Sunday, March 6, 2016

वर्णों को जन्म आधारित बताने के लिए ब्राह्मण का जन्म ईश्वर के मुख से हुआ, क्षत्रिय ईश्वर की भुजाओं से जन्में, वैश्य जंघा से तथा शूद्र ईश्वर के पैरों से उत्पन्न हुए यह सिद्ध करने के लिए पुरुष सूक्त के मंत्र प्रस्तुत किये जाते हैं | इस से बड़ा छल नहीं हो सकता, क्योंकि –

(a) वेद ईश्वर को निराकार और अपरिवर्तनीय वर्णित करते हैं | जब परमात्मा निराकार है तो इतने महाकाय व्यक्ति का आकार कैसे ले सकता है ? (देखें यजुर्वेद ४०.८)

(b) यदि इसे सच मान भी लें तो इससे वेदों के कर्म सिद्धांत की अवमानना होती है | जिसके अनुसार शूद्र परिवार का व्यक्ति भी अपने कर्मों से अगला जन्म किसी राजपरिवार में पा सकता है | परन्तु यदि शूद्रों को पैरों से जन्मा माना जाए तो वही शूद्र पुनः ईश्वर के हाथों से कैसे उत्त्पन्न होगा?
(c) आत्मा अजन्मा है और समय से बद्ध नहीं (नित्य है) इसलिए आत्मा का कोई वर्ण नहीं होता | यह तो आत्मा द्वारा मनुष्य शरीर धारण किये जाने पर ही वर्ण चुनने का अवसर मिलता है | तो क्या वर्ण ईश्वर के शरीर के किसी हिस्से से आता है? आत्मा कभी ईश्वर के शरीर से जन्म तो लेता नहीं तो क्या ऐसा कहा जा सकता है कि आत्मा का शरीर ईश्वर के शरीर के हिस्सों से बनाया गया? किन्तु वेदों की साक्षी से प्रकृति भी शाश्वत है और कुछ अणु पुनः विभिन्न मानव शरीरों में प्रवाहित होते हैं | अतः यदि परमात्मा सशरीर मान ही लें तो भी यह असंभव है किसी भी व्यक्ति के लिए की वह परमात्मा के शरीर से जन्म ले |
(d) जिस पुरुष सूक्त का हवाला दिया जाता है वह यजुर्वेद के ३१ वें अध्याय में है साथ ही कुछ भेद से ऋग्वेद और अथर्ववेद में भी उपस्थित है | यजुर्वेद में यह ३१ वें अध्याय का ११ वां मंत्र है | इसका वास्तविक अर्थ जानने के लिए  इससे पहले मंत्र ३१.१० पर गौर करना जरूरी है | वहां सवाल पूछा गया है – मुख कौन है?, हाथ कौन है?, जंघा कौन है? और पाँव कौन है? तुरंत बाद का मं

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