पंचपर्वा अविद्या का रहस्य समझे बिना चातुर्वर्ण्य का सिद्धान्त नहीं जाना जा सकता।
मुखम् आसीत् और जायते शुद्रः में अर्थ सीधा है। बस समझने का फेर है। पहले भी कह चुका हूँ। वर्ण प्रोफेशन है जिसके लिए जाति हॉस्टल है। कर्महीन ब्राह्मण तो पतित हो गया बेन की तरह। उसकी चर्चा ही क्यों उठे? ब्राह्मण की जाति सिर्फ ब्राह्मण है जहाँ बनुआ और ठलुआ की गिनती नहीं है। बननेवाले अपने को साबित करने के लिए प्रयास तो करेंगे ही। कल का म्लेच्छ ब्राह्मण का स्वांग करने से ब्राह्मण नहीं होगा। हाँ वह हमें दृश्यतः धोका दे सकता है। और वही हो रहा है। हम धोका खाने पर मजबूर हैं, अपने कानून के कारण, जिस पर म्लेच्छों का बर्चस्व है।
Sunday, March 6, 2016
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