Saturday, December 10, 2016

एक जमाना था कि जब बड़े बूढों की सीख को महत्व मिलता था ।

एक जमाना था कि जब बड़े बूढों की सीख को महत्व मिलता था । लोग किसी भी समस्या के निदान के लिए उनके पास जाकर सलाह लेते थे । बुजुर्ग आदमी भी अपने अनुभव के आधार पर नयी पीढ़ी को सलाह दिया करते थे , जिसे मान्यता भी मिलती थी । बिना चाहे भी कई बार वे नयी पीढ़ी को किसी काम को करने अथवा न करने की सलाह वे दिया करते थे , जिसको नयी पीढ़ी सिरोधार्य करके , उसे दिशानिर्देश मान लेते थे । परन्तु आज कलियुग अपनी चरम सीमा की ओर लगातार अग्रसर हो रहा है । और समय भी द्रुत गति से बदलता जा रहा है । आज आप अक्सर देखेंगे कि बड़े बूढों की सलाह को कोई अहमियत नहीं देता । चाहे वह किसी परिवार विशेष की बात हो अथवा समाज या राष्ट्र की । आज युवावर्ग उलटे बड़े बूढों को सीख देते नजर आवेंगे । यदि किसी बुजुर्ग ब्यक्ति ने अनचाहे सलाह देनेकी हिम्मत  की तो तुरंत नयी पीढ़ी यह कहने से नहीं चुकती
कि  कि बूढ़ा सठिया गया है,उससे सलाह ही कौन मांग रहा है । उसे दो जून की रोटी खाकर चुप बैठना चाहिए ? अब बताइए कि ऐसे में उस बुजुर्ग के ऊपर क्या बीतती होगी ?
रामायण में भी यह प्रसंग आता है कि जब श्री भरतलाल जी सेना को साथ लेकर भगवान श्री राम से बन में मिलने जा
रहे थे तो बनवासियों को उनके ऊपर शंका हो गयी थी और उनके राजा 
निषादराज ने भरत जी से युद्ध तक करने की तैयारी कर ली थी।
परन्तु एक बड़े बुजुर्ग की सीख से युद्ध टल गया था ,और खून खराबा होने से बच गया था । लेकिन,आज जमाना बहुत बदल गया है । कोई भी ब्यक्ति अपने को दुसरे से अल्पबुद्धि मानने को तैयार नहीं है । और यही कारण है कि बुजुर्ग ब्यक्ति जहां हीनता से ग्रसित होता जा रहा है ,वहीं ऐसे परिवार ,समाज या राष्ट्र बिखरते जा रहे हैं ,जहां बड़े बूढों को मान्यता नहीं दी जाती ।

अतः मेरा तो यही मानना है कि सभी को ,खासकर बड़े बूढों को अनचाहे सीख देने से बचना चाहिये ताकि उनकी इज्जत बची रहे।इसी में उनकी भलाई है ।क्यों आज के नवयुवक झुकने को तैयार नहीं।

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