[1/23, 14:21] +91 96859 71982: गुरु का महत्व
बहुत से लोग कहते है मुझसे साधना पूरी दो, ये साधना बताओ वो मन्त्र बताओ उनके लिए मैं यह कहना चाहूंगा साधना साधरण वस्तु नही की जो मांगे उठा के दे दे ।साधना अपने आप में अनन्त शक्तियां समाए रखती है जैसे ही हम उसको करते है वो शक्तियां जागृत होने लगती है जब वो शक्ति जागृत होती है तो उसे संभालने की क्षमता हमारे शरीर में होने चाहिए .अगर वो शक्ति हम नही संभाल पाते है तो हमारे दिमाग का मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है हम पागल हो सकते है और साधना उग्र हो तो मृत्यु भी हो सकती है । इसी लिए बार बार यही कहा जाता है कोई समर्थ गुरु से दीक्षा लो गुरु के मार्गदर्शन में साधना करो क्योकि गुरु दीक्षा लेने से गुरु की शक्ति हमसे जुड़ जाती है जिससे हम साधनाये आसानी से सिद्ध कर पाते है । बहुत से लोग किताबो या यहा वहा से साधना उठाकर कर लेते है लेकिन मिलता कुछ नही फिर कहते है तंत्र मंत्र कुछ नही सब बकवास है । इसमें गलती हमारी होती है और दोष साधना को देते है । किताबो से या इधर उधर से साधनाये सिद्ध होती तो सभी सिद्ध पुरुष ना हो जाते फिर गुरु को कौन पूछता । दूसरी बात गुरु दीक्षा में नामकरण होता है सनातन धर्म के अनुसार हमारे पाप पुण्य हमारे नाम से ही जुड़ा होता है जब गुरु दारा नया नाम दिया जाता है तो पिछले सभी कर्म खत्म हो जाते है । जिससे साधनाओ में तुरन्त सफलता मिलने लगती है । और गुरु परम्परा से जुड़ने पर उन सब सिद्ध महापुरुषों का आशिर्वाद भी बना रहता है जो पहले रह चुके है ।इसलिये साधनाये उन लोगो को सिद्ध हो जाती है जो दीक्षित होते है । इसलिए साधना मार्ग पर बढ़ने के लिए समर्थ गुरु की अति आवश्यकता होती है । बहुत से कहते है आज के समय में समर्थ गुरु कहा से ढूंढे तो उनको बता दू समर्थ गुरु ढूंढने से पहले समर्थ शिष्य बनना पड़ता है । आज के शिष्य ऐसे हो रहे है पहले तो गुरु से दीक्षा लेते है 6 महीने बाद ही खुद गुरु बन जाते है फिर उसी गुरु को गालिया देकर उससे अलग हो जाते है फिर जब पता चलता है गुरु बिना कुछ नही तो फिर गुरु के पास भागते है गुरु जी गलती हो गयी क्षमा करो अपनी शरण में लो ।। मतलब ये गुरु से 1% ज्ञान लिया नही थोड़ी सी शक्तियां आयी नही की अपने आपको सर्वशक्तिमान समझने लगते है इसलिये ही कोई सिद्ध पुरुष आसानी से किसी को दीक्षा नही देता । बहुत परीक्षाएं होती है तब कहि जाकर गुरु दीक्षा मिलती है ऐसे ही नही ये रास्ता दिखने में बहुत आसान है लेकिन जब इस पँर चलते है तो कठिनाइयों का पता चलता है ।ये विषय बहुत बड़ा है लेकिन शायद इतने से ही समझने वाला समझ जायेगा🙏🏼🙏🏼🙏🏼
[1/23, 15:06] +91 99303 24065: *सन्त और बसंत एक साथ आता है क्योंकि जब बसंत आता है तो प्रकृति सुधर जाती है*,
*और जब सन्त आता है संस्कृति सुधर जाती है*,,,,,
*राधे-राधे*,,,,,🌹🌹🌹🌹
[1/23, 18:37] +91 94153 60939: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।
निरपेक्षं मुनिं शान्तं निर्वैरं समदर्शनम्।
अनुव्रजाम्यहं नित्यं पूयेयेत्यङ्घ्रिरेणुभिः।।
–भाग011/14/16
भगवान् कहते हैं कि जिसे किसी भी वस्तु की अपेक्षा नहीं रह जाती , जो संसार का जरा भी चिंतन नहीं करता ,सर्वथा संसार के चिंतन से उपरांत हो कर मेरे ही मनन-चिंतन में तल्लीन रहता है और राग-द्वेष छोड़कर सब के प्रति समान भाव रखता है, ऐसे अपने भक्त के पीछे-पीछे मैं निरंतर यह सोचकर घूमा करता हूँ कि यदि कहीं उसके चरणों की धूल उड़कर मेरे ऊपर पड़ जाय और मैं पवित्र हो जाऊं।
–रमेशप्रसाद शुक्ल
–जय श्रीमन्नारायण।
[1/23, 19:26] पं ऊषा जी: 🌷🙏🌷
स्वातन्त्र्य-हिन्द-सेनायाः नायकं नौमि विक्रमम्।
योद्धारं तं महाधीरं देश-रक्षण-तत्परम् ।।
🌻🙏🌻
नेताजीसुभाषचन्द्रस्य जन्मदिनशुभाशयाः।
💐💓💐
[1/23, 21:09] +91 96859 71982: कन्या कुमारी की कथा ।
**************
नारदजी ने यह क्या किया
कुंवारी रह गई वह कन्या-
यह कहानी है उस कन्या की जिसने भगवान शिव को पति रुप में पाने के लिए घोर तपस्या की। भगवान शिव ने विवाह करने का वरदान भी दिया और एक दिन बारात लेकर शिवजी विवाह करने निकल भी पड़े।
लेकिन नारदजी ने शुचीन्द्रम नामक स्थान पर भगवान शिव को ऐसा उलझाया कि विवाह का मुहूर्त निकल गया। मान्यता है कि इस कन्या को कलयुग के अंत तक शिव जी से विवाह के लिए अब इंतजार करना है।
ऐसी मान्यता है कि कुंवारी नामक यह कन्या आदिशक्ति के अंश से उत्पन्न हुई थी। इनका जन्म वाणासुर नामक असुर का वध करने के लिए हुआ था। इस असुर ने कुंवारी कन्या के हाथों मृत्यु पाने का वरदान प्राप्त किया था।
देवी का विवाह हो जाने पर वाणासुर का वध नहीं हो पाता इसलिए देवताओं के कहने पर नारद जी ने शिव जी और कुंवारी नामक कन्या के विवाह में बाधक बनने का काम किया।
जहां देवी का विवाह होना था वह वर्तमान में कन्याकुमारी तीर्थ कहलाता है। देवी के कुंवारी रह जाने के कारण ही इस स्थान का यह नाम कन्याकुमारी पड़ा। यहां आज भी अक्षत, तिल, रोली आदि रेत के रुप
में मिलते हैं।
कहते हैं यह उसी अक्षत, तिल और रोली के अंश जो भगवान शिव और कुंवारी नामक कन्या के विवाह के लिए थे। विवाह नहीं होने पर विवाह सामग्री को समुद्र में फेंक दिया गया था।🙏🏼🙏🏼
[1/23, 21:40] +91 98271 77714: *धर्मार्थसभा के सभी विद्वत्जनों को मेरा नमन*🙏🙏
सबसे पहले तो मैं क्षमा चाहूँगी कि कार्यान्तर में व्यस्त थी अतः आज लिख रही हूँ।
आचार्य ओमीश शुक्ला जी और उषा दीदी को धन्यवाद ! जिन्होंने इस सदस् में मुझे सदस्यता देनें के योग्य समझा। आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी जी और आचार्य अनिल पाण्डे जी के हार्दिक और स्नेहपूर्ण स्वागत के लिए मैं आभारी हूँ। इस गण में जिस आत्मीयता से स्वागत हुआ उससे मन और हृदय आनंदित हो गया।
अवश्य ही हम सभी अपने-अपने क्षेत्रों में संस्कृत-संस्कृति-देशहित और धर्मरक्षा के लिए कार्यशील हैं। कहा गया है-“संघे शक्तिः कलौ युगे।“(एकता मे शक्ति है) एक उद्देश्य को लेकर हम सब साथ चलेंगे तो अवश्य ही सार्थक सर्वोच्च और सर्वोत्कृष्ट परिणाम की प्राप्ति होगी।
इन्ही शुभ संकल्पों के साथ मैं इस समूह की शुभता की कामना करते हुए सदस्यता स्वीकार करती हूँ। 🙏🙏
[1/23, 21:51] P Alok Ji: उम्र भलही मिलल,जिंदगी ना मिलल ।
खाली दियना मिलल, रोशनी ना मिलल।।
खोजलीं काल्ह गाँवन में,शहरन में हम।
लोग सगरी मिलल,आदमी ना मिलल।।
जहिया खेलल गइल तेज से सूर्य के।
चाँद थहरा गइल चाँदनी ना मिलल।।
लोग बा झूठ में,मोह में,काल में।
हम का झोखीं कि हमरा ख़ुशी ना मिलल।।
जब से "जौहर" फकीरी में मनवा रमल।
ठाट अइसन कहीं राजसी ना मिलल।।
[1/23, 22:04] आचार्य मंगलेश्वर त्रिपाठी: आदरणीया बहन कामिनी जी सबसे पहले यह बालक आपके विचारों को नमन करता है।कृतज्ञता ह्रदय की कसौटी होती है, इसे बनाए रखना श्रेष्ठ सृजन है जो कि आप के लेख मे झलक रहा है।इतना ही नहीं आपके लेख से कुछ बाते और प्रतीत हुई इस बालक को,आपके अन्दर दृढ़ता भी है आत्मविश्वास भी और भावुकता भी,किसी भी समूह के सजग एवं कर्तव्यनिष्ठ सदस्य का यही अलंकार होता है, इसको सदैव आपश्री बनाए रखने की कृपा करें !आशा करता हूं आप इस परिवार को अपना परिवार मानकर सत्य सनातन धर्म की रक्षा हेतु आपका अतुलनीय योगदान रहेगा।मुझे विश्वास है आप सब के सतत सहयोग से यह परिवार निश्चित ही एकदिन उच्चशिखर पर होगा।
🌸🙏🌸😊
[1/23, 23:33] P parmanand Ji: इस फूल को भगवान शिव ने अपनी पूजा से त्याग दिया
केतकी के फूल ने झूठ बोला था इसलिए भगवान शिव ने इसे अपनी पूजा से वर्जित कर दिया।
भगवान भोलेनाथ को कई तरह के फूल चढ़ाएं जाते है। शिव जी को खुश करने के लिए भांग-धतूरा तो खास तौर पर चढ़ाया जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान शिव को सफेद रंग का फूल अधिक प्रिय है। हालांकि हर सफेद फूल भगवान को नहीं चढ़ता। भगवान शिव को कभी भी केतकी नाम का फूल कभी नहीं चढ़ता है।
इस फूल को भगवान शिव ने अपनी पूजा से त्याग दिया है। केतकी को भगवान शिव पर नहीं चढ़ाया जाता है और इसके पीछे एक कारण है। कारण है कि एक बार ब्रह्माजी और भगवान विष्णु में विवाद हो गया। दोनों में कौन अधिक बढ़ा हैं।विवाद का फैसला शिव जी को करना था। भगवान शिव की माया से एक ज्योतिर्लिंग सामने आया। शिव जी ने कहा कि ब्रह्मा और विष्णु में से जो भी ज्योतिर्लिंग का आदि-अंत बता देगा, वह बड़ा कहलाएगा। ब्रह्माजी ज्योतिर्लिंग को पकड़कर नीचे की ओर चल पड़े और विष्णु जी ऊपर की ओर चल पड़े।
काफी देर बाद ब्रह्माजी ने देखा कि एक केतकी फूल भी उनके साथ नीचे आ रहा है। ब्रह्माजी ने केतकी के फूल को झूठ बोलने के लिए तैयार कर लिया और भगवान शिव के पास पहुंच गए। ब्रह्माजी ने कहा कि मुझे ज्योतिर्लिंग कहां से उत्पन्न हुआ, यह पता चल गया है। वहीं विष्णु जी ने कहा कि मैं ज्योतिर्लिंग का अंत नहीं जान पाया।ब्रह्माजी ने अपनी बात को सच साबित करने के लिए केतकी के फूल से गवाही दिलवाई, लेकिन शिव जी ने ब्रह्माजी का झूठ पकड़ लिया। ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया। केतकी के फूल ने झूठ बोला था इसलिए भगवान शिव ने इसे अपनी पूजा से वर्जित कर दिया।
जय भोले नाथ की
परमानंद गोस्वामी
🌹🙏🌹👏🏻🌹
[1/24, 08:57] +91 98336 35911: ज्ञेयः स नित्यसन्न्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते॥
हे अर्जुन! जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी सदा संन्यासी ही समझने योग्य है क्योंकि राग-द्वेषादि द्वंद्वों से रहित पुरुष सुखपूर्वक संसार बंधन से मुक्त हो जाता है
॥3॥
~ अध्याय 5 - श्लोक : 3
💐💐💐सुप्रभातम्💐💐💐
[1/24, 09:12] पं अनिल ब: ब्रज रज जाकूँ मिल गयी,
वाकी चाह न शेष।
ब्रज की चाहत मैं रहैं,
ब्रह्माँ विष्णु महेश्॥
ब्रज के रस कूँ जो चखै,
चखै न दूसर स्वाद।
एक बार राधे कहै,
तौ रहै न कछु और याद॥
ब्रज की महिमा को कहै,
को बरनै ब्रज धाम्।
जहाँ बसत हर साँस मैं,
श्री राधे और श्याम्॥
*जय श्री राधेकृष्ण*
*"शु प्रभात"*
[1/24, 09:13] पं अनिल ब: पौराणिकदृष्टया ब्रह्मशब्द ईश्वरवाचकः मन्यते एवं ब्राह्मणशब्दवर्णव्यवस्थादृष्टिकोणेन जातिविशेषवाचकः कथ्यते किन्त्वद्वैतवेदान्तसिद्धांतदृष्ट्या कोऽपि भेदो नास्ति-"ब्रह्मण्ब्राह्मणयोर्मध्ये" इति मे मतिः।
निवेदयामि, अस्मिन् संन्दर्भे ये विद्वांसः गणे विराजन्ते शोभन्ते च तेऽपि स्व-विचारं प्रकटीकुर्वन्तु यतोहि" सर्वे सर्वं न जानातीति-महाभारते महर्षिवेदव्यासमहाभागैः वर्णितम्। इत्यलम्🙏
[1/24, 09:24] P Alok Ji: यत्सत्वतः सदाभाति जगदेतसत् स्वत। ।
सदाभासम्सत्यस्मिन भगवन्तं भजाम तम् ।।
यह जगत अपने स्वरूप नाम और आकृति क् रूप मे असत् है फिर भी जिस अधिष्ठान सत्ता की सत्यता से यह सत्य जान पडता है तथा जो इस असत्य प्रपंच मे सत्य के रूप मे सदा प्रकाशमान रहता है उस भगवान का हम भजन करते हैं । पिबत् भागवतम् रस मालयम् श्रद्धेय आलोकजी शास्त्री इन्दौर 9425069983
[1/24, 10:20] ओमीश: रे मन! आज तेरी नींव क्या?
_________________
व्योम का विस्तार देखूँ
या विरह का काल देखूँ
तोड़ने ही तू चला फिर मौन क्या अभिमान क्या?
रे मन! आज तेरी नींव क्या?
वारिदों की चाल देखूँ
या बरसते नयन देखूँ
डूबने ही तू चला फिर धार क्या मंझधार क्या?
रे मन! आज तेरी नींव क्या?
मोड़ दूँ या रोक लूँ
छोड़ दूँ या खींच लूँ
तूने ही जब ठान ली इस पार क्या उस पार क्या?
रे मन! आज तेरी नींव क्या?
सिन्धु से अभिमान ले लूँ
या विकल ये प्राण दे दूँ
दो पलों की ज़िन्दगानी हार क्या और जीत क्या?
रे मन! आज तेरी नींव क्या?
आँख ये फिर बन्द कर लूँ
श्रोत्र और जिह्वा भी कस लूँ
हो रहा वह चलने दे सुन! तेरा क्या और मेरा क्या?
रे मन! आज तेरी नींव क्या?
आह! हम पाये ना छू
मधु पल जो खोये पा सकूँ
छूटी जब हाला लबों से होश क्या मदहोश क्या?
रे मन! आज तेरी नींव क्या?
प्रेमजल से आँख भर लूँ
गोद में एक स्वप्न रख लूँ
स्वान्त में "दर्शन" रहे फिर पास क्या और दूर क्या?
रे मन! आज तेरी नींव क्या?
आपका सुहृद्- नीतिन् मिश्र "दर्शन"
कृपया मूलरूप में प्रेषित करें।
सर्वेभ्यो नमः। वन्दे वाणीविनायकौ।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[1/24, 10:48] +91 96859 71982: अर्थिप्रश्नकृतौ लोके सुलभौ तौ गृहे गृहे ।
दाता चोत्तरदश्चैव दुर्लभौ पुरुषौ भुवि ॥
इस दुनिया में याचक और प्रश्नकर्ता घर-घर में सुलभ है, पर दाता और उत्तर देनेवाले अति दुर्लभ है ।🙏🏼🙏🏼🙏🏼💐
[1/24, 11:17] +91 96859 71982: जय श्री माँ
सौन्दर्य-लहरी
।। ३३ ।।
स्मरं योनिं लक्ष्मीं त्रितयमिदमादौ तव मनो-
र्निधायैके नित्ये निरवधिमहाभोगरसिकाः ।
भजन्ति त्वां चिन्तामणिगुणनिबद्धाक्षवलयाः,
शिवाग्नौ जुह्वन्तः सुरभिघृतधाराहुतिशतैः ।।
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भावार्थ-
हे आदि, अन्त से रहित नित्ये! तुम्हारे पंचदशाक्षरी मंत्र के प्रारम्भ में स्मर काम बीज ( क्लीं ) माया बीज ( ह्रीं ) लक्ष्मी बीज ( श्रीं ) इन तीनों को मिलाकर तुम्हारे कुछ भक्त ( मनीषी ) अनवरत चिन्तामणियों से गुथी हुई अक्षमाला पर तुम्हारा भजन कर आनन्दित होते है । एवं शक्ति ( त्रिकोण ) में स्थित अग्नि में कामधेनु से प्राप्त घी की आत्मानन्द से सैकड़ों आहुतियाँ देते हैं। भगवती की उपासना भोग एवं मोक्ष दोनों प्रदान करती है। 🙏🏼🙏🏼🙏🏼
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[1/24, 11:45] P Alok Ji: नारी ( जगत -जननी, आदि-शक्ति, मातृ-शक्ति )- नारी के बिना इस चराचर जगत की कल्पना ही मिथ्या है नारी का हमारे जीवन में माँ, बहन बेटी इत्यादि के रूप में बहुत बड़ा योगदान है. नारी के ममत्व से ही हम हम अपने जीवन को भली-भाँती सुगमता से व्यतीत कर पाते हैं. विशेष परिस्थिति में नारी पुरुष जैसा कठिन कार्य भी करने से पीछे नहीं हटती है. जब जब हमारे ऊपर घोर विपत्तियाँ आती है तो नारी दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनकर हमारा कल्याण करती है. इसलिए सनातन संस्कृति में नारी को पुरुषों से अधिक महत्त्व प्राप्त है.
[1/24, 11:45] +91 94153 60939: ।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।
शरणागतोस्मि....
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सत्त्वं यत्तत् पराभ्यामपरिकलनतो निर्मलं तेन तावत् भूतैर्भूतेन्द्रियैस्ते वपुरिति बहुश: श्रूयते व्यासवाक्यम्।
तत् स्वच्छ्त्वाद्यदाच्छादितपरसुखचिद्गर्भनिर्भासरूपं तस्मिन् धन्या रमन्ते श्रुतिमतिमधुरे सुग्रहे विग्रहे ते ॥
हे भगवन ! आपके श्री विग्रह में सत्व गुण, अन्य दो गुणों- रजो गुण एवं तमो गुण की अपेक्षा परम शुद्ध है। परम सत्यस्वरूप है एवं उन दोनों ( रजो गुण एवं तमो गुण ) के मिश्रण से रहित है। उसी सत्व के उपादान द्वारा सात्विक भूतों एवं इन्द्रियों सहित आपका स्वेच्छामय दिव्य लीला शरीर निर्मित हुआ है। यह तथ्य बारंबार श्रीव्यास जी ने पुराणो में कहा है और वही अन्य सद्ग्रन्थों में भी सुनने में आता है। आपके उस सदाभासित निर्मल विग्रह में परमानन्द चिन्मय ब्रह्म समाविष्ट है। सौभाग्यशाली पुण्यवान भक्त- जन, भाव से श्रवण एवं मनन करने योग्य, सकल इन्द्रियाह्लादक आपके श्रीविग्रह में सुगमता से रमण करते हैं और आपकी कृपा प्राप्त करते हैं।आप मुझे भी वह रमण-सुख-सान्निध्य प्राप्त करायें। आपके अतिरिक्त मेरा अन्य कोई नहीं।
हे अकारण-करुणा-वरुणालय इस प्रपन्न पर अपनी असीम कृपा करें प्रभो।
–रमेश प्रपन्न
–जय श्रीमन्नारायण।
[1/24, 11:48] पं विद्यानिधि जी: दास रघुनाथ का नन्दसुत का सखा... कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा। इस दुनिया में ऐसे बहुत लोग है जो न इधर के रहे न उधर के रहे......."बिंदु" दोनों तरफ ले रहा है मजा....कुछ इधर भी रहा कुछ उधर भी रहा.......... वाह अत्यन्त भक्तिपूर्ण अनिल जी प्रणमाम्यहम🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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