Wednesday, November 16, 2016

संघ नियमावली

ॐसच्चा नामधेयाय श्री गुरवे परमात्मने नमः
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जिसका पालन करना "धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ"के सभी विद्वत आचार्यसदस्यों को अनिवार्य होगा।
धर्मार्थ वा०स० संघ-नियमावली
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१.सर्व प्रथम संघ के सभी आदरणीय श्रेष्ठ विद्वत आचार्य गणों से वार्ता करते समय उनके नाम के आगे सम्मान सूचक शब्द अवश्य लगायें।
२.श्रेष्ठ आचार्य गणों द्वारा छोटों को भी उचित सम्मान से ही संबोधित किया जाये।
३.आपसी शिष्टाचार एवम्
सौम्यता बनाते हुये सब से प्रेम पूर्वक सदाचार का परिचय दें |
४.किसी भी सदस्य के प्रति हीन भावना न रखते हुये सब को अपने परिवार का अभिन्न अंग माने।
५.किसी भी विद्वत सदस्य के ऊपर कोई भी ऐसी टिप्पणी न करें जिससे किसी का मन आहत हो या किसी को दुःख पहुँचे।
६.संघ के नाम एवम् प्रोफाइल फोटो से किसी प्रकार की छेड़खानी न करें यह कार्य संस्थापक महोदय एवं संचालक समिति के अंतर्गत आता है।
७.किसी भी प्रकार के अनावश्यक मैसेज न भेजें,जैसे चुटकुले, शायरी,कॉमेडी या 'ये मैसेज २० लोगो को शेयर करो शाम तक अच्छी खबर मिलेगी नहीँ तो आपका अनिष्ट होगा'_ इस प्रकार के मैसेज भेजना दण्डनीय अपराध माना जायेगा।
८.संघ में मात्र केवल सनातन धर्म,आध्यात्म,पुराण,
वेदोपनिषद् ,समस्त सनातन धर्म से सम्बंधित संग्रह ही भेजें। वह भी लिखित इमेज लेख न हो |
९.किसी भी सदस्य के प्रति हास परिहास,आपत्तिजनक टिप्पणी न करें,जिससे किसी भी प्रकार का विवाद हो।
१०.किसी भी सदस्य को अपनी विद्वता से निचा दिखाने का प्रयास न करें,बल्कि अपने ज्ञान को प्रेम पूर्वक प्रस्तुत करें।
११.किसी भी प्रश्न के ऊपर चल रही वार्ता समाधान  के वक्त दूसरे पोस्ट न भेजें |
१२.कोई भी चित्र या वीडियो फोटो भेजना विशेष मुख्य रूप से वर्जित है इसका विशेष ध्यान रखें |किसी भी सदस्य द्वारा इमेज या वीडियो भेजे जाने पर,समिति द्वारा २४ घंटे के लिये तत्काल निष्कासित किया जायेगा |कारण स्पष्ट होने के बाद ही पुन: जोड़ा जा सकता है |
१३.संघ में किसी भी नए अतिथि विद्वान के आने पर उनका समुचित स्वागत अभिवादन करना हम सब के अच्छे शिष्टाचार का परिचायक है |
१४.किसी भी सदस्य से किसी प्रकार की त्रुटि होने पर उनके प्रति अन्य कोई सदस्य न उलझें। उसका समाधान, प्रशासनिक श्रेष्ठ गुरुजनों द्वारा या संघ संस्थापक द्वारा किया जायेगा। यदि किसी को किसी से शिकायत है तो वे संस्थापक महोदय या प्रसाशनिक समिति के किसी भी गुरूजन सदस्यों से पर्सनल एकाउंट में जाकर अपनी बात रख सकते हैं !
१५.अगर अपने निजी कारणों बस कोई भी सदस्य संघ से बाहर होना चाहते हैं तो कृपया सूचना अवश्य देने की कृपा करें।
१६.संघ के नियमो को कुछ और सुदृढ़ बनाने के लिए आप सब अपनी राय दे सकते हैं संस्थापक महोदय के पर्शनल में।
१७."आप सभी विद्वत जन अपने प्रोफाइल में अपनी फोटो व अपना नाम अवश्य लिखें |
१८.कभी कभी मनोविनोद एवं मनोरंजन की वार्ता को अन्यथा न लेकर आनन्द की अनुभूति करें क्यों कि इस भागदौड़भरे जीवन में हसना और हसाना भी बहुत आवश्यक है ! लेकिन हास्य सामाजिक मर्यादा को ध्यान में रखते हुये करें |
१९.संघ में किसी भी पोस्ट को दुबारा पोस्ट करना वर्जित है किसी सदस्य के आग्रह करने पर ही दुबारा पोस्ट भेज सकते हैं |
२०.संघ को और मजबूत बनाने हेतु विशिष्ठ विद्वत जनों की आवश्यकता होती है,अतः जिन विद्वत जनों के सम्पर्क में अच्छे शुमधुर व्यवहार वाले ज्ञानमय ब्राम्हण हों,उन विद्वानों को जोड़ने के लिए संस्थापक महोदय या समिति के गुरू जनों से सम्पर्क कराएं तथा उन्हें संघ के नियमो से भी अवगत कराये |
२१.संघ में वार्ता करने का समय सुबह ५:३०से रात्रि ११:००तक विशेष आवश्यकता पड़ने पर १२:००तक
२२. संघ में किसी भी प्रकार के लिंक भेजना वर्जित है!!!!!!!! 
२३.धर्मार्थ वार्ता समाधान की प्रशासनिक-सूची :—
१--स्वतंत्र प्रभार--:श्री मान संतोष मिश्र (शोष जी)
श्रीमान् विजयभान गोस्वामी जी
२--न्यायाधीश--:श्रीमान् सत्यप्रकाश अनुरागी जी 
३--उप न्यायाधीश--: यज्ञाचार्य श्रीमान ब्रजभूषण त्रिपाठी जी 
४.संस्थापक एवं अध्यक्ष--: श्रीमान् मंगलेश्वर त्रिपाठी जी 
५.उपाध्यक्ष--:श्रीमान् अनिल पाण्डेय जी(मुं.दे.)
६.कोशाध्यक्ष--: श्रीमान दीना नाथ तिवारी जी
७.प्रवक्ता--:श्रीमान् ओमीश जी (कोपरखैरणे महालक्ष्मी मन्दिर)
एवं श्रीमान् विद्यानिधि जी
८.--:सचिव--:श्रीमान पं. आलोक शास्त्री जी 
९.उप सचिव--:रोहित परासर जी
१०.संयोजक--:श्रीमान् सत्यप्रकाश शुक्ल जी (हिमांचल) 
श्रीमान संदीप त्रिपाठी जी 
श्रीमान शिव शंकर मिश्र जी (प्रयाग) 
११.मार्गदर्शक--:श्रीमान् सूर्यमणि मिश्र जी,श्रीमान बलभद्र उपाध्याय जी,श्रीमान शिवाकान्त त्रिपाठी जी,श्रीमान सान्ति भूषण त्रिपाठी जी,
श्रीमान नीरजधर द्विवेदी जी 
श्रीमान पवनेश शुक्ल जी
श्रीमान पद्मधर मिश्र जी
१२--:व्यवस्थापक ÷श्रीमान् रवीन्द्र व्यास जी (यू-पी भवन नवी मुंबई) एवं समस्त धर्मार्थ परिवार !
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जयतु गुरुदेव, जयतु भारतम्

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