Wednesday, January 25, 2017

धर्मार्थ वार्ता

[1/25, 09:16] ‪+91 98895 15124‬: .     ।।  🕉  ।।
    🌞 *सुप्रभातम्* 🌞
««« *आज का पंचांग* »»»
कलियुगाब्द..................5118
विक्रम संवत्................2073
शक संवत्...................1938
मास............................माघ
पक्ष............................कृष्ण
तिथी.......................त्रयोदशी
रात्रि 03.57 पर्यंत पश्चात चतुर्दशी
तिथि स्वामी.................काम
नित्यदेवी...............सर्वमंगला
रवि.....................उत्तरायण
सूर्योदय...........07.08.37 पर
सूर्यास्त...........06.10.21 पर
नक्षत्र...........................मूल
संध्या 06.46 पर्यंत पश्चात पूर्वाषाढा
योग........................व्याघात
दोप 03.13 पर्यंत पश्चात हर्षण
करण.........................गरज
दोप 03.13 पर्यंत पश्चात वणिज
ऋतु.........................शिशिर
दिन........................बुधवार

🇰🇾 *आंग्ल मतानुसार* :-
25 जनवरी सन 2017 ईस्वी ।

👁‍🗨 *राहुकाल* :-
दोपहर 12.38 से 02.00 तक ।

🚦 *दिशाशूल* :-
उत्तरदिशा -
यदि आवश्यक हो तो तिल का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें।

☸ शुभ अंक...............7
🔯 शुभ रंग...............हरा

💮 चौघडिया :-
प्रात: 07.11 से 08.32 तक लाभ
प्रात: 08.32 से 09.54 तक अमृत
प्रात: 11.16 से 12.38 तक शुभ
अप. 03.22 से 04.44 तक चंचल
सायं 04.44 से 06.06 तक लाभ
रात्रि 07.44 से 09.22 तक शुभ

🎶 *आज का मंत्र* :-
|| ॐ गौरीतनयाय नमः ||

📣 *सुभाषितम्* :-
*अष्टावक्र गीता - द्वितीय अध्याय :-* 
अहं कर्तेत्यहंमान
महाकृष्णाहिदंशितः।
नाहं कर्तेति विश्वासामृतं
पीत्वा सुखं भव॥१-८॥
अर्थात :-
अहंकार रूपी महासर्प के प्रभाववश आप 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मान लेते हैं। 'मैं कर्ता नहीं हूँ', इस विश्वास रूपी अमृत को पीकर सुखी हो जाइये॥८॥

🍃‎ *आरोग्यं* :-
अदरक के फायदे / लाभ –

    सर्दी खांसी मिटाए – सर्दी खांसी जुखाम होने पर अदरक तुरंत आराम देता है| गले में खराश होने पर आप अदरक के जूस में शहद मिलाकर कुछ दिन पियें| बहुत आराम मिलेगा| इसके अलावा गला नाक बंद होने पर अदरक की चाय पियें| इसे आप रोज पियें, गले से जुडी सारी परेशानी दूर होगी|
    अस्थमा – अस्थमा की बीमारी में अदरक आपको बहुत आराम देगा| इसके लिए अदरक के जूस में मैथी पाउडर व शहद मिलाकर खाएं| कुछ दिन रोज इसे लें, जल्द आराम मिलेगा|
    पाचन तंत्र मजबूत बनाये – अदरक से पाचनतंत्र मजबूत होता है| पेट से जुडी सारी परेशानी दूर होती है| अदरक का जूस पियें, इससे कब्ज की परेशानी दूर होगी, साथ ही ये गैस की परेशानी से भी निजात देता है| उल्टी जैसा महसूस होने पर ताजा अदरक का छोटा सा टुकड़ा लेकर उसे चबाएं| थोड़ी देर में ही आराम मिलेगा| पेट के अल्सर को अदरक के द्वारा आराम दिया जा सकता है|
    गठिया रोग दूर करे – जोड़ो का दर्द, गठिया में होने वाला दर्द को अदरक के द्वारा मिटाया जा सकता है| शरीर में होने वाले दर्द, सूजन को अदरक का नियमित उपयोग कर ठीक कर सकते है| अदरक के जूस को सीधा या शहद में मिलाकर दिन में एक बार जरुर पियें, इसे रोजाना पियें इससे आपको जरुर आराम मिलेगा| एक शोध के अनुसार जो लोग रोज अदरक का सेवन करते है उन्हें नए पुराने कोई भी तरह का दर्द हो ठीक हो जाता है|
    कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोके – अदरक खाने से शरीर में कैंसर की कोशिकाएं नहीं बढ़ पाती है| खासतौर पर ये स्तन कैंसर को रोकने में मदद करता है|

⚜ *आज का राशिफल* :-

🐏 *राशि फलादेश मेष* :-
लाभदायक समाचार मिलेंगे। कार्य के विस्तार की योजना बनेगी। नए संबंधों के प्रति सतर्क रहें। रुके धन की प्राप्ति में अड़चनें आएंगी।
                         
🐂 *राशि फलादेश वृष* :-
भूल करने से विरोधी बढ़ेंगे। व्यापार में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अपने काम से काम रखें। दूसरों के विश्वास में न आएं।
                      
👫 *राशि फलादेश मिथुन* :-
धन संबंधी कार्यों में विलंब से चिंता हो सकती है। परिवार में तनावपूर्ण माहौल रह सकता है। आवेश में कोई कार्य नहीं करें।
                        
🦀 *राशि फलादेश कर्क* :-
सामाजिक एवं राजकीय ख्याति में अभिवृद्धि होगी। अधूरे काम समय पर सफलता से होने पर उत्साह बढ़ेगा। वाहन चलाते समय सावधानी रखें।
                      
🦁 *राशि फलादेश सिंह* :-
व्यापार अच्छा रहेगा। आवास संबंधी समस्या का समाधान संभव है। संत-समागम होगा। व्यापार के कार्य से बाहर जाना पड़ सकता है।
        
👸🏻 *राशि फलादेश कन्या* :-
भोग-विलास में रुचि बढ़ेगी। जीवनसाथी से संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी। स्थायी संपत्ति के मामले उलझेंगे। महत्व के कार्य को समय पर करें।
                    
⚖ *राशि फलादेश तुला* :-
परिवार से संबंध घनिष्ठ होंगे। अति व्यस्तता रहेगी। व्यावसायिक श्रेष्ठता का लाभ मिलेगा। संतान की शिक्षा की चिंता समाप्त होगी।
                     
🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक* :-
व्यापार-व्यवसाय लाभप्रद रहेगा। खर्चों में कमी करने का प्रयास करें। कार्य में मित्रों की मदद मिलेगी। वाणी पर संयम आवश्यक है।
                       
🏹 *राशि फलादेश धनु* :-
आपके कामों को समाज में सम्मान प्राप्त हो सकेगा। आर्थिक मनोबल बढ़ेगा। पारिवारिक सुख, संतोष बढ़ेगा। उपहार मिलने के योग हैं।
            
🐊 *राशि फलादेश मकर* :-
रुका धन मिलने से धन संग्रह होगा। भागदौड़, बाधाओं व सतर्कता के बाद सफलता मिलेगी। व्यापार-व्यवसाय में लाभ होगा।
               
🏺 *राशि फलादेश कुंभ* :-
दांपत्य जीवन में गलतफहमी आ सकती है। कार्य में भागीदार सहयोग करेंगे। विकास की योजनाएं बनेंगी। अधिक व्यय न करें।
                
🐬 *राशि फलादेश मीन* :-
लाभदायक सौदे होंगे। विपरीत परिस्थितियों का सफलता से सामना कर सकेंगे। जीवनसाथी से आर्थिक मतभेद हो सकते हैं।

☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ।

।। 🐚 *शुभम भवतु* 🐚 ।।

🇮🇳🇮🇳 *भारत माता की जय* 🚩🚩
[1/25, 09:29] पं ऊषा जी: ~ संस्कृत भाषा का जादू ~
संस्कृत में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य सभी भाषाओं से उत्कृष्ट और विशिष्ट बनाती हैं:-
१.अनुस्वार (अं )
२.विसर्ग(अ:)
संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग।
-पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं,
यथा= राम: बालक: हरि: भानु: आदि,
-नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं,
यथा= जलं वनं फलं पुष्पं आदि।
अब जरा ध्यान दें, तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण होगा, उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाएगा, जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं।
उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है। भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा।
कपालभाति और भ्रामरी प्राणायामों से क्या लाभ है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि स्वामी रामदेव जी जैसे संतों ने सिद्ध करके सभी को बता दिया है। मैं तो केवल यह बताना चाहता हूँ कि संस्कृत बोलने मात्र से उक्त प्राणायाम अपने आप होते रहते हैं।
जैसे हिन्दी का एक वाक्य लें- ''राम फल खाता है",
इसको संस्कृत में बोला जायेगा- ''राम: फलं खादति",
राम फल खाता है, यह कहने से काम तो चल जायेगा, किन्तु 'राम: फलं खादति' कहने से भ्रामरी (अनुस्वार) और कपालभाति (विसर्ग) रूपी दो प्राणायाम हो रहे हैं। यही संस्कृत भाषा का रहस्य है।
संस्कृत भाषा में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होता जिसमें अनुस्वार और विसर्ग न हों। अत: कहा जा सकता है कि संस्कृत बोलना अर्थात् बोल-चाल योग साधना करना।
शब्द-रूप
संस्कृत की दूसरी विशेषता है, शब्द रूप। विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक ही रूप होता है, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 25 (मुलधातु सहित) रूप होते हैं। जैसे राम शब्द के निम्नानुसार २५ रूप बनते हैं।
यथा:- रम् (मूल धातु),
राम:, रामौ, रामा:,
रामं, रामौ, रामान्,
रामेण, रामाभ्यां, रामै:,
रामाय, रामाभ्यां, रामेभ्य:,
रामात्, रामाभ्यां, रामेभ्य:,
रामस्य, रामयो:, रामाणां,
रामे, रामयो:, रामेषु,
हे राम!, हेरामौ!, हे रामा:!,
ये २५ रूप सांख्य दर्शन के २५ तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार पच्चीस तत्वों के ज्ञान से समस्त सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वैसे ही संस्कृत के पच्चीस रूपों का प्रयोग करने से आत्म साक्षात्कार हो जाता है। और इन २५ तत्वों की शक्तियाँ संस्कृतज्ञ (संस्कृत बोलने वाले) को प्राप्त होने लगती है।
सांख्य दर्शन के २५ तत्व निम्नानुसार हैं:-
आत्मा= पुरुष,
अंत:करण= मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार,(कुल चार)
ज्ञानेन्द्रियाँ = नासिका, जिह्वा, नेत्र, त्वचा, कर्ण,(कुल पांच)
कर्मेन्द्रियाँ = पाद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक्,(कुल पांच)
तन्मात्रायें = गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, शब्द,(कुल पांच)
महाभूत = पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश,(कुल पांच)
द्विवचन
संस्कृत भाषा की तीसरी विशेषता है द्विवचन। सभी भाषाओं में एक वचन और बहु वचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है। इस द्विवचन पर ध्यान दें तो पायेंगे कि यह द्विवचन बहुत ही उपयोगी और लाभप्रद है।
जैसे :- राम शब्द के द्विवचन में निम्न रूप बनते हैं:- रामौ , रामाभ्यां और रामयो:। इन तीनों शब्दों के उच्चारण करने से योग के क्रमश: मूलबन्ध ,उड्डियान बन्ध और जालन्धर बन्ध लगते हैं, जो योग की बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियायें हैं।
संधि
संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो शब्द पास में आते हैं तो वहाँ संधि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है। उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है। ऐसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं।
''इति अहं जानामि" इस वाक्य को चार प्रकार से बोला जा सकता है, और हर प्रकार के उच्चारण में वाक् इन्द्रिय को विशेष प्रयत्न करना होता है,
यथा:- १. इत्यहं जानामि,
२.अहमिति जानामि,
३.जानाम्यहमिति,
४.जानामीत्यहम्,
इन सभी उच्चारणों में विशेष अभ्यांतर प्रयत्न होने से एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का प्रयोग अनायास ही हो जाता है। जिसके फलस्वरूप मन बुद्धि सहित समस्त शरीर पूर्ण स्वस्थ एवं निरोगी हो जाता है।
इन तथ्यों से सिद्ध होता है कि संस्कृत भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान की भाषा ही नहीं ,अपितु मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की कुंजी है। यह वह भाषा है, जिसके उच्चारण करने मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो सकता है। इसीलिए इसे देवभाषा और अमृतवाणी कहा जाता हैं।
अतः हम सबको नित्यप्रति कुछ श्लोक याद कर चलते फिरते समय बोलते रहना चाहिये।
*यदा-यदा हि धर्मस्य.
ग्लानिर्भवति भारत
.........अभ्युत्थानमधर्मस्य
तदात्मानं सृजाम्यहम् ।
*.....परित्राणाय साधूनाम्
विनाशाय च दुष्कृताम्....
धर्मसंस्थापनार्थाय
.....सम्भवामि युगे-युगे...।
(अन्य गण से प्राप्त)
[1/25, 09:41] ओमीश: हे वीणावादिनी वाणी का वर दे!
________________________

नव रङ्ग शुभ नव राग नय
नव छन्द मनहर शब्द नव
नव द्योत भर उर तमस हर
निज उर गदित समभावों को वाणी का आकार दें!
                       हे! वीणावादिनी वाणी का वर दे!

प्रभुचित्त दत्त रहे  समाहित
ज्ञान   और   वैराग्य  पुष्टित
नयन में नव  आश  ईप्सित
निज नयन सञ्चित स्वप्न हम विकच नयन देखें!
                   हे! वीणावादिनी वाणी का वर दे!

होठों  पे मन   के भाव  हों
आँखों   में   सच्ची बात हो
निज   प्रेम  का  संसार  हो
"दर्शन" रहे तम पर विजय माँ! दीप का वरदान दे!
                      हे! वीणावादिनी वाणी का वर  दे!

नव  आकृति  नव  रूप सुंदर
नव  ज्योत्स्ना  शोभा मनोहर
नव पँखुड़ी से खुलते हृद् स्वर
नव प्रकृति नव पुष्प पुष्पित ऐसा हृद् का भाव दे!
                     हे! वीणावादिनी वाणी का वर दे!

कोविद कलितकविता सुहागन
कवि लेखनी  को कर  सुहागन
कवि कल्पना षोडशी  सुहागन
ढक लें हृद् तरु कुसुम बन हम हे ज्ञानचरण धर दे!
                       हे! वीणावादिनी वाणी का वर दे!

आपका सुहृद्- नीतिन् मिश्र "दर्शन"

कृपया मूलरूप में प्रेषित करें।

सर्वेभ्यो नमः। वन्दे वाणीविनायकौ।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[1/25, 09:52] ‪+91 98854 71810‬: बहुत से विद्वानों को मोक्ष व स्वर्ग को
एक समझने की गलतीयाँ करते
  देखा गया है, और देख भी रहे  है।

   देवता इन्द्र समेत स्वर्ग मे
          विहार करते हैं ।
और मोक्ष तो प्रभु के चरणकमल
        का साम्राज्य है ।

   और जहाँ देवता भी जाने को
                तरसते है ।

      कारण वहाँ जाये बिना मनुष्य
         जन्म पाए यह असम्भव है ।

        मनुष्य जन्म पाकर भक्ति से
               मोक्ष पाया जाता है।

           जो इन्द्रादि देवताओ को
                    भी दुर्लभ है ।।
[1/25, 10:11] ‪+91 94153 60939‬: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

त्वं ब्रह्म परमं
साक्षादनाद्यन्तमपावृतम्।
सर्वेषामपि भावानां
त्राणस्थित्यप्ययोद्भवः।।
    
              –भाग0 11/16/1

हे भगवन ! आप तो स्वयं परब्रह्म हैं। न तो आपका आदि है और न ही आपका अंत है।आप हर प्रकार के आवरण से रहित हैं तथा अद्वितीय परम तत्त्व हैं।आप ही समस्त प्राणियों और पदार्थों की उत्पत्ति , स्थिति , रक्षा और प्रलय के कारण हैं। आप समस्त प्राणियों में स्थित हैं। यद्यपि आप सभी प्राणियों में अवस्थित हैं फिर भी जिसने अपने मन और अपनी इंद्रियों को अपने वश नहीं कर रखा है, वह आपको जान ही नहीं सकता। मन और इन्द्रियों को वश में रखनेवाले ब्रह्मवेत्ता महापुरुष ही आपको जान सकते हैं।

           –रमेशप्रसाद शुक्ल

           –जय श्रीमन्नारायण।
[1/25, 10:21] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: *भक्ति पावनत्व*

1. मय्यर्पितात्मनः सभ्य ! निरपेक्षस्य सर्वतः।
मयाऽऽत्मना सुखं यत्तत् कुतः स्याद् विषयात्मनाम्।।
अर्थः
हे साधो उद्धव ! सर्वथा निष्काम बने और मुझे आत्मसमर्पण कर मुझसे आत्मस्वरूप हुए पुरुषों को जो सुख मिलता है, वह विषयों में डूबे मनुष्यों को कहाँ मिल सकेगा?

2. अकिंचनस्य दांतस्य शांतस्य समचेतसः।
मया संतुष्टमनसः सर्वाः सुखमया दिशः।।
अर्थः
पूर्ण अपरिग्रही, इंद्रियजयी, शांत, समदर्शी और मेरी प्राप्ति से संतुष्ट-चित्त मेरे भक्त के लिए दसों दिशाएँ सुखमय होती हैं।

3. न पारमेष्ठयं न महेंद्र-धिष्ण्यं
न सार्वभौमं न रसाधिपत्यम्।
न योग-सिद्धीर् अपुनर्भवं वा
मय्यर्पितात्मेच्छिति मदुविनान्यत्।।
अर्थः
मुझे आत्मसमर्पण करने वाला मेरा अनन्य भक्त मुझे छोड़कर ब्रह्मलोक, महेंद्रपद, सार्वभौमत्व, पाताल का आधिपत्य, अनेक योग सिद्धियाँ या मोक्ष तक- किसी की भी अभिलाषा नहीं रखता।

4. निरपेक्षं मुनि शांतं निर्वैरं समदर्शनम्।
अनुव्रजाम्यहं नित्यं पूयेयेत्यंघ्रि-रेणुभिः।।
अर्थः
निष्काम, शांत, निर्वैर और समदृष्टि मुनि की चरण-धूलि से मैं पवित्र होऊँ, इसलिए (उनके कदम पर कदम रखते हुए) सदैव उनके पीछे-पीछे चलता रहता हूँ।

5. निष्किंचना मय्यनुरक्त चेतसः
शांता महांतोऽखिल-जीव-वत्सलाः।
कामैरनालब्ध-धियो जुषन्ति यत्
तन्नैरपेक्ष्यं न विदुः सुखं मम॥
अर्थः
किसी भी उपाधि अर्थात संग्रह से रहित, मुझमें अनुरक्त-चित्त, शांत, विशाल हृदय, सब प्राणियों पर प्रेम करने वाले, किसी भी प्रकार की वासना से अस्पृष्ट-बुद्धि मेरे भक्त जिस निरपेक्ष सुख का अनुभव करते हैं, वह दूसरों की समझ में नहीं आ सकता।

6. बाध्यमानोऽपि मद्भक्तो विषयैरजितेंद्रियः।
प्रायः प्रगल्भया भक्त्या विषयैर् नाभिभूयते॥
अर्थः
मेरा जो भक्त इंद्रियों पर विजय नहीं पा सका है और इसी कारण विषय जिसे बार-बार परेशान करते हैं, (उसकी) मुझमें दृढ़ भक्ति होने पर साधारणत: विषय उसे नहीं सताते।

7. भक्त्याहमेकया ग्राह्यः श्रद्धयाऽऽत्मा प्रियः सताम्।
भक्तिः पुनाति मन्निष्ठा श्वपाकानपि संभवात्॥
अर्थः
सज्जनों का अत्यंत प्रिय और उनकी एकमात्र आत्मा में केवल श्रद्धापूर्ण एकनिष्ठ भक्ति से ही वश होता हूँ। मेरी अनन्यभक्ति चांडालों को भी उनके हीन जन्म-कुल से पावन कर देती है।

8. कथ विना रोमहर्षं द्रवता चेतसा विना।
विनाऽऽनंदाश्रु-कलया शुद्धयेद् भक्त्या विनाऽऽशयः॥
अर्थः
जब तक शरीर पुलकित नहीं हो उठता, हृदय गद्गद नहीं हो जाता, नेत्रों से आनंदत के अश्रु छलकने नहीं लगते, भक्ति नहीं होती, तब तक (मलिन) हृदय शुद्ध कैसे होगा?

9. वाग् गद्गदा द्रवते यस्य चित्तं
रुदत्यभीक्ष्णं हसति क्वचित् च।
विलज्ज उद्गायति नृत्यते च
मद्भक्ति-युक्तो भुवनं पुनाति॥
अर्थः
प्रेम से जिसकी वाणी गद्गद हो गयी है, चित्त प्रेमार्द्र हो गया है, प्रेम के अतिरेक से जो लगातार आँसू बहाता है, कभी हँसता है, तो कभी लाज छोड़कर ज़ोर-ज़ोर से गाता-नाचता है, ऐसा मेरा भक्त सारे जगत को पवित्र करता है।

10. यथाग्निना हेम मलं जहाति
ध्मातं पुनः स्वं भजते च रूपम्।
आत्मा च कर्मानुशयं विधूय
मद्भक्ति-योगेन भजत्यथो माम्॥
अर्थः
जैसे आग में डालकर तपाया हुआ सोना अपना मैल त्यागकर पुनः अपना असली निखरा रूप प्राप्त कर लेता है, वैसे ही मेरे भक्त की आत्मा मेरे भक्तियोग से कर्म वासना (यानि चित्त का मैल) धुल जाने पर तत्काल मेरे स्वरूप को प्राप्त हो जाती है।

11. यथा यथाऽऽत्मा परिमृज्यतेऽसौ
मत्पुण्यगाथा-श्रवणाभिधानैः।
तथा तथा पश्यति वस्तु सूक्ष्मं
चक्षुर् यथैवांजन-संप्रयुक्तम्॥
अर्थः
मेरी पुण्य-गाथाओं के श्रवण और कीर्तन से ज्यों-ज्यों आत्मा निर्मल होती जाती है, त्यों-त्यों अंजन डालने पर आँखों को जिस तरह गुप्त बातें दीखने लगती हैं, उस तरह मेरे भक्त को सूक्ष्म यानि इंद्रियों से अगोचर परमात्म-वस्तुएँ दिखाई पड़ने लगती हैं।

12. विषयान् ध्यायतश् चित्तं विषयेषु विषज्जते।
मामनुस्मरतश् चित्तं मय्येव प्रविलीयते॥
अर्थः
विषयों का ध्यान करने वाला चित्त विषयों मे आसक्त हो जाता है। इस तरह दिन रात मेरा चिन्तन करने वाले का चित्त मुझमें ही लीन हो जाता है।
13. तस्मादसदभिध्यानं यथा स्वप्न-मनोरथम्।
हित्वा मयि समाधत्स्व मनो मद्भाव-भावितम्॥
अर्थः
इसलिए स्वप्न-मनोरथों की तरह रहने वाली मिथ्याभूत असत वस्तुओं का चिन्तन छोड़कर श्रद्धायुक्त भक्ति से भरा अपना चित्त मुझमें सुस्थिर कर दो। *संकलित*
[1/25, 10:49] ‪+91 96859 71982‬: जय श्री माँ
         सौन्दर्य-लहरी
              ।। ३४ ।।
शरीरं त्वं शंभो: शशिमिहिरवक्षोरूहयुगं,
तवात्मानं मन्ये भगवति नवात्मानमनघम्।
अतः शेषः शेषीत्ययमुभयसाधारणतया ,
स्थित: सम्बन्धो वां समरसपरानन्दपरयो:।।
------------------------------------------------------------
भावार्थ-
     हे भगवति ! मैं ऐसा मानता हूँ कि तुम्हारा जो शरीर है वह शंभु का है जिसके वक्षःस्थल पर सुर्य और चन्द्रमा रुपी दो स्तन उभरे हुए हैं। तुम्हारी आत्मा विशुद्ध नौ व्यूह-काल,कुल,नाम,ज्ञान,चित्त,नाद,बिन्दु,कला और जीव रुपी शंकर का शरीर है। इसलिए भोग-भोगी का यह संबंध शेष और शेषीवत् तुम दोनों में परस्पर समान रूप से स्थित है। दोनों मार्गों का इतना एक रसपना है कि जैसे विशेषण विशेष्य का, अर्थात् दोनों मार्ग परस्पर सापेक्षित है और एक दूसरे के बिना अपूर्ण है। दोनों को एकता का समरसपना दोनों की अभिन्नता प्रकट करता है जैसे शक्कर और उसकी मधुरता । यह अधिदैव रुप है अर्थात् चित्त और आनन्द का जोड़ा ही ब्रह्म और शक्ति का जोड़ा है। सूर्य से विश्व को प्राण शक्ति प्राप्त होती है एवं चन्द्रमा से सोम रस की प्राप्ति। इसीलिए जगज्जननी प्रकृति के दोनों स्तनों से उपमित किया गया है।
      🙏🏼कृष्णप्रेमी-कनिका 🙏🏼
[1/25, 12:01] पं अनिल ब: धैर्य यस्य पिता क्षमा च जननी ,
शान्तिः सदा गेहिनी ।
सत्यं सूनुरयं दया च भगिनी ,
भ्राता मनस्संयमः ।
शय्या भूभितलं विशेपि वसनं ,
ज्ञानामृतं भोजनम् ।
एषः यस्य कुटुम्बिनो वद सखे  ,
कस्माद्भयं योगिनः ॥

भावार्थ -जिसका पिता धैर्य है , माता क्षमा है , पत्नी शान्ति है , पुत्र सत्य है , बहन दया है , भाई निग्रह है , शय्या भूमि है , वस्त्र दिशाएँ हैं , भोजन ज्ञानामृत है - ऐसा जिसका परिवार है , उस योगी को किससे भय हो सकता है ? ऐसा परिवार मोक्षदाता होता है ।
जय महाँकाल
🙏🌹सुप्रभातम् 🌹🙏
[1/25, 12:33] ओमीश: 🙏सर्वेभ्यो नमो नमः🙏
कल समयाभाव के कारण क्षमा सहित आज मैं, ओमीश परम आदरणीय विप्रकुलभूषण कर्मकांड भास्कर राजनाथ गुरुजी जी का ह्रदय पटल की उत्कंठित अविरल धारा से अवगाहित स्नेह जो की गुरूजी के आशिर्वाद स्वरूप धर्मार्थ रूपी बगिया मे बहकर अमृतमय बूंद बन कर बरसा उसे अवगाहन तथा अभिनंदन करता हूँ। तथा सबको अवगत कराना चाहूंगा कि जिनके छत्र-छाया में पल्लवित ब्राह्मण बटुक अल्प अवधि में ही धुरन्धर आचार्य हो जाते है।जो नवी मुंबई के आचार्य गणों के शिरमौर्य है। जिनकी क्षत्र छाया में अनेकों यज्ञ सम्पन्न होते है ऐसे ब्राह्मण कुल भूषण ग्राम प्रधान (पुरे बघेल)का मै इस आश्रम में हार्दिक स्वागत वंदन तथा अभिनन्दन करता हूँ।🌷🌺🍃🍇❤🌿💐🍐🍊🍋🌸🌺🌼🌻🌹🌷💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
[1/25, 14:14] ‪+91 98896 25094‬: समंदर सारे शराब होते तो सोचो कितना बवाल होता,
हक़ीक़त सारे ख़्वाब होते तो सोचो कितना बवाल होता..!!

किसी के दिल में क्या छुपा है ये बस ख़ुदा ही जानता है,
दिल अगर बेनक़ाब होते तो सोचो कितना बवाल होता..!!

थी ख़ामोशी हमारी फितरत में तभी तो बरसो निभ गयी लोगो से,
अगर मुँह में हमारे जवाब होते तो सोचो कितना बवाल होता..!!

हम तो अच्छे थे पर लोगो की नज़र में सदा बुरे ही रहे,
कहीं हम सच में ख़राब होते तो सोचो कितना बवाल होता..
[1/25, 15:12] P Alok Ji: * जनि जल्पना करि सुजसु नासहि नीति सुनहि करहि छमा।
संसार महँ पूरुष त्रिबिध पाटल रसाल पनस समा॥
एक सुमनप्रद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागहीं।
एक कहहिं कहहिं करहिं अपर एक करहिं कहत न बागहीं॥

भावार्थ:-व्यर्थ बकवाद करके अपने सुंदर यश का नाश न करो। क्षमा करना, तुम्हें नीति सुनाता हूँ, सुनो! संसार में तीन प्रकार के पुरुष होते हैं- पाटल (गुलाब), आम और कटहल के समान। एक (पाटल) फूल देते हैं, एक (आम) फूल और फल दोनों देते हैं एक (कटहल) में केवल फल ही लगते हैं। इसी प्रकार (पुरुषों में) एक कहते हैं (करते नहीं), दूसरे कहते और करते भी हैं और एक (तीसरे) केवल करते हैं, पर वाणी से कहते नहीं॥
[1/25, 16:25] पं अर्चना जी: 💐💐हे कान्हां मेरे श्याम 💐💐

लगन तुमसे लगा बैठे, जो होगा देखा जायेगा,
तुम्हीं से प्यार कर बैठे,जो होगा देखा जायेगा,
तुम्हें अपना बना बैठे ,जो होगा देखा जायेगा।।
1)कभी दुनियाँ से डरते थे,तो छुप-छुप याद करते थे- २
    लो अब पर्दा उठा बैठे, जो होगा ...............
2)कभी ये ख्याल था दुनियाँ हमें बदनाम कर देगी,-2
    शर्म अब छोड़कर बैठे, जो होगा..........
3)दीवाने बन गए तेरे ,तो अब दुनियाँ से क्या लेना,-२
    तुझे दुनियाँ बना बैठे,जो होगा................
4)तेरा ये रूप ऐसा है भुला दे सारी दुनियाँ को,-2
    तेरे चरणों में आ बैठे, जो होगा..............
5)तेरी बन्सी की धुन से ही,हमारी साँसें चलती हैं -2
    लो सुध-बुध हम गवां बैठे जो होगा देखा जाएगा
       लगन तुझसे लगा  बैठे जो होगा देखा जायेगा,
       तुम्हीं से प्यार से प्यार कर बैठे, जो होगा देखा जायेगा,
      तुम्हें अपना बना बैठे ,जो होगा देखा जायेगा ।।
          💐💐ॐ शिवः हरिः💐💐
[1/25, 17:03] ‪+91 94153 60939‬: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः
शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥

              – वा॰रा॰ १.२.१५

अयमेव निखिल­काव्य­जगति प्रथमो रचना­विशेषः। शापात्मकोऽस्यार्थः – हे निषाद नीचैः सीदति तिष्ठतीति निषादस्तत्सम्बुद्धौ निषाद। निम्न­गामिन्निति भावः। त्वं शाश्वतीः समाः अनन्ताः समा वर्षाणि यावत् प्रतिष्ठां सम्मानं मा अगमः मा प्राप्नुहि यत् यतो हि क्रौञ्च­मिथुनात् क्रौञ्च­युग्मतः काम­मोहितमेकं पुरुषमिति भावस्त्वम् अवधीः। पुरुषं हत्वा शृङ्गार­रसमपि करुण­रसे परिवर्तितवानिति भावः।

विचारे कृतेऽयं श्लोकः सर्व­काव्य­प्राथम्य­भाक्तयाऽमङ्गलशापोक्तिमत्तया कथं परिणमितः। अतोऽपरा व्याख्या – मा सीता। इन्दिरा लोक­माता मा (अ॰को॰ १.१.२७क) इति कोशात्। सैव मा सीता नितरां सीदति तिष्ठति यस्मिन् स मानिषादः। अधिकरणे घञ्। अथवा मायां सीतायां नितरां सीदति तिष्ठति यः स मानिषादः। कर्तरि घञ्। श्रीरामचन्द्र इति भावः। अर्थात् – हे मानिषाद सीतानिवास श्रीराम त्वं भवान् शाश्वतीः समाः अनन्त­वर्षाणि यावत् प्रतिष्ठां सम्मानं पूजाम् अगमः प्राप्तवान् यत् यतो हि क्रौञ्च­मिथुनात् क्रौञ्चयोः पक्षिवद्रावण­मन्दोदर्यो­र्मिथुनाद्युग्मात् काम­मोहितं कामिनम् एकं रावणम् अवधीः हतवान्। रावणं हत्वा भवता महती प्रतिष्ठा समर्जितेति श्लोकस्य भावः। अयमेव सर्व­प्रथमः श्लोकोऽनन्तरं नारदोपदिष्ट­सङ्क्षिप्त­सीताराम­कथां विगतव्यथां भगवान् वाल्मीकिरादि­काव्यरूपां पञ्चशतसर्गात्मिकां षट्काण्डां रामायण­नामधेयां चतुर्विंशति­साहस्री­संहितामिमां काव्यवसन्त­कोकिलः कोकिल­काकलीमिव चुकूज। इदमितिहास­भूतं वेद­सम्मतम्।

             –जय श्रीमन्नारायण।

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