वर्तमान समय में मानवीय मानबिन्दुअों के पतन का एक मात्र कारण है, अधिकरों का दुरुपयोग, विलासिता पूर्ण जीवन, परजीवी संस्कृति के प्रति अंधी दौड़ में भागीदारी।
हमने पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में अपने जीवनमूल्यों की अवहेलना कर दी, जीवन के प्रमुख समुद्देश्यों के प्रति उपेक्षित हो गये।
कर्त्तव्यों और उत्तरदायित्वों के वहन करने एवं उन्हें यथार्थ रूप देने के लिये हमने कोई तंत्र निर्मित नहीं किया।
बड़ी विडम्बना है, अपने ही देश में कुछ. तथाकथित लोगों ने "आस्थाविहीन धर्म-निरपेक्ष राजनीति " स्थापित कर , धर्मशास्त्र निर्देशित मानवीय मूल्यों, जीवन-दर्शन और शास्त्रमर्यादाओं से अपने को उन्मुक्त कर लिया है।
जब भी कोई अपनी भारतीयसंस्कृति और उनके मानबिन्दुअों के संरक्षण और संवर्धन की बात करता है, तो उन तथाकथित पथभ्रष्ट लोगों को बहुत कष्ट होता है, जो सफेद चादर अोढ़कर, काले रंग से स्वार्थ और विलासिता से आकण्ठ डूबे हैं।
अतः खूब विचार करके राष्ट्र हित और जन हित में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें।
॥ सत्यसनातधर्मो विजयतेतराम्॥
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