों की मिठापन जब हर तरफ घुलता है
वही दिन मकर-संक्रांति का होता है!
वही दिन मकर-संक्रांति का होता है!!  🎁🎁🎁🎁🎁🎁🎁🎁🎁
[1/14, 12:56] पं सत्यशु: *माघे मासे महादेव:*
*योदास्यति घृतकम्बलम ।*
*स भुक्त्वा सकलानभोगान*
*अन्तेमोक्षं प्राप्यति ॥*

*🌞🌞🌞सूर्य देव के उत्तरायण होने पर भारतवर्ष के उजाले में वृद्धि के प्रतीक पर्व "मकर संक्रान्ति" पर आपका जीवन भी प्रकाशमान हों, ऐसी शुभेच्छा के साथ  मकर संक्रान्ति पर्व की हार्दिक मंगलकामनाऐं ।🌞🌞🙏*      ☘☘कैलाश ☘☘
[1/14, 13:19] पं अर्चना जी: 💐💐🙏💐💐

माघ मकर गति रवि जब होई।
तीरथ पतिहिं आव सब कोई॥
देव दनुज किन्नर नर श्रेनी।
सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी॥

खिचड़ी लोहड़ी पोंगल पर्व की शुभकामनाये

🌷🙏 ॐ शिवः हरि🙏🌷
[1/14, 17:34] ‪+91 96916 06692‬: आचार्य बीरेन्द्र दैवज्ञ ,                                                        जन्म पत्री, मुहूर्त्त , वास्तु विशेषज्ञ                                                                                                                    मेष      

सूर्य के मकर राशि में गोचर करने से मेष राशि के जातकों का व्यवसायिक और सामाजिक क्षेत्र में मान-सम्मान बढ़ेगा। अपार शक्ति का अनुभव करने से हालातों पर आपका नियंत्रण रहेगा और स्वभाविक रूप से आप दूसरों पर हावी रहेंगे। हालांकि इस दौरान पारिवारिक जीवन में थोड़ा तनाव रहेगा। कार्य स्थल पर आपको शर्मिंदगी या अपमान का सामना करना पड़ सकता है। ऑफिस में आरोप लगने से आपकी छवि को नुकसान होगा। 26 जनवरी के बाद हालात बदलेंगे और यह समय आपके पक्ष में रहेगा। ज्ञान और बुद्धिमानी से अपनी समस्याओं का हल निकालेंगे और उनका सामना करेंगे।

उपाय: ज़रुरतमंद लोगों को शनिवार को दवाई बांटे।

वृषभ

सूर्य के मकर राशि में होने वाले गोचर के परिणास्वरूप वृषभ राशि के जातक अपने लक्ष्यों का निर्धारण कर उन्हें प्राप्त करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेंगे। व्यक्तिगत और व्यवसायिक जीवन से जुड़े फैसले स्वतंत्र होकर लेने की कोशिश करें। सरकारी क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को अचानक लाभ मिल सकता है। हालांकि सूर्य का यह गोचर आपके बड़े भाई-बहनों के लिए लाभकारी नहीं रहने वाला है। गोचर के दौरान पिता की सेहत का ख्याल रखने की खास जरुरत है। लंबी दूरी की यात्रा की संभावना भी बन रही है। हालात को समझें और शांति व सद्भाव बनाए रखें।

उपाय: श्वेतार्क (आकड़ा) का पौधा लगाएं।

मिथुन

सूर्य के मकर राशि में गोचर करने के परिणामस्वरूप मिथुन राशि के जातकों की ऊर्जा और मनोबल में कमी आएगी। कोई भी कार्य करने से पहले अच्छे से सोचें और फिर आगे बढ़ें। विवाद होने की भी संभावना बन रही है। पिता की सेहत को लेकर चिंता बनी रहेगी। अगर आप पुरानी उधारी चुकाने के बारे में सोच रहे हैं, तो यह समय आपके लिए लाभकारी रहने वाला है।

उपाय: रोजाना उगते हुए लाल सूर्य के नग्न आंखों से दर्शन करें।

कर्क

मकर राशि में सूर्य के गोचर की वजह से कर्क राशि के जातकों के आचरण और व्यवहार में कड़वाहट और चिड़चिड़ापन बढ़ेगा। जीवन साथी के व्यवहार में अहंकार और अशिष्टता देखने को मिलेगी। अहंकार की वजह से टकराव बढ़ेगा और आपका दांपत्य जीवन इससे प्रभावित होगा। इसके अलावा जीवन साथी की सेहत भी खराब रह सकती है। आपके खर्चों में बढ़ोतरी होगी हालांकि कार्य स्थल पर पदोन्नति मिलने की संभावना भी है।

उपाय: नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करें।

सिंह

सिंह राशि के जातक अपनी सेहत का खास ख्याल रखें। क्योंकि सूर्य के मकर राशि में होने वाले गोचर की वजह से सिंह राशि के लोगों के स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है इसलिए इस समय में बुखार और सिरदर्द को हल्के में नहीं लें। आपके निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है। इस दौरान आलस्य का भाव रहेगा और गुस्सा ज्यादा करेंगे। पेशेवर ज़िदंगी में कामयाबी पाने के लिए कड़ी मेहनत और सार्थक प्रयास करने होंगे। हालांकि आप विरोधियों पर हावी रहेंगे और उन पर बढ़त बनाए रखेंगे। आने वाली हर चुनौती का डटकर सामना करें आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे।

उपाय: नियमित रूप से सूर्य मंत्र का जाप करें।

कन्या

कन्या राशि के वे जातक जो उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने के इच्छुक हैं। सूर्य के मकर राशि में होने वाले गोचर के प्रभाव से उनकी यह मनोकामना पूरी होगी। हालांकि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में दिक्कतें और उतार-चढ़ाव आ सकते हैं। कार्य स्थल पर वरिष्ठ अधिकारियों के साथ आपके रिश्ते मधुर होंगे। करियर के मोर्चे पर लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में संघर्ष करना पड़ सकता है।

उपाय: नियमित रूप से भगवान शिव की आराधना करें।

तुला

सूर्य के मकर राशि में संचरण करने की वजह से तुला राशि के जातकों के पारिवारिक जीवन में अशांति रहेगी। क्रोध और बेसब्र स्वभाव की वजह से प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ में कुछ मुद्दे और मतभेद उभर सकते हैं। घर के सौंदर्यीकरण पर खर्च करने की योजना बनाएंगे। आपके बड़े भाई-बहनों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। वरिष्ठ अधिकारी के साथ हुई ग़लतफहमी को दूर करने की कोशिश करेंगे। क्रोध पर नियंत्रण रखें और कुछ भी करने से पहले सोचें।

उपाय: बैल को गेहूं खिलाएं।

वृश्चिक

वृश्चिक राशि के जातक अति आत्म विश्वासी होने से बचें वरना ये अति आत्म विश्वास आपके लिए घातक साबित हो सकता है। ऑफिस में सहकर्मियों व छोटे भाई-बहनों के साथ बेवजह विवाद हो सकता है। छोटी दूरी की यात्रा पर जाने की योजना बनाएंगे। आपके अंदर उत्साह व ऊर्जा बरकरार रहेगी और आप हर चुनौती का सामना धैर्य के साथ करेंगे। नई नौकरी की संभावना बन रही है। भाग्य हर समय आपका साथ देगा।

उपाय: सूर्य देव को नियमित रूप से जल चढ़ाएं।

धनु

सूर्य का मकर राशि में होने वाला गोचर धनु राशि के जातकों के लिए लाभकारी रहेगा। इस दौरान आपको आर्थिक फायदे होंगे। आपके बुरे व्यवहार से दूसरों को तकलीफ पहुंचेगी और इस वजह से आपके रिश्ते प्रभावित होंगे। सरकारी या अन्य किसी प्राधिकरण से आर्थिक लाभ मिलने की संभावना नज़र आ रही है। आपके पिता को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। जो लोग घर से दूर रह रहे हैं वे परिजनों से मिलने की योजना बना सकते हैं। सूर्य के इस गोचर के दौरान सेहत का ख्याल रखें। क्योंकि नेत्र से जुड़ी पीड़ा हो सकती है इसलिए ऐसे किसी भी लक्षण की अनदेखी ना करें।

उपाय: रोजाना भगवान शिव की आराधना करें।

मकर

सूर्य का गोचर आपकी ही राशि में हो रहा है। इस गोचर के फलस्वरूप आपके अंदर चिड़चिड़ापन बढ़ेगा। दूसरों के साथ आपका आचरण अहंकारी प्रवृत्ति का होगा। जीवन साथी के साथ भी रिश्तों पर बुरा असर पड़ सकता है। इसके अलावा आपको सेहत से जुड़ी कोई परेशानी भी हो सकती है। लंबे समय से गोपनीय रही कोई बात या कोई चीज सबके सामने आ जाएगी हालांकि यह आपके जीवन में बड़ा बदलाव लेकर आएगी। कार्य स्थल पर आप एक प्राधिकृत अधिकारी की भांति कार्य करेंगे।

उपाय: शनि देव को नियमित रूप से सरसो का तेल चढ़ाएं।

कुंभ

सूर्य के मकर राशि में गोचर करने के फलस्वरूप कुंभ राशि के जातक लंबी दूरी की यात्रा पर जा सकते हैं। वे लोग जो विदेश यात्रा पर जाने के इच्छुक हैं उनकी यह मनोकामना पूरी होने की संभावना नज़र आ रही है। आपके जीवन साथी की सेहत थोड़ी खराब रह सकती है। व्यवसायिक साझेदारी में नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

उपाय: पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं।

मीन

सूर्य का मकर राशि में गोचर मीन राशि के जातकों के लिए लाभकारी रहने वाला है। आप अन्य लोगों की बातों को छोड़कर खुद पर फोकस करेंगे। कार्य स्थल पर किए गए पूर्व के प्रयासों का फल मिलने से नाम और शोहरत मिलेगी। इस दौरान आपकी मुलाकात कुछ अच्छे लोगों से हो सकती है, जो आपके चरित्र निर्माण में अहम भूमिका अदा करेंगे। वरिष्ठ अधिकारी आपके दृष्टिकोण से असहमत होंगे। किसी भी हालात के बारे में ज्यादा नहीं सोचें वरना ये बातें तनाव और चिंता बढ़ा सकती है। सेहत भी कमजोर रह सकती है, सिरदर्द और बुखार से पीड़ित हो सकते हैं। हालांकि कुल मिलाकर सूर्य का यह गोचर आपके लिए लाभकारी रहने वाला है। सामाजिक क्षेत्र में भी आप सक्रिय रहेंगे। आपकी बेहतर निर्धारण क्षमता की बदौलत आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे।

उपाय: आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें।
[1/14, 22:12] ‪+91 88897 47545‬: *भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते।*
*तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये।।*

मकरसङ्क्रान्तिपर्वणः सर्वेभ्यः शुभाशयाः। उत्तरायणेऽस्मिन् भवदीयजीवनम् उत्तरोत्तरं सर्वप्रश्नोत्तरं समाप्नुयादिति।

जिस प्रकार मकर राशि से सूर्य के तेज की अभिबृद्धि होती है वैसे ही नित्य आपके धन, वैभव, यश, प्रतिष्ठा एवं आरोग्यता को बृद्धि हो।
[1/15, 04:47] पं सत्यशु: महादेवी महालक्ष्मी नमस्ते त्वं विष्णु प्रिये।
शक्तिदायी महालक्ष्मी नमस्ते दुःख भंजनि।।

श्रेया प्राप्ति निमित्ताय महालक्ष्मी नमाम्यहम।
पतितो द्धारीणि देवी नमाम्यहं पुनः पुनः

देवांस्तवा संस्तुवन्ति ही शास्त्राणि च मुर्हुमः।
देवास्त्वां प्रणमन्तिही लक्ष्मीदेवी नमोडस्तुते। ।

नमस्ते महालक्ष्मी नमस्ते भवभंजनी।
भुक्मिुक्ति न लभ्यते महादेवी त्ययि कृपा बिना।।

सुख सौभाग्यं न प्रात्नोति पुत्र लक्ष्मी न विधते।
न तत्पफलं समात्नोति महालक्ष्मी नमाम्यहम।।

देहि सौभाग्यमारोग्य देहिमें परमं सुखम्।
नमस्ते आद्यशक्ति त्वं नमस्ते भीड़भंजनी।।

विधेहि देवी कल्याण विधेहि परमां श्रियम।
विधावन्त यशस्वन्तं लक्ष्मवन्त जन कुरू।।

अचिन्त्य रूप-चरितें सर्वशत्रु विनाशीनी।
नमस्तेतु महामाया सर्व सुख प्रदायिनी।।

नमात्यंह महालक्ष्मी नमाम्यहम सुरेश्रवरी ।
नमात्यहं जगद्धात्री नमाम्यंह परमेश्वरी।।
[1/15, 07:05] ‪+91 98854 71810‬: *🌹सुप्रभातम 🌹*

न सा दीक्षा न सा भिक्षा, न तद्दानं न तत्तपः।

न तद् ध्यानं न तद् मौनं, नम्रता यत्र न विद्यते॥

नम्रता के विना दीक्षा, भिक्षा, दान, तप, ध्यान, और मौन सब निरर्थक है। अतः अपने भीतर नम्रता अवश्य लाएं।
सुप्रभात 💐💐💐💐💐💐💐
प्रणाम समस्त गुरुजनो को🙏👏👏👏👏
[1/15, 08:00] ‪+91 98895 15124‬: .          """" *लक्ष्मी*""""
                   अगर
         मेहनत से मिलती, तो
.               *मजदूरों*
           के पास क्यों नही..?
           बुद्धि से मिलती तो,
       *चालाक और चतुरों*
           के पास क्यों नही..?
          ताकत से मिलती तो,
               *पहलवानों*
         के पास क्यों नही...😊
*लक्ष्मी सिर्फ "पुण्य"  से मिलती है और पुण्य केवल "धर्म" "कर्म" "निःस्वार्थ सेवा"से ही मिलता है*
        *🙏सुप्रभात्🙏*
*🌹आप का अच्छा हो🌹*।
[1/15, 10:43] पं अनिल ब: सर्वेभ्यो नमो नमः🙏🏼🌹🙏🏼सुप्रभातम
जय महाँकाल🍁🌺🍁
कस्य दोषः कुलेनास्ति व्याधिना के न पीडितः ।
व्यसनं के न संप्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ।।१।।

1. इस दुनिया  मे ऐसा किसका घर है जिस पर कोई कलंक नहीं, वह कौन है जो रोग और दुख से मुक्त है.सदा सुख किसको रहता है?

आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् ।
सम्भ्रमः स्नेहमाख्यातिवपुराख्याति भोजनम् ।।२।।

२. मनुष्य के कुल की ख्याति उसके आचरण से होती है, मनुष्य के बोल चल से उसके देश की ख्याति बढ़ती है, मान सम्मान उसके प्रेम को बढ़ता है, एवं उसके शारीर का गठन उसे भोजन से बढ़ता है.

सत्कुले योजयेत्कन्यां पुत्रं विद्यासु योजतेत् ।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ।।३।।

३. लड़की का बयाह अच्छे खानदान मे करना चाहिए. पुत्र  को अचछी शिक्षा देनी चाहिए,  शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए, एवं मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए.

दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः ।
सर्पो दंशति काले तु दुर्जनस्तु पदे पदे ।।४।।

4. एक दुर्जन और एक सर्प मे यह अंतर है की साप तभी डंख मरेगा जब उसकी जान को खतरा हो लेकिन दुर्जन पग पग पर हानि पहुचने की कोशिश करेगा .

एदतर्थं कुलोनानां नृपाः कुर्वन्ति संग्रहम् ।
आदिमध्यावसानेषु न स्यजन्ति च ते नृपम् ।।५।।

५. राजा लोग अपने आस पास अच्छे कुल के लोगो को इसलिए रखते है क्योंकि ऐसे लोग ना आरम्भ मे, ना बीच मे और  ना ही  अंत मे साथ छोड़कर जाते है.

प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः ।
सागरा भेदमिच्छान्ति प्रलयेऽपि न साधवः ।।६।।

६. जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मयारदा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के सामान भयंकर आपत्ति अवं विपत्ति में भी आपनी मर्यादा नहीं बदलते.

मूर्खस्तु परिहर्त्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः ।
भिद्यते वाक्यशूलेन अदृश्यं कण्टकं यथा ।।७।।

७. मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के सामान हैं,जो अपने  धारदार वचनो से वैसे ही हदय को छलनी करता है जैसे अदृश्य काँटा शारीर में घुसकर छलनी करता है .

रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः ।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इवकिशुकाः ।।८।।

८. रूप और यौवन से सम्पन्न तथा कुलीन परिवार में जन्मा लेने पर भी विद्या हीन पुरुष पलाश के फूल के समान है जो सुन्दर तो है लेकिन खुशबु रहित है.

कोकिलानां स्वरो रूपं नारीरूपं पतिव्रतम् ।
विद्यारूपं कुरूपाणांक्षमा रूपं रपस्विनाम् ।।९।।

९. कोयल की सुन्दरता उसके गायन मे है. एक स्त्री की सुन्दरता उसके अपने पिरवार के प्रति समर्पण मे है. एक बदसूरत आदमी की सुन्दरता उसके ज्ञान मे है तथा एक तपस्वी की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता मे है.

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ।।१०।।

१०. कुल की रक्षा के लिए  एक सदस्य का बिलदान दें,गाव की रक्षा के लिए एक कुल  का बिलदान  दें, देश  की रक्षा के लिए एक गाव का बिलदान  दें, आतमा की रक्षा के लिए देश का बिलदान  दें.

उद्योगे नास्ति दारिद्र्य जपतो नास्ति पातकम् ।
मौनेनकलहोनास्ति नास्ति जागरितो भयम् ।।११।।

११.जो उद्यमशील हैं, वे गरीब नहीं हो सकते,
जो हरदम भगवान को याद करते है उनहे पाप नहीं छू सकता.
जो मौन रहते है वो झगड़ों मे नहीं पड़ते.
जो जागृत रहते है वो िनभरय होते है.

अतिरूपेण वै सीता अतिगर्वेणः रावणः ।
अतिदानाब्दलिर्बध्दो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत् ।।१२।।

12. आत्याधिक सुन्दरता के कारन सीताहरण हुआ, अत्यंत घमंड के कारन रावन का अंत हुआ,  अत्यधिक दान देने के कारन रजा बाली को बंधन में बंधना पड़ा, अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए.

कोऽतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम्।
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ।।१३।।

१3. शक्तिशाली लोगों के लिए कौनसा कार्य कठिन है ? व्यापारिओं के लिए कौनसा जगह दूर है, विद्वानों के लिए कोई देश विदेश नहीं है, मधुभाषियों का कोई शत्रु नहीं.

एकेनापि सुवृक्षेण दह्यमानेन गन्धिना ।
वासितं तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा ।।१४।।

१४. जिस तरह सारा वन केवल एक ही पुष्प अवं सुगंध भरे  वृक्ष से महक जाता है उसी तरह एक ही गुणवान पुत्र  पुरे कुल का नाम बढाता है.

एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वन्हिना ।
दह्यते तद्वनं सर्व कुपुत्रेण कुलं यथा ।।१५।।

१५. जिस प्रकार केवल एक सुखा हुआ जलता वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है उसी प्रकार एक ही कुपुत्र सरे कुल के मान, मर्यादा और प्रतिष्ठा को नष्ट कर देता है.

एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना ।
आल्हादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी ।।१६।।

१६. विद्वान एवं सदाचारी एक ही पुत्र के कारन सम्पूर्ण परिवार वैसे ही खुशहाल रहता है जैसे चन्द्रमा के निकालने पर रात्रि जगमगा उठती है.

किं जातैर्बहुभिः पुत्रैः शोकसन्तापकारकैः ।
वरमेकः कुलालम्बी यत्र विश्राम्यते कुलम् ।।१७।।

१७. ऐसे अनेक पुत्र किस काम के जो दुःख और निराशा पैदा करे. इससे तो वह एक ही पुत्र अच्छा है जो समपूणर घर को सहारा और शांित पदान करे.

लालयेत्पञ्चवर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् ।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत् ।।१८।।

१८. पांच साल तक पुत्र को लाड एवं प्यार से पालन करना चाहिए, दस साल तक उसे छड़ी की मार से डराए. लेकिन जब वह १६ साल का हो जाए तो उससे मित्र के समान वयवहार करे.

उपसर्गेऽन्यचक्रे च दुर्भिक्षे च भयावहे ।
असाधुजनसम्पर्के यः पलायति जीवति ।।१९।।

१९. वह व्यक्ति सुरक्षित रह सकता है जो नीचे दी हुई परिस्थितियां उत्पन्न होने पर भाग जाए.
१. भयावह आपदा.
२. विदेशी आक्रमण
३. भयंकर अकाल
४. दुष व्यक्ति का संग.

धर्मार्थकाममोक्षेषु यस्यैकोऽपि न विद्यते ।
जन्मजन्मनि मर्त्येष मरणं तस्य केवलम् ।।२०।।

२०. जो व्यक्ति निम्नलिखित बाते अर्जित नहीं करता वह बार बार जनम लेकर मरता है.
१. धमर
२. अर्थ
३. काम
४. मोक्ष

मूर्खा यत्र न पुज्यन्ते धान्यं यत्र सुसञ्चितम् ।
दाम्पत्ये कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ।।२१।।

२१. धन की देवी लक्ष्मी स्वयं वहां चली आती है जहाँ ...
१. मूर्खो का सम्मान नहीं होता.
२. अनाज का अचछे से भणडारण किया जाता है.
३. पति, पत्नी मे आपस मे लड़ाई बखेड़ा नहीं होता है.
[1/15, 11:04] ‪+91 98896 25094‬: एक बेटे ने पिता से पूछा-
पापा.. ये 'सफल जीवन' क्या होता है ?

पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए। 
बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था...

थोड़ी देर बाद बेटा बोला-
पापा.. ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें !!  ये और ऊपर चली जाएगी...

पिता ने धागा तोड़ दिया ..

पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...

तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया...

बेटा..
'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..
हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं
  जैसे :
            -घर-
         -परिवार-
       -अनुशासन-
      -माता-पिता-
       -गुरू-आदि-
और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं...

वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..
'इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो बिन धागे की पतंग का हुआ...'

"अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."

"धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन' कहते हैं.."

आप सभी को सादर प्रणाम🙏🙏
[1/15, 11:56] पं अर्चना जी: 🌞ॐ शिवः हरि🌞
*केचिद्वदन्ति धनहीनजनो जघन्यः*
*केचिद्वदन्ति गुणहीनजनो जघन्यः ।*
*व्यासो बदत्यखिलवेदपुराणविज्ञो*
*नारायणस्मरणहीनजनो जघन्यः ॥*

_कुछ लोग कहते हैं कि धनहीन लोग क्षुद्र हैं; कुछ कहते हैं कि गुणहीन लोग क्षुद्र हैं; पर, सभी वेद-पुराण जाननेवाले श्रीव्यास मुनि कहते हैं कि नारायण का (भगवान का) स्मरण न करनेवाले क्षुद्र हैं ।_
॥ॐ॥✍🏻
🌹🌹🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹🌹🌹
[1/15, 11:59] पं सत्यशु: किन किन लोगों को शनिदेव बनाते है धनवान🌺*
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👉शनिदेव की अपने पिता सूर्य से अत्यधिक दूरी के कारण यह प्रकाशहीन हैं। इसी कारण लोग शनिदेव को अंधकारमयी, भावहीन, गुस्सैल, निर्दयी और उत्साहहीन भी मान बैठते हैं परंतु शनि ग्रह ईमानदार लोगों के लिए यश, धन, पद और सम्मान का ग्रह है। शनि संतुलन एवं न्याय के ग्रह हैं। शनि अर्थ, धर्म, कर्म और न्याय का प्रतीक हैं। शनि ही धन-संपत्ति, वैभव और मोक्ष भी देते हैं। कहते हैं शनि देव पापी व्यक्तियों के लिए अत्यंत कष्टकारक हैं। शनि की दशा आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं, जिससे जीवन पूरी तरह से डगमगा सकता है परंतु शनि कुछ लोगों के अत्यंत शुभ और श्रेष्ट फल देता है।आइए जानते हैं शनि किन लोगों को धनी बनाता है।
🌷जो लोग अपने हाथ-पांव के नाखून निरंतर अंतराल पर काटते हैं व नाखुनों में मैल नहीं जमने देते शनि उनका सैदेव कल्याण करते हैं।
🍃जो लोग पौष माह में गरीबों को काले चने, काले तिल, उड़द, काले कपड़े आदि का नि:स्वार्थ दान करते हैं शनि उनसे प्रसन्न रहते हैं।
⚫ जो लोग जेष्ठा माह में धूप से बचने के लिए काले छातों का दान करते हैं शनिदेव उन पर अपनी छत्र छाया बनाए रखते हैं।
⚫जो लोग कुत्तों की सेवा करते हैं अथवा कुत्तों को भोजन देते हैं और उन्हें सताते नहीं हैं शनिदेव उन्हें कष्टों से मुक्ति देते है।
⚫ जो लोग नेत्रहीनों को राह दिखाकर उनका मार्ग प्रशस्त करते हैं शनिदेव उनके लिए उन्नति के मार्ग खोलते हैं।
⚫ जो लोग शनिवार का उपवास रखकर अपने हिस्से का भोजन गरिबों को दान करते हैं शनि उनके भण्डार भरते हैं।
⚫ जो लोग मछली का सेवन नहीं करते तथा मछलियों को दाना डालते हैं शनिदेव उनसे सदैव प्रसन्न रहते हैं।
⚫ जो लोग रोज़ संपूर्ण स्नान कर स्वयं को साफ़ व पवित्र रखते हैं शनिदेव उन्हें कभी कष्ट नहीं देते।
⚫ जो लोग सफाई कर्मियों को सम्मान व आर्थिक अनुदान देते हैं शनिदेव उनको धन प्रदान करते हैं।
⚫ जो लोग मेहनतकश मजदूरों का हक नहीं मारते शनिदेव उन्हें कभी कष्ट नहीं देते।
⚫ जो लोग वृद्ध स्त्रियों को माता समान सम्मान देते हैं शनिदेव उनकी सहयता हेतु तत्पर रहते हैं।
⚫ जो लोग पीपल व बरगद का नियमित पूजन करते हैं निश्चित ही शनिदेव उनसे प्रसन्न रहते हैं।
⚫ जो लोग नियमित शिवलिंग का पूजन करते हैं शनिदेव उनका सदैव ध्यान रखते हैं।
⚫जो लोग पितृ श्राद्ध कर कौए को भोजन देते हैं शनि खुश होकर उनके कष्ट हरते हैं।
⚫जो लोग धर्म मार्ग से लक्ष्मी अर्जित करते हैं शनि उन्हें अटूट लक्ष्मी का वर देते हैं।
⚫जो लोग असहाय वृद्धों को आर्थिक अनुदान देते हैं शनिदेव उनके भंडार भर देते हैं।
⚫ जो लोग हनुमान जी की पूजा करते हैं शनिदेव उनके रक्षक बन जाते हैं।
⚫जो लोग विकलांगो की सहयता करते हैं शनि उनका सैदेव कल्याण करते हैं।
⚫जो लोग शराब व मदपान से दूर रहते हैं शनिदेव उनसे सैदेव प्रसन्न रहते हैं।
⚫जो लोग शाकाहार अपनाते हैं शनि उनका कुटुंब सहित कल्याण करते हैं।
⚫जो लोग सातमुखी रुद्राक्ष धारण करते हैं शनि उनके भाग्य खोल देते हैं।
⚫ जो लोग ब्याजखोरी से दूर रहते हैं शनि उनकी सैदेव सहयता करते हैं।
⚫जो लोग कोढ़ियों की सेवा करते हैं शनि उनके सभी कष्ट हर लेते हैं।
[1/15, 12:03] पं अर्चना जी: *पितृभिः ताडितः पुत्रः*
                     *शिष्यस्तु* *गुरुशिक्षितः।*
*धनाहतं सुवर्णं च*
                     *जायते* *जनमण्डनम् ॥*
पिता द्वारा पीटा गया पुत्र,
गुरुदेव द्वारा शिक्षा दिया गया शिष्य,
और हथौडे से टीपा गया सोना,
लोगों में अवश्य आभूषणरुप ही बनता है ।
*सुशीलो मातृपुण्येन, पितृपुण्येन चातुरः ।*
*औदार्यं वंशपुण्येन, आत्मपुण्येन भाग्यवान ।।*

*अर्थात-* कोई भी इंसान अपनी माता के पुण्य से सुशील होता है, पिता के पुण्य से चतुर होता है, वंश के पुण्य से उदार होता है और अपने स्वयं के पुण्य होते हैं तभी वो भाग्यवान होता है।

*अतः भाग्य प्राप्ति के लिए सत्कर्म आवश्यक है।*

🌹 *जय श्री राधे* 🌹
[1/15, 13:10] ओमीश: एवं च ते निश्चयमेतु बुद्धिर्दृष्ट्वा विचित्रं जगतः प्रचारम् |
सन्तापहेतुर्न सुतो न बन्धुरज्ञाननैमित्तिक एष तापः ||

श्लोकार्थ :- इस संसार की विचित्र गति को देखकर आपकी बुद्धि यह निश्चित समझे कि मनुष्य के मानसिक कष्ट या संताप के लिए उसका पुत्र अथवा बंधु कारण नहीं है, बल्कि दुःख का असली कारण तो अज्ञान है |

जै जै सूर्यदेव
[1/15, 19:35] ‪+91 88087 68032‬: जीव मोह भ्रम के कारण अपने को माया के बन्धन मे बँधा हुआ मानकर परवश हो चुका है ।
" जड़ चेतनहिं ग्रन्थि परि गई ।
जदपि मृषा छूटत कठिनई ॥ "
जीव उस माया बन्ध की गाँठ खोलने मे असमर्थ है
क्योंकि त्रिगुणात्मक मोहान्धकार के कारण जीव ब्रह्म को ,
और माया बन्ध की भ्रमात्मक मृषा उस गाँठ
दोनो को देख नही पाता ,
जथा गगन घन पटल निहारी ।
झाँपेउ भानु कहहिं कुविचारी ॥
उमा राम विषइक अस मोहा ।
नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा ॥
धूम = सात्विक अन्धकार
धूरि ( रज ) = रजोगुणी अन्धकार
तम = तामस अन्धकार

अर्थात्‌
जीव का हृदय मोहान्धकार से आच्छादित होने के कारण माया बन्ध की गाँठ को देख ही नही पाता
तो खोल कैसे पायेगा
" जीव हृदय तम मोह विसेषी ।
ग्रन्थि छूटि किमि परइ न देखी ॥ "

अब जीव को माया बन्ध से मुक्त होने के लिए प्रज्वलित ज्ञान दीप के परम प्रकाश की आवश्यकता है -
" सोहमस्मि इति वृत्ति अखंडा ।
दीपसिखा सोइ परम प्रचंडा ॥
आतम अनुभव सुख सुप्रकासा ।
तव भव मूल भेद भ्रम नासा ॥ "

परन्तु दीप प्रज्वलन के बाद भी
" दीपक तले अन्धेरा "
के अनुसार (संस्कार के ) अन्धकार का अवशिष्ट दोष अभी भी रह जाता है
इस दीपक तले अन्धेरा को दूर करने का एक ही उपाय है
कि एक दीपक के पास दूसरा प्रज्वलित दीप रख दिया जाय
तो दूसरा दीप
प्रथम वाले
" दीपक तले अन्धेरा "
को दूर कर देगा
इस प्रकार से दीपक के पास दीपक रखने से
दीप की अवली ( पंक्ति ) बन जायेगी ।
यही " दीपावली " है ।
परिपूर्ण परम प्रकाश पर्व
" दीपावली " की सबको हार्दिक शुभ मंगल कामना ॥
--- शेष प्रभु ....
!! श्री राम कृपा !!

डॉ॰ रामगोपाल तिवारी
               " मानस-रत्न "
              " मानस-मधुप "
           " भागवत-भ्रमर "
             " गीता-मधुकर "
[1/15, 20:25] P Alok Ji: [1/15, 20:21] alokjitripathi: सबसे जटिल स्वभाव यदि किसी का होता है तो वह हैं वृश्चिक राशि के लोग। इन्हें समझना इतना आसान नहीं होता क्योंकि इनके हमेशा दो चेहरे होते हैं एक जो नजर आता है और दूसरा जो यह वास्तव में होते हैं। वृश्चिक राशि या लग्न के लोगों का मायाजाल कुछ ऐसा होता है कि इनके बेहद करीबी यानी इनकी पत्नी या इनका पति ही इन्हें अच्छी तरह से समझ सकता है। यदि आपके जीवनसाथी की राशि वृश्चिक है या लग्न वृश्चिक है तो निसंदेह आपको अपने साथी की कई बातों से बहुत परेशानी होती होगी जैसे कि वृश्चिक राशि के लोग हमेशा काफी आक्रामक और तुनकमिजाज होते हैं।

किसी भी बात को लेकर झगड़ा करना इनका स्वभाव होता है। किए हुए एहसान को यह याद रखते हैं और उस का बदला चुकाने के लिए भी तैयार रहते हैं। जहां तक हो सके यह अपना वादा निभाते हैं।

यदि आपके जीवन साथी की राशि वृश्चिक है तो आपको एक बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए वह यह कि इनके आत्म सम्मान को चोट मत पहुंचाएं जैसे की यदि आपको इनकी कोई कमी दिखाई देती है तो उस बात का जिक्र किसी अन्य व्यक्ति के पास मत करें जिसे की चुगली कहते हैं इससे यह तुरंत चिढ़ जाते हैं।

यदि आपके जीवनसाथी की राशि वृश्चिक है तो हमेशा एक बात का ख्याल रखें कि इन्हें धन्यवाद अभिनंदन स्वागत आदि चाहे वह औपचारिकता ही क्यों ना हो पसंद रहती है यदि किसी बात को लेकर आप इनका धंयवाद करते हैं तो यह प्रभावित हो जाते हैं और जो लोग थैंकलेस होते हैं उनसे यह नफरत करते हैं।

यदि आपके वृश्चिक राशि के जीवन साथी हैं तो आपको एक बात इनकी हमेशा खलेगी वह यह है कि यह जल्दी ही इरिटेट हो जाते हैं इन्हें इंतजार पसंद नहीं होता भले ही यह दूसरों को कितना ही इंतजार करवाएं।

जल्दबाजी करना इनकी आदत होती है और जल्दी जल्दी में कुछ भी बोल देते हैं बाद में पछताते हैं और माफ़ी भी मांगते हैं आपको चाहिए कि इन्हें बताएं कि बोलने से पहले जरा सोच लें।

प्रतिभा और क्षमता इन में अतुल्य होती है तो यदि वृश्चिक राशि के जीवन साथी चाहे तो असंभव को भी संभव कर दिखाते हैं उनकी लोकप्रियता कठिन समय में इनकी मदद करती है मेहनत करने से यह डरते नहीं इसीलिए सब के प्रिय बने रहते हैं।

यदि आप इनसे अपने सम्बन्धों को लम्बे समय तक मधुर रखना चाहते हैं तो आपको शांत रहना होगा क्योंकि यदि आप दोनों का मिजाज गर्म रहेगा तो घर में शांति नहीं रह सकती । इन्हें वश में रखने के लिए आप प्रेम का रास्ता अपनाइए क्योंकि प्रेम के द्वारा ही वृश्चिक राशि के लोगों को वश में किया जा सकता है।

मंगल के प्रभाव से इनका यह क्रूर स्वभाव उस समय और भी दुस्सह हो जाता है जब कोई इनके काम में बाधा डालता है इसलिए यदि आपके पति या पत्नी की राशि वृश्चिक है तो इन्हें इनके काम में यथासंभव सहयोग दें और जब तक आपको पूरी बात का पता न हो तब तक इनके काम में बाधा मत बनिए।
[1/15, 20:22] alokjitripathi: आलोकजी शास्त्री
[1/15, 22:06] ‪+91 98854 71810‬: 🌲🌲🍅🍅*#जय_सीताराम*🍅🍅🌲🌲
                कौए की एक आँख क्यों होती। पढ़े रामचरितमानस के अनुसार।

एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए॥
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर॥

भावार्थ:-एक बार सुंदर फूल चुनकर श्री रामजी ने अपने हाथों से भाँति-भाँति के गहने बनाए और सुंदर स्फटिक शिला पर बैठे हुए प्रभु ने आदर के साथ वे गहने श्री सीताजी को पहनाए॥

* सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा॥
जिमि पिपीलिका सागर थाहा। महा मंदमति पावन चाहा॥

भावार्थ:-देवराज इन्द्र का मूर्ख पुत्र जयन्त कौए का रूप धरकर श्री रघुनाथजी का बल देखना चाहता है। जैसे महान मंदबुद्धि चींटी समुद्र का थाह पाना चाहती हो॥

*सीता चरन चोंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा॥
चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना॥

भावार्थ:-वह मूढ़, मंदबुद्धि कारण से (भगवान के बल की परीक्षा करने के लिए) बना हुआ कौआ सीताजी के चरणों में चोंच मारकर भागा। जब रक्त बह चला, तब श्री रघुनाथजी ने जाना और धनुष पर सींक (सरकंडे) का बाण संधान किया॥

* अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह।
ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह॥

भावार्थ:-श्री रघुनाथजी, जो अत्यन्त ही कृपालु हैं और जिनका दीनों पर सदा प्रेम रहता है, उनसे भी उस अवगुणों के घर मूर्ख जयन्त ने आकर छल किया॥

*प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा। चला भाजि बायस भय पावा॥
धरि निज रूप गयउ पितु पाहीं। राम बिमुख राखा तेहि नाहीं॥

भावार्थ:-मंत्र से प्रेरित होकर वह ब्रह्मबाण दौड़ा। कौआ भयभीत होकर भाग चला। वह अपना असली रूप धरकर पिता इन्द्र के पास गया, पर श्री रामजी का विरोधी जानकर इन्द्र ने उसको नहीं रखा॥

*भा निरास उपजी मन त्रासा। जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा॥
ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका। फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका॥

भावार्थ:-तब वह निराश हो गया, उसके मन में भय उत्पन्न हो गया, जैसे दुर्वासा ऋषि को चक्र से भय हुआ था। वह ब्रह्मलोक, शिवलोक आदि समस्त लोकों में थका हुआ और भय-शोक से व्याकुल होकर भागता फिरा॥

*काहूँ बैठन कहा न ओही। राखि को सकइ राम कर द्रोही ॥
मातु मृत्यु पितु समन समाना। सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना॥

भावार्थ:-(पर रखना तो दूर रहा) किसी ने उसे बैठने तक के लिए नहीं कहा। श्री रामजी के द्रोही को कौन रख सकता है? (काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) है गरुड़ ! सुनिए, उसके लिए माता मृत्यु के समान, पिता यमराज के समान और अमृत विष के समान हो जाता है॥

*मित्र करइ सत रिपु कै करनी। ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी॥
सब जगु ताहि अनलहु ते ताता। जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता॥

भावार्थ:-मित्र सैकड़ों शत्रुओं की सी करनी करने लगता है। देवनदी गंगाजी उसके लिए वैतरणी (यमपुरी की नदी) हो जाती है। हे भाई! सुनिए, जो श्री रघुनाथजी के विमुख होता है, समस्त जगत उनके लिए अग्नि से भी अधिक गरम (जलाने वाला) हो जाता है॥

*नारद देखा बिकल जयंता। लगि दया कोमल चित संता॥
पठवा तुरत राम पहिं ताही। कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही॥

भावार्थ:-नारदजी ने जयन्त को व्याकुल देखा तो उन्हें दया आ गई, क्योंकि संतों का चित्त बड़ा कोमल होता है। उन्होंने उसे (समझाकर) तुरंत श्री रामजी के पास भेज दिया। उसने (जाकर) पुकारकर कहा- हे शरणागत के हितकारी! मेरी रक्षा कीजिए॥

*आतुर सभय गहेसि पद जाई। त्राहि त्राहि दयाल रघुराई॥
अतुलित बल अतुलित प्रभुताई। मैं मतिमंद जानि नहीं पाई॥

भावार्थ:-आतुर और भयभीत जयन्त ने जाकर श्री रामजी के चरण पकड़ लिए (और कहा-) हे दयालु रघुनाथजी! रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए। आपके अतुलित बल और आपकी अतुलित प्रभुता (सामर्थ्य) को मैं मन्दबुद्धि जान नहीं पाया था॥

*निज कृत कर्म जनित फल पायउँ। अब प्रभु पाहि सरन तकि आयउँ॥
सुनि कृपाल अति आरत बानी। एकनयन करि तजा भवानी॥

भावार्थ:-अपने कर्म से उत्पन्न हुआ फल मैंने पा लिया। अब हे प्रभु! मेरी रक्षा कीजिए। मैं आपकी शरण तक कर आया हूँ। (शिवजी कहते हैं-) हे पार्वती! कृपालु श्री रघुनाथजी ने उसकी अत्यंत आर्त्त (दुःख भरी) वाणी सुनकर उसे एक आँख का काना करके छोड़ दिया॥

*कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित।
प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम॥

भावार्थ:-उसने मोहवश द्रोह किया था, इसलिए यद्यपि उसका वध ही उचित था, पर प्रभु ने कृपा करके उसे छोड़ दिया। श्री रामजी के समान कृपालु और कौन होगा?॥
[1/16, 07:12] ‪+91 98854 71810‬: ।
*सुशीलो मातृपुण्येन, पितृपुण्येन चातुरः ।*
*औदार्यं वंशपुण्येन, आत्मपुण्येन भाग्यवान ।।*

*अर्थात-* कोई भी इंसान अपनी माता के पुण्य से सुशील होता है, पिता के पुण्य से चतुर होता है, वंश के पुण्य से उदार होता है और अपने स्वयं के पुण्य होते हैं तभी वो भाग्यवान होता है।

*अतः भाग्य प्राप्ति के लिए सत्कर्म आवश्यक है।*

🌹 *जय श्री राधे* 🌹
[1/16, 07:14] ‪+91 98895 15124‬: 📝आज का विचार                             🌫"कोहरे से एक अच्छी बात सीखने को मिलती है,कि जब जीवन मे रास्ता न दिखाई दे तो, बहुत दूर तक देखने की कोशिश व्यर्थ है। इसलिए एक एक कदम चलते रहिये, रास्ता खुद बखुद खुलता जाएगा।"
[1/16, 07:15] ‪+91 98895 15124‬: सुप्रभात

आपका दिन मंगलमय हो

"मेहनत लगती है सपनो को सच बनाने में, हौसला लगता है बुलन्दियों को पाने में, बरसो लगते हैं जिन्दगी बनाने में और जिन्दगी फिर भी कम पड़ती है रिश्ते निभाने में"

🙏🙏   🙏🏻🙏🏻
[1/16, 09:07] P Alok Ji: अहोरात्रैश्छिन्नमानं बुध्वायुर्भयवेपथुः।
मुक्तसंगः परं बुद्ध्वा निरीह,उपशाम्यति ।।
ये दिन और रात क्षण क्षण मे शरीर की आयु को क्षीण कर रहे हैं यह जानकर जो भय से कांप उठता है वह ब्यक्ति इसमे आशक्ति छोडकर परम तत्व का ग्यान प्राप्त कर लेता है और फिर जीवन मरण से निरपेक्ष रहकर अपने आत्मा मे हि शांत हो जाता है ।पिबत भागवतम् रसमालयम् श्रद्धेय आलोकजी शास्त्री इन्दौर
[1/16, 10:26] ‪+91 97545 35118‬: *पितृभिः ताडितः पुत्रः*
                     *शिष्यस्तु* *गुरुशिक्षितः।*
*धनाहतं सुवर्णं च*
                     *जायते* *जनमण्डनम् ॥*
पिता द्वारा पीटा गया पुत्र,
गुरुदेव द्वारा शिक्षा दिया गया शिष्य,
और हथौडे से टीपा गया सोना,
लोगों में अवश्य आभूषणरुप ही बनता है ।
*सुशीलो मातृपुण्येन, पितृपुण्येन चातुरः ।*
*औदार्यं वंशपुण्येन, आत्मपुण्येन भाग्यवान ।।*

*अर्थात-* कोई भी इंसान अपनी माता के पुण्य से सुशील होता है, पिता के पुण्य से चतुर होता है, वंश के पुण्य से उदार होता है और अपने स्वयं के पुण्य होते हैं तभी वो भाग्यवान होता है।

*अतः भाग्य प्राप्ति के लिए सत्कर्म आवश्यक है।*

🌹 *जय श्री राधे* 🌹
[1/16, 11:15] ‪+91 98896 25094‬: .                      प्रेरणादायक कहानी

एक राजा था जिसे राज भोगते काफी समय हो गया था बाल भी सफ़ेद होने लगे थे । एक दिन उसने अपने दरबार मे उत्सव रखा । उत्सव मे मुजरा करने वाली और अपने गुरु को बुलाया । दूर देश के राजाओं को भी । राजा ने कुछ मुद्राए अपने गुरु को दी जो बात मुजरा करने वाली की अच्छी लगेगी वह मुद्रा गुरु देगा। सारी रात मुजरा चलता रहा । सुबह होने वाली थीं, मुज़रा करने वाली ने देखा मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है उसको जगाने के लियें मुज़रा करने वाली ने एक दोहा पढ़ा ,

.        बहु बीती,थोड़ी रही,पल पल गयी बिहाई।
.        एक पलक के कारने,ना कलंक लग जाए।

       अब इस दोहे का अलग अलग व्यक्तियों नेअलग अलग अपने अपने अनुरूप अर्थ निकाला ।तबले वाला सतर्क हो  बजाने लगा।जब ये बातगुरु ने सुनी,गुरु ने सारी मोहरे उस मुज़रा करने वाली को दे दी वही दोहा उसने फिर पढ़ा तो राजा के लड़की ने अपना नवलखा हार दे दिया । उसने फिरवही दोहा दोहराया तो राजा के लड़के ने अपना मुकट उतारकर देदिया वही दोहा दोहराने लगी राजा ने कहा बस कर एक दोहे से तुमने वेश्या होकर सबको लूट लिया है । जब ये बातराजा के गुरु ने सुनी गुरु के नेत्रो मे जल आ गया और कहने लगा, "  राजा इसको तू वेश्या न कह, ये मेरी गुरू है। इसने मुझें मत दी है कि मै सारी उम्र जंगलो मे भक्ति करता रहा और आखरीसमय मे मुज़रा देखने आ गया हूँ। भाई मै तो चला।राजा की लड़की ने कहा, " आप मेरी शादी नहीं कर रहे थे,आज मैंने आपके महावत के साथ भाग कर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था । इसनें मुझे सुमति दी है कि कभीतो तेरी शादी होगी । क्यों अपने पिता कोकलंकित करती है ? राजा के लड़के ने कहा, " आप मुझे राज नहीं दे रहे थे । मैंने आपके सिपाहियो से मिल कर आपका क़त्ल करवा देना था इसने समझाया है कि आखिर राज तो तुम्हे ही मिलना है ।क्यों अपने पिताके खून का इलज़ाम अपने सर लेते हो?जब ये बातें राजा ने सुनी तो राजा ने सोचा क्यों न मै अभी राजतिलक कर दूँ , गुरु भी मौजूद है । उसी समय राज तिलक कर दिया और लड़की से कहा बेटा, " मैं आपकी शादी जल्दी कर दूँगा। "मुज़रा करने वाली कहती है , " मेरे एकदोहे से इतने लोग सुधरगए, मै तो ना सुधरी। आज से मै अपना धंधा बंद करती हूँ।हे प्रभु! आज से मै भी तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।समझ आने की बात है, दुनिया बदलते देर नहीं लगती। एक दोहे की दो लाईनों में इतना सामर्थ्य जुट सकता है।
[1/16, 19:38] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: I वन्दे संस्कृतमातरम् I

प्रदीपयेम जगत्सर्वम्

संस्कृतेन सदैव वैश्विकं चिन्तनम् एव कृतम् ।
``वसुधैव कुटुम्बकम् '' ``कृण्वन्तो विश्वमार्यम्'' ``आ नो भद्राः यन्तु क्रतवो विश्वतः'' इत्येवम्प्रकारेण अस्माकं पूर्वजानां ये आदर्शाः सन्ति तदनुसारम् अद्यापि अस्माभिः सर्वस्य जगतः प्रदीपनं चिन्तनीयम् ।
[1/16, 19:40] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: I वन्दे संस्कृतमातरम् I

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्
तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्य स्विद् धनम् ।।

ब्रह्माण्डे यत् किमपि जड़-चेतनरूपी जगत् अस्ति, तत् सर्वम् ईश्‍वरेण एव अभिव्याप्तम् अस्ति ।  अतः तेन ईश्‍वरेण सह (तं मनसि निधाय) संसाधनानां त्यागपूर्वकम् उपयोगः कर्तव्यः ।  भोग्यपदार्थेषु आसक्तिः मा भवेत् यतोहि धन-धान्यानि, भोग्यपदार्थाः, संसाधनानि वा कस्य भूत्वा तिष्ठन्ति इति ।  इत्‍युक्‍ते केषांचिदपि न भवन्ति ।
[1/16, 19:48] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: भवानि कलत्रं हरं शूलपाणिम्
शरण्यं शिवम् सर्पहारं गिरिशं I
अज्ञानान्तकं भक्त विज्ञानदं तं
भजेऽहं मनोभिष्टदम् विश्वनाथं II
हर हर महादेव।🌸🙏🌸😊
[1/16, 21:10] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: भैया गौतम जी सत्य कितना भी कड़वा हो बालक हजम करने में सक्षम है आप सब के आशिर्वाद से।यहां अन्यथा लेने कि तो कोई बात ही नहीं है आप जैसे मुर्धन्य विद्वत जनों से ज्ञान प्राप्त करने में अन्यथा लेने का कोई प्रश्न ही नहीं है। हमने आपके सभी आडियो को सुना अच्छा लगा आपसे कुछ समुचित जानकारी मिली। आपकी आवाज से ही लग रहा है कि कुछ अस्वस्थ हैं आप।मुझे गर्व है हम सब के मध्य में आप जैसे मुर्धन्य ज्योतिषाचार्य मौजूद हैं। इसी प्रकार ज्ञान वर्षा करते रहिये यही प्रार्थना है।लेकिन भैया जी एक प्रश्न पुन: मन में उपज रहा है।क्या अन्य पंचांगों को गलत माना जा सकता है?
मां भगवती से प्रार्थना करता हूं आप शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ होकर सम्यक समाधान इस विषय पर कर सकें।
सादर नमन शुभ रात्रि🌸🙏🌸😊
[1/17, 00:08] B B tripathi: ।। हर हर महादेव।।
माँ दुर्गा नवकुण्डीय हवनात्मक चण्डी महायज्ञ
      विगत 11 वर्षों से कोपरखैराणे सेक्टर 1, तेरना कॉलेज के पीछे मैदान में दिनाँक 18 जनवरी से 26 जनवरी तक होने वाला यज्ञ, इस वर्ष भी उसी समय पर प्रारम्भ होने जा रहा है।
     आप सभी सपरिवार सादर आमन्त्रित हैं।
मां भगवती सबका कल्याण करें।
पं. ब्रजभूषण त्रिपाठी "आचार्य"
8097097677, 9320516813
8097057688, 9702846567
[1/17, 09:23] ओमीश: 🙏सर्वेभ्यो नमो नमः 🙏
    🌹सुप्रभातम् 🌹
मातृरूपिणी स्मितहास्य युक्ते,
प्रेमप्रियायै प्रेमभावसंस्थिते ।
वर वरदे अभयमुद्रा धारिणीम,
अम्बे महाकालीम त्वमर्चयेत सर्वकाले ॥

जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैं, जिनके मुख पर सदैव अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है , जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं , हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |
🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏
[1/17, 09:40] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: हरि: ॐ तत्सत् सर्वेभ्यो श्रीगुरूचरणकमलेभ्यो नमो नम: सुप्रभातम्🌸🙏🌸😊
I वन्दे संस्कृतमातरम् I

किरातहूणान्ध्रपुलिन्दपुल्कसा
आभीरकङ्का यवनाः खसादयः ।
येऽन्ये च पापा यदुपाश्रयाश्रया
शुद्ध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः ॥--(श्रीमद्भा॰ २ । ४ । १८)

जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई ।
धन बल परिजन गुन चतुराई ॥
भगति हीन नर सोहइ कैसा ।
बिनु जल बारिद देखिअ जैसा ॥--(मानस ३ । ३५ । ३)
[1/17, 09:57] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: सतामदैन्यं वदनस्य शोभा
निर्लोभतांतर्वचसामयाञ्चा ।
कायस्य सत्सेव्यमसेवकत्वं
पाणेरुनुत्तानतलत्वमेव ॥- चतुर्वर्गसंग्रह🌸🙏🌸😊
[1/17, 11:13] पं अर्चना जी: 🙏🏻🚩 *_जय श्री राम_* 🚩🙏🏻
✨💐🍂🐾🌹🌿🌻🌷🍂💐✨
       ✍🏻✍🏻✍🏻

🐾 *_हे परमात्मा,_* 🐾
*_अगर आप का कुछ तोड़ने का मन करे,_*
     🐾 *_तो मेरा ग़रूर तोड़ देना.. 🐾_*
*_अगर आप का कुछ जलाने का मन करे,_*
     🐾 *_तो मेरा क्रोध जला देना.._* 🐾
*_अगर आप का कुछ बुझाने का मन करे,_*
      🐾 *_तो मेरी घृणा बुझा देना.._*🐾
*_अगर आप का मारने का मन करे,_*
      🐾 *_तो मेरी इच्छा को मार देना.._*🐾
*_अगर आप का प्यार करने का मन करे,_*
      🐾 *_तो मेरी ओर देख लेना.._*🐾
*_"मैं शब्द, तुम अर्थ.....तुम बिन मैं व्यर्थ"_*
                         🙏🏻🙏🏻
               💕 *_स्नेह वंदन_* 💕
          🍂💐 *_सुप्रभातम्_* 💐🍂
✍🏻
*_ॐ शिवः हरि ।
[1/17, 13:22] P ss: इन्डोनेशिया में एक दिन स्पेशल  होता    है.
जिस दिन सब बच्चों की मांओं को स्कूल में बुलाया जाता है।
और बच्चों से मां के पैर धुलवाये और साफ करवाये जाते हैं
ताकि अपने मां बाप की सेवा करना न भूलें।
इसका नतीजा यह है वहां एक भी वृद्ध आऋम नहीं  है।.......
[1/17, 14:13] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *_"बोईए और काटिये "_*
""""""''''''"""'""""""'"'''''''''""""''''''''''''''''''''''''''
*_" क्या आप हताश हैं? निराश हैं? कि कोई आपको प्यार नही करता?, कोई आपकी बात नही सुनता?, आपने जो ठोकरें खाई वे ठोकरें आपका पुत्र/पुत्री/मित्र न खाएं यह सोंचकर आप जो सलाह देना चाहते हैं उस सलाह के ऊपर अमल करना तो दूर, कोई उस सलाह को सुनना भी नही चाहता?..... यदि ऐसा है तो निराश मत होइए !!!!!..... आप प्यार बोना शुरू कीजिए .... अपने नाती पोतों में, दवाई की दुकान के सेल्समेन में, दूध पहुंचाने वाले में, घर के कामकाज करने वालों में , हर उस व्यक्ति में जिसका सम्पर्क आपसे होता है। उन्हें प्रोत्साहित करिये ,उनकी प्रशंसा करिये , उनके ऊपर दया और ममता करिये , उन्हें क्षमा करिये , उन्हें उनके दुःख में शांत करिये  ; बस जब आप यह करने लग जाएंगे तो यह प्रेम,उत्साह,दया ,क्षमा,शांति जो आप पाना चाहते हैं यह हजार गुना होकर आपको वापस मिलने लगेगी और आप  "धनवान" हो जाएंगे। याद रखिये जो वस्तु हम बाहर खोजते हैं वह हमारे अंदर मिलती है।"_*
*हारिये न हिम्मत!!!!!*_"बिसारिये न राम!!!!!!"_*
*_"अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।"_*
[1/17, 14:37] ओमीश: 🙏🌹श्री मात्रे नमः🌹🙏
चतुर्भिः श्रीकण्ठैः शिवयुवतिभिः पन्चभिरपि
प्रभिन्नाभिः शम्भोर्नवभिरपि मूलप्रकृतिभिः ।
त्रयश्चत्वारिंशद्वसुदलकलाश्रत्रिवलय-
त्रिरेखाभिः सार्धं तव शरणकोणाः परिणताः

अर्थ - चार शिवचक्र , उनसे भिन्न पाँच शिवयुवतियाँ ( शक्तिचक्र ) तथा प्रपन्च के मूल कारण नौ तत्वों से युक्त तुम्हारा निवास स्थान तिरालीस कोणों से बना हुआ है । जो शम्भु के बिन्दु स्थान से भिन्न है । वह अष्टदल , सोलहदल , तीन रेखाओं एवं तीन वृतों से युक्त है ।
[1/17, 16:50] ‪+91 98854 71810‬: हवन में विशेष प्रकार के पदार्थों की आहुति देने से कई प्रकार के रोग नष्ट होते हैं, इसे आधुनिक विज्ञान की भाषा में यज्ञ चिकित्सा कहते हैं | विश्व के कई देशों में रोगों को दूर करने के लिए यज्ञ चिकित्सा का प्रचलन बढ़ रहा है | कुछ रोगों के सन्दर्भ में नीचे दिए उपायों को पढ़ें –
# टाइफाईड – नीम, चिरायता, पितपापडा, त्रिफला सम्भाग शुद्ध गौ घृत मिश्रित आहुति दें
# ज्वरनाशक – अजवाइन की आहुति हवन में दें
# नजला, जुकाम, सिरदर्द – मुनक्का की आहुति हवन में दें
# नेत्रज्योति वर्धक – शहद की आहुति हवन में दें
# मस्तिष्क बलवर्धक – शहद व सफ़ेद चन्दन की आहुति दें
# वातरोग नाशक – पिप्पली की आहुति दें
# मनोविकार नाशक – गुग्गल और अपामार्ग की आहुति दें
# मानसिक उन्माद नाशक – सीताफल के बीज एवं जटामासी चूर्ण की आहुति दें
# पीलिया नाशक – देवदारु, चिरायत, नागरमोथा, कुटकी और वायविडग्ग की आहुति दें
# मधुमेह नाशक – गुग्गल, लोभान, जामुन के वृक्ष की छाल और करेला के डंठल संभाग की आहुति दें
# चित्त भ्रम नाशक – कचूर, खस, नागरमोथा महुआ, सफ़ेद चन्दन, गुग्गल, अगर, बड़ी इलायची, नरवी और शहद की आहुति दें
# क्षय नाशक – गुग्गल, सफ़ेद चन्दन, गिलोय बांसा का चूर्ण और कपूर की आहुति दें
# मलेरिया नाशक – गुग्गल, लोभान, कपूर, कचूर, हल्दी, दारुहल्दी, अगर, वायविडग्ग, जटामासी, वच, देवदारु, कठु, अजवाइन, नीम पत्ते, समभागचूर्ण, की आहुति दें
# सर्वरोग नाशिनी – गुग्गल, वच, गंध, नीम पत्ते, आक पत्ते, अगर, राल, देवदारु, छिलका सहित मसूर की आहुति दें
# जोड़ों का दर्द – निर्गुन्डी के पत्ते, गुग्गल, सफ़ेद सरसों, नीम पत्ते और राल संभाग चूर्ण की आहुति दें
# निमोनिया नाशक – पोहकर मूल, वच, लोभान, गुग्गल और अडूसा संभाग चूर्ण की आहुति दें
# जुकाम नाशक – खुरासानी अजवाइन, जटामासी, पशमीना कागज, लाल बूरा और संभाग चूर्ण की आहुति दें
# पीनस – बरगद पत्ते, तुलसी पत्ते, नीम पत्ते, वायविडग्ग, सहजने की छाल संभाग चूर्ण में धूप का चूरा मिलाकर आहुति दें
# कफ नाशक – बरगद पत्ते, तुलसी पत्ते, वच, पोहकर मूल, अडूसा पत्र सम्भाग चूर्ण की आहुति दें
# सिर दर्द नाशक – काले तिल और वायविडग्ग चूर्ण की आहुति दें
# चेचक, खसरा नाशक – गुग्गल, लोभान, नीम पत्ते, गंधक, कपूर, काले तिल और वायविडग्ग चूर्ण की आहुति दें
# जिव्हा तालू रोग नाशक – मुलहटी, देवदारु, गंधाविरोजा, राल, गुग्गल, पीपल, कुलंजन, कपूर और लोभान की आहुति दें
# कैंसर नाशक – गूलर फूल, अशोक छाल, अर्जन छाल, लोध्र, माजूफल, दारुहल्दी, हल्दी, खोपरा, तिल, जौ चिकनी सुपारी, शतावर, काकजंघा, मोचरस, खस, मंजीष्ठ, अनारदाना, सफ़ेद चन्दन, लाल चन्दन, गंधा, विरोजा, नरवी, जामुन पत्ते, धाय के पत्ते सम्भाग चूर्ण में दस गुना शक्कर औ एक गुना केसर से दिन में तीन बार हवन करें |
[1/17, 17:52] ओमीश: पुरी शंकराचार्य महाभाग के दिव्य अमृत वचन 
**************************************************

अविद्या , काम और कर्म को उपनिषदों में ह्रदयग्रंथि माना गया है ....कामना क्यों होती है ? किसके कारण होती है और किसकी होती है ?...इस पर विचार करना चाहिए ...अपने में त्रुटी या न्यूनता देखने पर ....सामने उस न्यूनता को पूर्ण करने की क्षमता को देखकर मन में कामना का उदय होता है और अंत में जो कमनीय पदार्थ है उसकी प्राप्ति हो जाने पर भी

कृतार्थता सुलभ नहीं होती ...कारण क्या है ?
हमको सुख चाहिए ...आनंद चाहिए ...मूल बात तो यही है और अयोग या संयोग के गर्भ से जो सुख प्राप्त होता है वह तो नश्वर होता है ...जो भी संयोग है उसका एक सिद्धांत है ..” कोई भी संयोग जब अयोग के गर्भ से टपकता है वियोग रूप गर्त में जाकर समा जाता है – यह एक शाश्वत सिद्धांत है !

भगवान ने कहा है सुख ही नही दुःख की भी तितिक्षा होना चाहिए ...दुःख तो अप्रिय है , उसके प्रति सहिष्णुता की भावना नही है ...विषयजन्य सुख भी प्राप्त करने से बचना चाहिए ..वह भी अगमापायी है माने आने जाने वाला है !

महाभारत में वैशम्पायन महाभाग का एक वचन है – प्यारी प्यारी वस्तु ...प्यारे प्यारे व्यक्ति का वियोग प्राप्त न हो...प्रिय का वियोग जिसको सुहाता न हो ...उसकी बुद्धि की बलिहारी इसी में है कि वह संयोग का पक्षधर न बनें !

आत्मतत्व तो असंग है ..उसमे किसी का संगम संभव नही .....वह लिप्त होने वाला तत्व नही है ...चाहे अनुकूल की प्राप्ति हो या प्रतिकूल की प्राप्ति हो ...वह सबका अलिप्त द्रष्टा या साक्षी है !

एक अद्भुत तथ्य है ....प्रकृति जो होती है वह अपने रहस्यों को प्रकट करती है लेकिन हमारा ध्यान केन्द्रित नहीं होता .....आप महानुभाव आस्तिक है ..इस तथ्य को समझते होंगे कि आपका हमारा यह पहला जन्म नहीं है ....देहात्मवादी हम नहीं है और हर व्यक्ति जातिस्मर योगी भी नहीं होता ....जातिस्मर योगी का अर्थ होता है पुर्वजन्मो का जिसे स्मरण हो ....ऐसा तो करोडो में कोई एक व्यक्ति होता है !

तो अनादी काल से अब तक जितने व्यक्तियों का हमें संयोग प्राप्त हुआ या जितने शरीरो का हमें संयोग प्राप्त हुआ .....इस शरीर के अतिरिक्त ....उन सभी को प्रकृति ने विस्मृति के गर्भ में डाल दिया या नहीं !

गंभीरतापूर्वक विचार करें तो आत्मतत्व असंग है ....उसकी असंगता इतनी उद्दीप्त है और प्रकृति उसकी असंगता के बल पर ख्यापित करती है कि अनादिकाल से जितनी वस्तु या व्यक्ति या जितने शरीरो का संयोग पूर्वजन्म में हुआ उसका स्मरण है क्या ? प्रकृति सबको विस्मरण के गर्त में डाल देती है ..मानो कुछ हुआ ही नहीं !

चौकाने वाली बात है ....कदाचित आपको दस मिनिट के लिए ही दिव्य चक्षु मिल जाएं ....भगवान नृत्यगोपाल की अनुकम्पा  से ....संकल्प करें – अनादिकाल से अब तक जितने शरीरो को शव बना चूका ....वे त्यागे गए शरीरो का दर्शन हो ....तो एक एक व्यक्ति के त्यागे गए शरीरो से ब्रह्माण्ड पट जाएगा ....!

अनादी व् अनंत में गणित की पहुँच नहीं होती ...महाभारत में गणित की परिभाषा दी गयी है ....गणेय की गणना का नाम गणित है ....असंख्य जो पदार्थ है उनमे गणित की पहुँच नहीं होती ....ज्यादा नही एक हजार पुर्वजन्मो के शरीर का दर्शन हो जाए ...कौनसे शरीर जिनको आपने हमने त्याग दिया ...और यह पता नही हो कि यह सब शरीर मेरे है ...इनमे कोई चमगादड़ , कोई अजगर , कोई सिंह , कोई सांप , कोई गन्धर्व , कोई राक्षस , आदि के हो ...तो हमको उनमे से किसी से डर लगेगा , किसी से घृणा होगी ...भागने का प्रयास करेंगे .लेकिन पता चले यह सब मेरे द्वारा त्यागे गए शरीर है ....जिनमे हमारी अहंता , ममता थी !

पुरीअष्टक  सहित जीवकला युक्त व्यक्ति पांच मिनिट पहले उसने जिस शरीर को त्यागा ...प्रारब्ध योग से जो प्राप्त था और प्रारब्ध कट जाने पर उसने शरीर को शव बना दिया ..... पुरीअष्टक  खींच लेता है ...कौन ? जीवतत्व ...

पुरीअष्टक  जीवकला को अपने त्यागे गए शरीर का दर्शन हो तो ...उसके प्रति तटस्थ रीती से विचार करने पर .मम बुद्धि बनेगी ...यह मेरा शरीर ....अब अहम् में कठिनाई होगी ...क्योंकि भावराज्य में उसे दूसरा शरीर प्राप्त है !

श्रीमद्भागवत के अनुसार – जीव को नविन शरीर की प्राप्ति ...इसी शरीर में पहले होती है ...फिर पुरातन शरीर का त्याग करता है .....प्राप्त शरीर का त्याग कब करेगा ...जब उसे उसके शुभाशुभ कर्मो के अनुसार शरीर की प्राप्ति हो जाएगी ...उसी शरीर में अहंता ममता निरूढ हो जाती है ..तब इस शरीर का त्याग करता है !

जैसे इसी शरीर में रहते हुए स्वप्न में हमें स्वप्न का व्यावहार सञ्चालन करने के लिए एक नया शरीर प्राप्त होता है ...उस समय इस स्थूल शरीर का विस्मरण होता है ....स्वप्न में और प्रयाणकाल [ मृत्यु ] में क्या अंतर होता है ....स्वप्न टूट जाने पर पुनः इस शरीर का अनुसन्धान हो जाता है ..लेकिन देहत्याग के समय भावराज्य में शुभ –अशुभ मिश्रित कर्मो के फलस्वरूप जैसा शरीर हमको मिलता है ..इसी शरीर के अंतर्गत ...उसी में तदात्म्यापत्ती हो जाती है , स्वप्नवत .......स्वप्न शरीर में जैसे अहमिति हो जाती है वैसे ही ....लेकिन इस शरीर में पुनः अहंता , ममता स्थापित करने का अवसर इसलिए नहीं मिलता क्योंकि इसका प्रारब्ध टूट जाता है !

उसी भाव शरीर को लेकर जीव अन्य लोकलोकान्तरो में जाता है ....संभावित शरीर जिसे कहते है उस शरीर की प्राप्ति अन्तर्यामी के संकल्प से उसे पहले हो जाती है ...इस शरीर का अत्यंत विस्मरण हो जाता है ...इस शरीर का स्मरण करने वाले प्रारब्धकर्म का नाश हो जाता है !
इस मध्य की स्थिति का नाम प्रायणकाल है .........प्रयाणकाल तो बाद में है !
प्रायणकाल माने – एक पदाधिकारी अवकाश प्राप्त कर रहा हो , या स्थानांतरण हो रहा हो तो अपने उत्तराधिकारी को चार्ज सौपता है ..सब समझाता है फ़ाइल आदि देता है .....इसी का नाम प्रायणकाल है ...द्रष्टान्त से – संक्रमणकाल कहलाता है ..प्रायणकाल !

तो मैंने एक संकेत किया – हमारा आपका यह पहला जन्म नहीं है ... पूर्वजन्मों में जो अरबो शरीरो को त्याग आए ...उनका स्मरण है क्या .....तो प्रकृति कितना उपकार करती है ...मान लो दस जन्म के पति , पत्नी , बच्चो का ध्यान हो जाए तो विक्षेप हुए बिना नहीं रह सकते !
जैसे अपने द्वारा त्यागा गया शरीर प्रेतात्मा – गरुड़पुराण के अनुसार – यह दाहसंस्कार आदि में भी तो विज्ञान है ....जो समासक्त प्राणी है ..प्रारब्ध शरीर में रहने का टूट गया ......यमराज की प्रेरणा से पुरीअष्टक  जीवकला इस शरीर से निकल चुकी है ..........जैसे कोई गाय किसी के घर के आँगन में खूंटे से दस बारह वर्षो से बंधी है ...अब उसे किसी दुसरे को देना है ...दान आदि से – और सामने वाला उसे ले जा रहा है लेकिन वह गाय रस्सी छोड़कर पुनः उस आँगन में खूंटे की ओर दौड़ती है ....वहीँ आना चाहती है तो सामान्य जीव की भी यही स्थिति होती है ...बहुत करुण स्थिति होती है .....शरीर में रहने वाला प्रारब्ध कट गया ...लेकिन अहंता , ममता नही कटी ....तो यमदूतो को बड़ा संघर्ष करना पड़ता है उस समय .....यमराज के दूत  पुरीअष्टक  जीवकला को कर्षित करके ले जाते है और जीव पुनः उस शरीर में घुसना चाहता है ....अंत में वही स्थिति होती है जो गाय को घर से ले जाते समय होती है ...वह दुर्दशा जीव की होती है !

जब अधिकृत व्यक्ति का दाहसंस्कार हो जाता है ..तब जीव सोचता है अब किसमें घुसु ......शोक तो होता है लेकिन घुसने का करण नही दिखाई देता ...राख में तो घुसने से रहा ..तब वह बेचारा शिथिल पड़ जाता है ...तब यमदूत उसको उर्द्ध्व लोक या नीचे नर्क में ले जाते है ...उर्ध्वलोक में तो यह गति नहीं होती ....नर्क की दुरी , यमराज के धाम की दुरी सब गरुड़पुराण में लिखी है ....यह दशा होती है !

तो अब तक हमने जितने शरीर छोड़े सब विस्मृत हो गए ...आत्मतत्व असंग है ..उसको किसी का संगम वस्तुतः प्राप्त होता ही नहीं है ....और जिसका संगम हम मानते है कालक्रम से उसका वियोग हो जाता है ..आत्मा की असंगता उच्छलित होती है ...जैसे उन शरीरो से हम  बिल्कुल  असंग है या नहीं ..उनकी स्मृति भी नहीं रह गयी .... उन्ही को आत्मा मानकर बहुतो से वैर  मोल लिया ...बहुतो से प्रेम किया ..लेकिन वे शरीर कहाँ है ?
जिनको जीवन में दुःख होता है वह उनके प्रिय के वियोग से होता है ...तो प्रिय का वियोग जिनको न भाता हो , न सुहाता हो ....उनकी बुद्धि की बलिहारी इसी में है कि वे संगम के पक्षधर न बनें !

!! हर हर महादेव !!🙏🙏💐
[1/17, 18:17] ‪+91 98854 71810‬: “व्यस्त रहना काफी नहीं है, व्यस्त तो चींटियाँ भी रहती हैं। सवाल यह है - हम किस लिए व्यस्त हैं?”

*कैसे आप भक्ति में रहे*
*****************

कैसे आप *भगवान का ध्यान करे.* कईबार लोग पूछते हैं कि हम कभी मंदिर नही जाते, हम पूजा-पाठ नही करते तो इसका मतलब क्या हम पापी हैं?

भगवान ने देखिये यहाँ नही कहा है कि आप मेरे दरवाजे पर आईये, मेरे दर पर आईये.भगवान ने कहा है कि जहाँ भी आप हैं,जो कुछ कर रहे हैं करते रहिये. किसी चीज को छोडने की जरूरत नही है. कुछ मत छोडिये लेकिन मेरा चिंतन अवश्य कीजिये.कैसे , सर्वेषु कालेषु , हर वक्त,हर समय, हर पल, हर क्षण मेरा *स्मरण करते रहिये.*

तो भगवान ने बहुत सुन्दर नुस्खा बताया है कि कैसे हम भगवान तक पहुंच सकते हैं, भगवान को याद करके. है न. भगवान को याद करना बहुत सहज है. बहुत ही सहज है। लेकिन इसके लिए हमें ये याद रखना होगा कि *भगवान से हमारा संबंध क्या है?*

अगर आपको कोई संबंध नजर नही आता तो आप कोई संबंध बना लीजिए. कोई संबंध जोड़ लीजिए. फिर उस संबंध को पोषित कीजिये.

धीरे-धीरे, धीरे-धीरे आप उस संबंध के आदी हो जायेंगे और जब वो संबंध आप भगवान से अच्छी तरह से जोड़ लेंगे तब आपको आदत हो जायेगी भगवान के बारे में सोचने की. यही तरीका है जिससे आप हर समय, हर क्षण भक्ति कर सकते हैं और आपका समय भी जाया नही होगा।

भगवान कहते मुझे याद करते हुए कीजिये सब काम तो देखिये याद करने का काम आँखों का नही. याद करने का काम नाक का नही है. याद करने का काम कान का नही है. याद करने का काम सिर्फ और सिर्फ मन का है. शुद्ध मन का है।

तो मन युद्ध नही कर रहा. तन युद्ध कर रहा है.मन खाना नही बना रहा तन खाना बना रहा है. मन पढाई नही कर रहा तन पढाई कर रहा है. है न. तो भगवान ने यहाँ तरीका बताया है कि भाई जो कुछ कर्त्तव्य आपका है उस कर्त्तव्य को आप पूरा करिये. काम करने के लिए भगवान मना नही करते.

अर्जुन ने एकबार कहा कि मै जाकर के संन्यास ले लेता हूँ.किसी गुफा में बैठकर के भगवान का नाम लूँगा.ये हिंसा मुझे नही करनी है.तो भगवान ने कहा कि नही,ये तो आपका कर्त्तव्य है क्योंकि आप योद्धा है, क्षत्रिय हैं *हे अर्जुन! तुम्हे सदैव कृष्ण रूप* में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए. अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमे स्थिर करके
[1/17, 18:21] प सुभम्: किसी शायर ने अपनी अंतिम यात्रा
का क्या खूब वर्णन किया है.....

था मैं नींद में और
मुझे इतना
सजाया जा रहा था....

बड़े प्यार से
मुझे नहलाया जा रहा
था....

ना जाने
था वो कौन सा अजब खेल
मेरे घर
में....

बच्चो की तरह मुझे
कंधे पर उठाया जा रहा
था....

था पास मेरा हर अपना
उस
वक़्त....

फिर भी मैं हर किसी के
मन
से
भुलाया जा रहा था...

जो कभी देखते
भी न थे मोहब्बत की
निगाहों
से....

उनके दिल से भी प्यार मुझ
पर
लुटाया जा रहा था...

मालूम नही क्यों
हैरान था हर कोई मुझे
सोते
हुए
देख कर....

जोर-जोर से रोकर मुझे
जगाया जा रहा था...

काँप उठी
मेरी रूह वो मंज़र
देख
कर....
.
जहाँ मुझे हमेशा के
लिए
सुलाया जा रहा था....
.
मोहब्बत की
इन्तहा थी जिन दिलों में
मेरे
लिए....
.
उन्हीं दिलों के हाथों,
आज मैं जलाया जा रहा था।
[1/17, 18:28] पं विजय जी: 🙏शुभ संध्या वंदन नमन 🙏
यः प्रीणयेत् सुचरितैः पितरं स पुत्रो
यद्भर्तुरेव हितमिच्छति तत्कलत्रम्।
तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रियं य-
देतत्रयं जगति पुण्यकृतो लभन्ते।।

जो अपने सदाचरणों से पिता को संतुष्ट कर देता है, वही सत्पुत्र है। जो सदा पति का हित चाहती है, वही वस्तुतः पत्नी है। जो विपत्ति और सुख में समान व्यवहार करता है, वही सच्चा मित्र है। इस संसार में  पुण्यशील लोग ही इन तीनों को प्राप्त करते हैं।

              || जय श्री राम ||
             ✍🍀💕
[1/17, 20:07] ‪+91 88087 68032‬: ॐ
*सम्बन्ध को जोड़ना*
      *एक कला है,*
          *लेकिन*
*"सम्बन्ध को निभाना"*
     *एक साधना है*

*जिंदगी मे हम कितने सही और कितने गलत है, ये सिर्फ दो ही शक्स जानते है..*

*"ईश्वर "और अपनी "अंतरआत्मा"*

*और हैरानी की बात है कि दोनों नजर नहीं आते...!*
ॐ❤$mile pls❤ॐ
[1/17, 21:10] ‪+91 70603 15143‬: आज संपूर्ण भारत मे हजारों भागवत कथा वाचक है परन्तु फिर भी लोगो के ह्दय मे सनातन धर्म का उत्कर्ष क्यों नही हो रहा
2 .क्या स्त्री का भागवत सप्ताह करना उचित है .
और यदि संयोग और स्वभाव  वस कथा के मध्य मे रजो धर्म से युक्त होने पर क्या कर्तव्य है ?
3. जो कथा वाचक विप्र अपनी पुत्री को कथावाचक वनाते है ,क्या ऊनका कार्य प्रशंसनीय है?
सर्वोत्तम कथा वाचक के लक्षण क्या है ?
जो स्त्रियां मासिक दोष से मुक्त हो गयी क्या सप्ताह की आचार्या बनने योग्य है ?

कृपया निशंकोच अपने कडवे उत्तर दीजिये?
[1/17, 21:17] ‪+91 98854 71810‬: इस विषय में बहुत चर्चा हुई कुछ गुरुजनो के मध्य में
क्या स्त्री को व्यासपीठ पर बैठकर कथा कहने
का अधिकार है ?
क्या स्त्री प्रणव या गायत्री मंत्र का जाप कर सकती है ?
क्या यह शास्त्रसम्मत् है ?
इस सम्बंध में आया है ,"
स्त्री शूद्र द्विजबन्धूनां स्रुति गोचरः।।"
अर्थात
स्त्री , शूद्र और द्विजबन्धु
को स्रुतियो का उच्चारण , परायण और वाचन
नहीं करना चाहिये । इसी आधार पर धर्मसम्राट्
स्वामी करपात्रीजी महाराज एवं अन्यान्य
महापुरुष और संतगण इसका विरोध करते आये हैं ।
कौशिकी संहिता मे भी आया है -
" अवैष्णव मुखाद् गाथा न श्रोतव्या कदाचन्।शुक शास्त्र
विशेषेण न श्रोतव्य वैष्णवात्।।वैष्णवोऽत्र स
विज्ञेयो यौ विष्णोर्मुखमुच्यते।ब्राह्मणोऽस्य
मुखमासीत श्रुतेः ब्राह्मण एव सः।।(कौ:सं0
6/19-30)। मुख्यतः पुराणो की कथा भागवत्
की कथा किसी वैष्णव संत या ब्राहमण मुख से
ही सुनना चाहिए।वे वैष्णव जो भगवान् विष्णु के
मुख है, भगवान् विष्णु के मुख केवल ब्राह्मण ही है।"
ब्राह्मणो मुखमासीत्।" भगवान् भोगको केवल
स्वीकार करते हैं - भोजन तो ब्राह्मण के मुख के
द्वारा ही करते हैं । अतः सभी पुराणो एवं
श्री मद् भागवत की कथा किसी विरक्त संत्
या ब्राहमण मुख से ही सुनना चाहिए
अन्यथा आपका अनुष्ठान व्यर्थ ही है । माताओ
को महीने में पांच दिनों के लिए अशुद्ध
होना निश्चित है ।
मान लो कोई
स्त्री व्यासपीठ पर बैठकर कथा सुना रही हो ,
अनुष्ठान में हो और उसी समय वह अशुद्ध हो जाय
तो तुम्हारा अनुष्ठान कैसे पूरा होगा । इसलिए
कथा कभी भी ब्राह्मण मुखसे श्रवण करना चाहिए
।स्त्रीयो को प्रण्व और गायत्री का उच्चारण
निषेध है, किंतु आजकल माताये खूब जप रही है,
सभी जगह समानता की बात हो रही है ।
इसका आध्यात्मिक पक्ष जो है सो है किन्तु
इसका वैज्ञानिक पक्ष भी है ।
सनातन धर्म शुद्ध
विज्ञान पर आधारित धर्म है ।हमारे ऋषियों ने हर
विषय को विज्ञान की कसौटी पर कसा है,
जांचा है फिर लिखा है।सर्वप्रथम , स्त्री एवं पुरुष
के शरीर की बनावट एक समान नहीं होती है ।
जितने भी वेदमंत्र है, उनका उच्चारण नाभि से
होता है । प्रण्व् और गायत्री तो वेदके मूल ही है
और इनका भी उच्चारण नाभि से ही होता है ।
माताओ के शरीर की बनावट पुरूषों से अलग है ।
माताये जननी है, नाभि के पास ही माताओ
का गर्भाशय स्थित होता है ।इन मंत्रो के
उच्चारण से माताओ के गर्भाशय पर विपरीत
प्रभाव पडता है और भविष्य में उन्हें
संतानोत्पत्ति में बाधाये होती है ।
गायत्री वेदमाता है, इनका दुरूगपयोग न हो
ऐसा शास्त्रो मे वर्णन आया पर भागवत कथाओं मे वर्णित है की माता पार्वती को भगवन् शिव जी महराज ने जो कथा एक वर्ष मे सुनाई थी वही कथा माता पार्वती जी ने दो वर्ष मे सुनाई थीं और नारायण लक्ष्मी जि को दो वर्ष मे कथा श्रवण कराये तो माता लक्ष्मी जी ने भी प्रभु को तीन वर्ष व्यास पीठ पर अशीन हो कर कथा श्रवण कराया और आज जो वार्ताएं होती है तो व्यास कोई नही है केवल मनो रंजन कला कार है आदरणीय शुक देव जी ने परीक्षित जी डीजे पर कथा नही सुनाई थी  न  ही प्रचार किया था न विश्राम लिया था प्रथम दिन जो आसन लगा की वो आसन पर आखिरी दिन ही आसन त्याग किया केवल चतुर्थ दिवस राजा परीक्षित का परीक्षण हेतु मानसिक कथा वाणी परिवर्तन विराम लिया था  सिर्फ जानने के लिए की जिसके लिए समय गवा रहा हूँ उसने सुना तो क्या सुना वही पर पुंछ लिया राजन भूख प्यास लगी होगी जल क
ग्रहण करलो बाकी विराम नही लिए आज के व्यास 9 बजे बैठे 12 बजे विराम 5 किलो फलाहार 3 बजे बैठे 6 बजे विराम इन्हें व्यास कह कर व्यास पीठ का अपमान न किया जाय ये सब रंगमंच कलाकार है बस ।शेष कल सुबह आज का पूरा दिन दुखद मयी रहा इस लिए चर्चा मे भाग नही ले पाया ।।महाकाल बाबा।।
[1/17, 21:53] पं अनिल ब: जय महाँकाल🙏🏼💐🙏🏼

"धीरे धीरे उम्र कट जाती हैं!
"जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है!

"कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है!
"और कभी यादों के सहारे जिंदगी कट जाती है!

"किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते!
"फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते!

"जी लो इन पलों को हंस के दोस्त!
"फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं  आते!! 💐🌻
🙏🙏🙏

1 comment:

  1. I am really impressed that you put together good and useful information on Trimbakeshwar pooja

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