Monday, December 5, 2016

*एक शिष्य ने अपने गुरूजी से पूछा कि :*

*एक शिष्य ने अपने गुरूजी से पूछा कि :*
*नष्ट होने वाले इस शरीर में, नष्ट ना होने वाली आत्मा कैसे रहती है?*
*गुरूजी का जवाब:*
*दूध उपयोगी है किन्तु एक ही दिन के लिए। फिर वो बिगड जाता है।*
*दूध में एक बूंद छाछ की डालने से वह दही बन जाता है। जो फिर एक और दिन टिकता है।*
*दही का मथने से उसका मक्खन बन जाता है। यह भी एक और दिन टिकता है।*
*मक्खन को उबालने से घी बनता है।*
*और घी कभी भी नहीं बिगड़ता है ।*
*इस तरह से एक दिन में बिगड़ने वाले दूध में कभी ना बिगड़ने वाला घी छिपा होता है।*
*अर्थात*
*इसी तरह से अशाश्वत शरीर में शाश्वत आत्मा रहती है।*
*मानव शरीर दूध समान*
*दैवीय स्मरण छाछ समान*
*सेवा भाव मक्खन समान*
*तथा*
*साधन करना घी समान होता है।*
*मानव शरीर को साधना से पिघलाने पर आत्मा पवित्रता प्राप्त करती है।*

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