Tuesday, March 1, 2016

व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर के सरल-साध्य उपाय

        शिक्षा इसमें बहुत ही बड़ी भूमिका अदा करती है. और औपचारिक शिक्षा से ज्यादा मै उस शिक्षा की बात कर रहा हूँ, जिसे अनौपचारिक कहिये या जिसका कोई सिलेबस नही होता और जो वातावरण से सीखी जाती है. इस अनौपचारिक शिक्षा के सबसे बड़े वाहक हैं परिवार के जन और वरिष्ठ जन का जिम्मेदाराना एवं स्नेहिल-सभ्य व्यवहार. यहाँ वरिष्ठ-जन का मतलब ८ साल वाले के लिए १० साल वाले का व्यवहार, ४० साल वाले के लिए ७० साल वाले का व्यवहार. यह व्यवहार वाणी तक ही सीमित नही है. आचरण की भी बात है.आपको नहीं लगता लोग कितना कैजुअली बात करते हैं. शब्दों का कितना शिथिल प्रयोग करते हैं. केवल अपनी धारणा सत्य साबित करने के लिए किसी भी महापुरुष तक को किसी भी अपशब्द से नवाज़ सकते हैं. यहीं/यूँ ही अनुशासनहीनता पनपती है.

माता-पिता, वरिष्ठों का सुबह से लेकर शाम तक आचरण, और घर से बाहर भी उनका आचरण,( चूँकि समाज के बाकी अन्य लोग भी माता-पिता,सम्बन्धियों के बारे में कैसी राय रखते हैं, यह भी महत्वपूर्ण हो जाता है.

तो सबसे पहले व्यक्तिगत स्तर पर अध्ययन, अनुशीलन, सतत श्रम एवं अनुशासन की महत्ता का उदाहरण सतत देना होगा. मतलब आचरण की महत्ता.

फिर औपचारिक शिक्षा पर आते हैं...यहाँ तो गंभीर परिवर्तन की आवश्यकता है. यह एक अलग गंभीर मुद्दा है, मेरे पास इसपर कहने को काफी कुछ है. फिर कभी. संक्षेप में शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो काफी लचीली हो, अपने पर्यावरण-सामाजिक वातावरण से सुसंगत हो और छात्रों एवं शिक्षक का सम्बन्ध औपचारिक-अनौपचारिक का सुन्दर-गंभीर मिश्रण हो. मित्रवत तो हो ही, और दोनों ही स्वयं को विषय का शोधार्थी समझें . व्यापार की तरह Give n Take का गंदा रिश्ता ना हो.

फिर राजनीतिक शिक्षा-जागरूकता की आवश्यकता व प्रशिक्षण. लोगों को जानना होगा कि उनकें सहज अधिकार क्या हैं, उन्हें कैसे ईस्तेमाल करना है और इससे भी बड़ी बात उन अधिकारों को कैसे-किन पद्धतियों से प्राप्त करना है..मतलब साध्य से ज्यादा साधन की पवित्रता पर बल. (संकलित)

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