Wednesday, December 21, 2016

वह्निस्तस्य जलायते जलनिधि: कुल्यायते तत्क्षणात् मेरुः

🌸 *सुप्रभातम्* 🌸

वह्निस्तस्य जलायते जलनिधि: कुल्यायते तत्क्षणात् मेरुः स्वल्पशिलायते मृगपतिः सद्यः कुरङ्गायते
व्यालो माल्यगुणायते विषरसः पीयूषवर्षायते
यस्याङ्गेअखिललोकवल्लभतरं शीलं समुन्मीलति।।

जिस पुरुष के शरीर में सर्वातिप्रिय शील विराजमान है, उसके लिए अग्नि जल के समान हो जाती है समुद्र छोटी नहर जैसा हो जाता है, सुमेरू पर्वत लघु चट्टान जैसा हो जाता है, सिंह मृग के समान बन जाता है, भयंकर सर्प फूलों की माला की डोरी की तरह तथा विष का रस अमृत की धारा के समान बन जाता है। अर्थात् उसके लिए सभी पदार्थ सुखकारी हो जाते हैं।

🙏🏻 *सुदिनम्* 🙏🏻

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