हमारे परिवार के सभी सदस्यों में प्रेम की प्रतिष्ठा किस प्रकार हो-
जबतक किसी की बुद्धि में स्वार्थ और अभिमान का स्थान रहेगा, तबतक. त्याग और निर्मलता का जीवन में अभाव रहेगा।
अतः मान- बड़ाई, आदर-सम्मान सदा दूसरों को दें तथा कष्ट-दुःख और अपमान आदि स्वयं सहन कर लें। यह आध्यत्मिक साधना का भी सुन्दर और सरल उपाय है।
इस तथ्य की दार्शनिक मीमांसा भी यही है कि- जो भी अच्छा-बुरा व्यवहार हम पर घटित हो रहा है, वह हमारे ही कृत्यों का फल है।
" काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।
निज कृत करम भोग सबु भ्राता॥"
शाश्वत सत्य तो यही है-
जो बोया है सो काटोगे
जो संचित है वो बाँटोगे।
अपनाअोगे अगर सभी को
फिर गीत खुशी के गाओगे॥
॥ सत्यसनातधर्मो विजयतेतराम् ॥
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