Tuesday, March 1, 2016

युगक्रम से केवल शब्द बदले हैं , भाव नहीं। जैसे मैथुनी सृष्टि में मैथुन ही सिद्धान्त है। चाहे वह पौधों में परागण हो या प्राणियों में अभिगमन। केवल शब्द का फेर है। क्रिया तो सर्वत्र वही है। ऐसा न हो तो सृष्टि का सिद्धान्त ही गलत हो जायेगा। आप लोग नहीं मानेंगे। लेकिन साइकिल का सिद्धान्त भी प्रकृति ने ही दिया है। भाषा भी प्रकृति की देन है।

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