Friday, January 20, 2017

जीव के श्री राम के सन्मुख और विमुख होने का परिणाम । सन्मुख-

जीव के श्री राम के सन्मुख और विमुख होने का परिणाम ।
सन्मुख-
"सन्मुख होई जीव मोहि जबहीं,जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं".

जैसे ही जीव मेरे सन्मुख होता है उसके करोडो जन्मों के पाप स्वतः ही भस्म हो जाते हैं.सन्मुख होने का मतलब किसी मंदिर,मस्जिद,गुरूद्वारे में जाकर मूर्ति के सामने खड़ा होना नहीं है.मन में श्री राम की छबि को स्थापित करना है.
लंकिनी हनुमान जी महाराज को आशीर्वाद दे रही है-
"प्रविसी नगर कीजै सब काजा,ह्रदय राख कौशलपुर राजा".
माता जानकी हनुमान जी को आशीर्वाद दे रही हैं-
"देखि बुद्धि बल निपुण कपि,कहेहु जानकी जाहु.
रघुपति चरण ह्रदय धरी,तात मधुर फल खाऊ".
अर्थात सन्मुख होने का मतलब तन से नहीं है मन से है.मन यदि श्री राम के चरणों में पहुँच जाता है तो मन ही तो सुख दुःख का अनुभव करता है.फिर तन के सुख-दुःख का कोई भी भान नहीं होता.
"मन-तहं जहं रघुवर बैदेही,बिनु मन तन दुःख सुख सुधि केही".
जैसे कोई हमारे शरीर में एक सुई चुबोये,क्योंकि मन शरीर के साथ है इसलिए हम दुःख का अनुभव कर चिल्ला उठते हैं.परन्तु डाक्टर पूरा पेट फाड़ देता है हमे पता भी नहीं चलता.कारन डाक्टर पहले दवा देकर मन को शरीर से अलग कर देता है अब हमे शरीर के सुख दुःख का कोई अनुभव नहीं होता.
श्री राम के सन्मुख होने का परिणाम-
"गरल सुधा रिपु करे मिताई,गोपद सिन्धु अनल सितलाई.
गरुअ सुमेर रेनु सम ताही,राम कृपा करी चितवा जाही".
जहर अमृत हो जाता है,शत्रु मित्र बन जाते हैं.भव समुद्र गाय के खुर के समान हो जाता है.अग्नि शीतल हो जाती है.अति भारी सुमेरु पर्वत धूल के कण के बराबर हल्का हो जाता है.जो राम के सन्मुख होता है अथवा जिसपर राम की कृपा दृष्टि पड़ती है.
श्री राम के विमुख होने के परिणाम-
"मातु मृत्यु पितु समन समाना सुधा होई विष सुन हरी जाना।।
मित्र करे सत रिपु कै करनी।ताकंह विबुध नदी बैतरनी।।
सब जग ताहि अनलहूँ ते ताता,।जो रघुवीर विमुख सुन भ्राता"।।
माँ मृत्यु हो जाती है पिता जमराज हो जाता है,अमृत जहर हो जाता है।मित्र सौ-सौ शत्रुओं के समान व्यहवार करता है।उसके गंगा भी भव समुद्र से भी ज्यादा भयंकर हो जाती है.सारा संसार अग्नि से भी ज्यादा तप्त हो जाता है.जो जीव श्री राम के विमुख होता है.अर्थात जिसके मन में श्री राम नहीं है ।
* पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ॥
जौं पै दुष्ट हृदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई॥
              पापी का यह सहज स्वभाव होता है कि मेरा भजन उसे कभी नहीं सुहाता। यदि वह (रावण का भाई) निश्चय ही दुष्ट हृदय का होता तो क्या वह मेरे सम्मुख आ सकता था?॥

* निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥

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