Wednesday, January 25, 2017

धर्मार्थ वार्ता

[1/24, 13:51] पं अर्चना जी: ⭕बहुत ही सुन्दर प्रसंग ⭕

🍁🍁 एक दिन श्री राम जी ने हनुमान जी से कहा कि
हनुमान ! मैंने तुम्हें कोई पद नहीं दिया ।मैं चाहता हूँ कि तुम्हें कोई अच्छा सा पद दे दूँ ।क्योंकि सुग्रीव को तुम्हारे कारण किष्किन्धा का पद मिला, विभीषण को भी तुम्हारे कारण लंका का पद मिला और मुझे भी तो तुम्हारी सहायता के कारण ही अयोध्या का पद मिला ।परंतु तुम्हें कोई पद नहीं मिला ।

हनुमानजी ने कहा --- प्रभु  ! सबसे ज्यादा लाभ में तो मैं हूँ।
भगवान राम ने पूछा --कैसे।

हनुमान जी ने कहा -सुग्रीव को किष्किन्धा का एक पद मिला, विभीषण को लंका का एक पद मिला और आप को भी अयोध्या एक ही पद मिला ।
हनुमानजी ने भगवान के चरणों में सिर रख कर कहा कि प्रभु ! जिसे आपके ये दो दो पद मिले हों, वह एक पद क्यों लेना चाहेगा ।
भगवान राम हनुमानजी की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए ।

सब कै ममता  ताग बटोरी।
मम पद मनहि बाँधि वर डोरी।।

🙏🌱हरी बोल🌱🙏🏼💐
[1/24, 14:46] ‪+91 98896 25094‬: कूड़ा करकट रहा सटकता, चुगे न मोती हंसा ने
करी जतन से जर्जर तन की लीपापोती हंसा ने
पहुँच मसख़रों के मेले में धरा रूप बाजीगर का
पड़ा गाल पर तभी तमाचा, साँसों के सौदागर का
हंसा के जड़वत् जीवन को चेतन चाँटा बदल गया
तुलने को तैयार हुआ तो पल में काँटा बदल गया

रिश्तों की चाशनी लगी थी फीकी-फीकी हंसा को
जायदाद पुरखों की दीखी ढोंग सरीखी हंसा को
पानी हुआ ख़ून का रिश्ता उस दिन बातों बातों में
भाई सगा खड़ा था सिर पर लिए कुदाली हाथों में
खड़ी हवेली के टुकड़े कर हिस्सा बाँटा बदल गया

खेल-खेल में हुई खोखली आख़िर खोली हंसा की
नीम हक़ीमों ने मिल-जुलकर नव्ज़ टटोली हंसा की
कब तक हंसा बंदी रहता तन की लौह सलाखों में
पल में तोड़ सांस की सांकल प्राण आ बसे आंखों में
जाने कब दारुण विलाप में जड़ सन्नाटा बदल गया

मिला हुक़म यम के हरकारे पहुँचे द्वारे हंसा के
पंचों ने सामान जुटा पाँहुन सत्कारे हंसा के
धरा रसोई, नभ रसोइया, चाकर पानी अगन हवा
देह गुंदे आटे की लोई मरघट चूल्हा चिता तवा
निर्गुण रोटी में काया का सगुण परांठा बदल गया
[1/24, 15:30] पं अर्चना जी: 🌹ॐ शिवः हरिः🌹
💐💐हर हर महादेव 💐💐
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
न चाहिए एहसान किसी का जहान मे ,
रखती हूँ इक तलवार मैं,अपनी जुबान मे !
मैं हिन्द की बेटी हूँ ,जन्मी हिन्दोस्तान मे ॥
🌺🗡🗡🗡🗡🗡🗡🌺
1--दुश्मन की न होगी खैर,जो आएगा सामने,
दूँगी उसका जबाब मैं उसकी जुबान मे!
कुछ तो कर ही जाना है,जो याद रहे जहान में ॥
मैं हिन्द की.......
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
2--न दौर वो रहा,छुपूँ घूंघट की आड़ मे ,
है "वीरांगनाओं का रक्त,अपने रक्त धार मे !
करती हूँ वीरों सा शृंगार ,अपने व्यवहार में ॥
मैं हिन्द की बेटी.........
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
3--है "मन में ये लगन कि कुर्बा कर दूँ ये जन्म ,
फिरभी कसक रहेगी, सौ जीवन भी है बहुत कम !
हो अपना नाम अमर,बलिदानों की कतार में ॥
मैं हिन्द की बेटी हूँ जन्मी हिन्दोस्तान में ॥ 
                        अर्चना भूषण त्रिपाठी द्वारा रचित ।
🌺🌺💐👏🏻💐🌺🌺
[1/24, 16:53] ओमीश: अगर किसी व्यक्ति का उसकी पत्नी जीवन भर सम्मान करती है तो वो हर किसी सम्मान से बड़ी उपलब्धि है।

कंचन काया तुमने प्रिय वर्षों तप कर पाई है,
स्वयं कसौटी बनकर हमने तुमको बात बताई है।
विश्व सुन्दरी मुझको तेरे सम्मुख फीकी लगती है,
गऊ लोक की परी अलौकिक मेरे हिस्से आई है।

कल एक गौ-माता की पत्रिका में पढ़ा कि स्वर्ग में गौ-लोक अलग एवं ऊँचा स्थान रखता है वहाँ की परी अलौकिक होती हैं वो बडी सुन्दर विदूषी होती हैं जब कभी वो स्वर्ग में आती हैं तो इंद्र और सभी अप्सरा प्रणाम करते हैं वो कभी नृत्य नही करती और सात सौ वर्ष तप करके उनमें से एक उड़कर धरती पर आती है और जिसका वरण करती है वो बहुत ही सौभाग्यशाली होता है वो जो चाहता है उसे मिल जाता है तो ये पंक्तियाँ बनी।
[1/24, 16:54] P Alok Ji: अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहुभाषते। अविश्वस्ते विश्वसिति मूढ़चेता नराधमः॥

भावार्थ :
मनुष्यों में सबसे अधम अर्थात नीच पुरुष वही है, जो बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है और बिना पूछे अधिक बोलता है साथ ही जिसपर विश्वास न किया जाये उसपर भी विश्वास करता है, उसे ही मूढ़, चेता, तथा अधम पुरुष कहा गया है ।
एकोधर्मः परं श्रेयः क्षमैका शांतिरुत्तमा विद्यैका परमा तृप्तिः अहिंसैका सुखावहा॥

भावार्थ :
एक ही धर्म श्रेठ एवं कल्याणकारी होता है । शान्ति का सर्वोत्तम रूप क्षमा है, सबसे बड़ी तृप्ति विद्या से प्राप्त होती है तथा अहिंसा सुख देने वाली है ।
दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा। यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते॥

भावार्थ :
यदि किसी को देखने से या स्पर्श करने से, सुनने से या बात करने से हृदय द्रवित हो तो इसे स्नेह कहा जाता है ।
उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्। सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्॥

भावार्थ :
उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।
अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्। शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥

भावार्थ :
अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये ।
पातितोऽपि कराघातै-रुत्पतत्येव कन्दुकः। प्रायेण साधुवृत्तानाम-स्थायिन्यो विपत्तयः॥

भावार्थ :
हाथ से पटकी हुई गेंद भी भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की ओर उठती है, सज्जनों का बुरा समय अधिकतर थोड़े समय के लिए ही होता है ।
न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति। अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥

भावार्थ :
कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आ��
[1/24, 17:53] ‪+91 96859 71982‬: उच्चैस्तरां मत्सरिणोऽपि लोकाःकुर्वन्ति संसत्सु पुरः प्रशंसाम्।
न पण्डितैर्विश्वसितव्यमत्र तत्सौहृदं यत् क्रियते परोक्षम्॥

किसी व्यक्ति की सभा में बैठकर तो उससे ईर्ष्या रखने वाले भी उच्च स्वर में उसकी प्रशंसा कर देते हैं, परन्तु विद्वान् मनुष्य को उन पर विश्वास नहीं करना चाहिये।
सच्चा सौहार्द्र वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाये।🙏🏼🙏🏼
[1/24, 18:57] पं ऊषा जी: 📒✂विद्याविघ्नकराणि 📚✂
द्यूतं पुस्तकशुश्रूषा नाटकासक्तिरेव च ।
स्त्रियस्तन्द्री च निद्रा च विद्याविघ्नकराणि षट् ॥
शुश्रूषा श्रोतुमिच्छा । तन्द्री आलस्यम् ।
[1/24, 20:46] पं विद्यानिधि जी: ।।यज्ञानाम यद् अग्निहोत्रम् शीर्षम।।

अनेन यागेन प्रतिदिनं प्रातः काले सायंकाले च सूर्यस्य उपासना क्रियते।

यज्ञेस्मिन मुख्यतः दुग्धस्य, गौणतः यवागु-तण्डुल-दधि-घृतानां च आहुतिः दीयते।

शुक्लयजुर्वेदस्य अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्नि:.........इति मंत्रेण प्रातः-सायं कालयोः आहुतीनां विधानं वर्णितमस्ति

यः पुरुषः तथ्यमिदं ज्ञात्वा अग्निहोत्रम करोति , सः ब्रह्म वर्चस्वी भवति।     ।।शतपथ ब्राह्मणम्।।

याज्ञवल्क्यस्य कथनमस्ति यत 'अग्निहोत्रः' हविर्यज्ञ: नास्ति, अपितु यग्योयं पाकयज्ञेषु परिगणितमस्ति।

शतपथ ब्राह्मणे अग्निहोत्रस्य स्वरूपं सुस्पष्ट रूपेण वर्णित मस्ति।।

यज्ञानां यदग्निहोत्रं शीर्षम    ।।शतपथ ब्राह्मणं।।
                                                            14/3/1/29।।              आचार्य विद्यानिधि
[1/24, 21:36] ‪+91 98239 16297‬: *सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे दैनिक पंचांग-- २५ जानेवारी २०१७*

***!!श्री मयूरेश्वर प्रसन्न!!***
☀धर्मशास्त्रसंमत प्राचीन शास्त्रशुद्ध सूर्यसिद्धांतीय देशपांडे पंचांग (पुणे) नुसार
दिनांक २५ जानेवारी २०१७
पृथ्वीवर अग्निवास नाही.
केतु मुखात आहुती आहे.
शिववास भोजनात,काम्य शिवोपासनेसाठी अशुभ दिवस आहे.
☀ *सूर्योदय* -०७:१३
☀ *सूर्यास्त* -१८:१९
*शालिवाहन शके* -१९३८
*संवत्सर* -दुर्मुख
*अयन* -उत्तरायण
*ऋतु* -शिशिर (सौर)
*मास* -पौष
*पक्ष* -कृष्ण
*तिथी* -त्रयोदशी
*वार* -बुधवार
*नक्षत्र* -मूळ
*योग* -व्याघात (१६:११ नंतर हर्षण)
*करण* -गरज (१४:५२ नंतर वणिज)
*चंद्र रास* -धनु
*सूर्य रास* -मकर
*गुरु रास* -तुळ
*राहु काळ* -१२:०० ते १३:३०
*पंचांगकर्ते*:सिद्धांती ज्योतिषरत्न गणकप्रवर
*पं.गौरवशास्त्री देशपांडे-०९८२३९१६२९७*
*विशेष*-प्रदोष,यमघंट १८:५३ नंतर,या दिवशी पाण्यात गहुला वनस्पतीचे चूर्ण घालून स्नान करावे.विष्णु कवच व शिव सहस्रनाम या स्तोत्रांचे पठण करावे."बुं बुधाय नमः" या मंत्राचा किमान १०८ जप करावा.सत्पात्री व्यक्तिस हिरवे मूग दान करावे.शंकराला सायंकाळी दहिभाताचा नैवेद्य दाखवावा.यात्रेसाठी घरातून बाहेर पडताना तीळ प्राशन करुन बाहेर पडल्यास प्रवासात ग्रहांची अनुकूलता प्राप्त होईल.
*विशेष टीप* - *आगामी नूतन संवत्सरारंभी येणारा गुढीपाडवा सूर्यसिद्धांतीय पंचांगानुसार म्हणजेच मुख्यतः धर्मशास्त्रानुसार या वेळी मंगळवार दि.२८ मार्च २०१७ रोजी नसून फक्त बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजीच आहे याची विशेष नोंद हिंदू लोकांनी घ्यावी व सर्वांनी गुढी-ब्रह्मध्वज पूजन बुधवार दि.२९ मार्च २०१७ रोजीच करावे.*
www.facebook.com/DeshpandePanchang
*टीप*-->>सर्व कामांसाठी मध्यम दिवस आहे.
**या दिवशी वांग्याची भाजी खावू नये.
**या दिवशी हिरवे वस्त्र परिधान करावे.
♦ *लाभदायक वेळा*-->>
लाभ मुहूर्त-- सकाळी ७ ते सकाळी ८.३०
अमृत मुहूर्त-- सकाळी ८.३० ते सकाळी १०
|| *यशस्वी जीवनाचे प्रमुख अंग* ||
|| *सूर्यसिध्दांतीय देशपांडे पंचांग* ||
आपला दिवस सुखाचा जावो,मन प्रसन्न राहो.
(कृपया वरील पंचांग हे पंचांगकर्त्यांच्या नावासहच व अजिबात नाव न बदलता शेअर करावे.या लहानश्या कृतीने तात्त्विक आनंद व नैतिक समाधान मिळते.@copyright)
[1/24, 23:27] P Alok Ji: अलौकिक प्रेम

राधा-कृष्ण के अटूट अलौकिक प्रेम को समझना आसान नहीं है। दुनिया के प्रत्येक रिश्ते से भिन्न यह रिश्ता, बिना शब्दों के ही इक दूजे की हृदय की भावनाओं को समझ लेता है। इक दूजे की पीड़ा का अनुभव कर लेता है। एक वंशी पर संकेत देता है, दूसरा मन की गहराइयों में उतार लेता है ,समाज और परिवार की मान-मर्यादाओं की सीमा रेखा के भीतर ही।

सौंदर्य और पवित्र प्यार से ओतप्रोत इस अनूठी प्रेम कहानी को उतने ही पवित्र भाव से समझ पाना बहुत कठिन है,अधिकांशत: साधारण जन समाज इसे एक साधारण प्रेम लीला ही समझ लेता है। एक अटूट प्रेम जो सत्य, सनातन और समग्र है जो निर्वाण और निर्वाना है जो आदि और अंत है जो चेतन भी है और अवचेतन भी है। जो सम्पूर्ण रूप से समग्र है उसे पद या स्थान पाने का कोई लालच नहीं होता। राधा से कृष्ण का प्रेम एक अनिर्वचनीय और शाश्वत सत्य का आधार है। इस कारण राधा और कृष्ण सामाजिक रूप से पति पत्नी तो नहीं किन्तु उनकी प्रीति एक नैसर्गिक आस्था और गहन विश्वास है। ऐसा प्रेम....जो न भूत है,न भविष्य। मीरा भी कृष्ण से ऐसा ही प्रेम करती थी किन्तु वह भक्ति रस में डूबी हुई थी और राधा प्रेम रस में डूबी हुई है।

राधा तो बस प्रेम करती है, वह बदले में कृष्ण से कोई अपेक्षा नहीं रखती। कृष्ण जब वृन्दावन छोड़ कर गये तब उनकी अवस्था आठ-नौ साल की थी। उसके बाद न तो वह लौटे और न राधा कोसामाजिक रूप से विवाह कर पत्नी की मान्यता दी किन्तु राधा ने इस विषय पर न तो कोई आपत्ति की और न ही उनसे यह स्थान माँगा। राधा न ही कभी मथुरा या द्वारिका गई। वह तो वह सारा जीवन वृन्दावन में ही रही और अपने कृष्ण के प्रेम में डूबी रही।

यद्यपि इनके प्रेम को समझ पाना अत्यधिक दुष्कर है किन्तु इतना तो समझ में आता है कि यह प्रेम इतना पवित्र और सच्चा था कि केवल उसको समझने के लिये ही उसकी ऊचाँई तक पहुँच जाना हर किसी के बस की बात नहीं। उस ऊँचाई को छूने का केवल प्रयत्न भर किया जा सकता है। संभवत: सदियों तक इस अलौकिक प्रेम के रिश्ते को कोई नहीं समझ पायेगा।
[1/25, 00:07] P Alok Ji: अनिल जी के द्वारा भेजे गये जन्मसमय की कुंडली
[1/25, 00:08] P Alok Ji: प्रस्तुत कुंडली बृस्चिक लग्न मेष रासि मे है भरणी का तृतीय चरण
[1/25, 00:09] P Alok Ji: मेरी दृष्टि मे विबाह कायोग चल रहा है 2017 मे संभव है
[1/25, 00:10] P Alok Ji: दाम्पत्य जीवन तो बहुत अच्छा नही कहा जा सकता है गुरू वक्री है जो शुभता प्रदान नही कर रहा है अष्टम मे बैठकर
[1/25, 08:28] ‪+91 98854 71810‬: प्रभु हम भी शरणागत हैं, स्वीकार करो तो जानें।
अब हमे पतित से पावन सरकार करो तो जानें।। प्रभु।।

प्रेमीजन तुमको पाते तुम भक्ति भाव वश आते।
हम कुटील ह्रदय के कलुषित उपचार करो तो जाने।।प्रभु।।

ग्यानी तुममे तन्मय है ध्यानी भी तुममे लय है ।
हम अग्यानी चंचल चित निस्तार करो तो जानें ।।प्रभु।।

क्या मुख से विनय सुनायें हम कैसे तुमको भायें ।
अगणित अपराध किये है उद्धार करो तो जाने ।। प्रभु।।

जीवन नैया जर जर है पल-पल विनाश का डर है ।
ऐसे भी एक पथिक को अब पार करो तो जानें ।। प्रभु।।
         🙏🙏🙏🙏🙏
सुप्रभात प्रणाम आप सभी को 👏🏻👏🏻
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

No comments:

Post a Comment