Monday, November 21, 2016

!! कृतघ्नता एकमहापाप !!

!! कृतघ्नता एकमहापाप !!

शास्त्रों में यदि किसी पाप के प्रायश्चित का विधान नहीं है तो वो एक मात्र पाप है कृतघ्नता । किसी के किये बड़े से बड़े उपकार को न मानना उसके साथ विश्वास घात करना इसे ही कृतघ्नता कहा जाता है ' कृतं परोपकारं हन्तीति कृतघ्न:' । प्रत्येक मनुष्य को कृतज्ञ होना चाहिए यही मनुष्य का आभूषण है । कृतज्ञ का लक्षण करते हुए श्रीगोविन्दराज स्वामी कहते हैं -

'कृतमुपकारं स्वल्पं प्रासंगिकमपि बहुतया जानातीति कृतज्ञ: /अपकारास्मरणम् '

अर्थात् समय पर किये थोड़े भी उपकार को बहुत किया ऐसा जानकार उसके किये अपकार को भी भूल जाने वाले को कृतज्ञ कहते हैं ।
कृतघ्न का कोई प्रायश्चित नहीं होता । महाभारत के शान्ति पर्व में आया है -

        ' ब्रह्मघ्ने च सुरापे च चौरे भग्नव्रते तथा ।
        निष्कृतिर्विहिता राजन् कृतघ्ने नास्ति निष्कृति ।।१७२/२५
        मित्रद्रोही नृशंसश्च कृतघ्नश्च नराधमः ।
       क्रव्यादै:कृमिभिश्चैव न भुज्यन्ते हि तादृशाः'।।१७२/२६

ब्राह्मण के हत्यारे , सुरा पान करने वाले , चोरी करने वाले तथा खंडित व्रत वाले प्राणी के लिए शास्त्रों में प्रायश्चित का विधान है किन्तु कृतघ्न के लिए कदापि नहीं । मित्र से द्रोह करने वाले , क्रूर प्राणी और कृतघ्न इन नीच मनुष्यों का मांस भक्षण भी मांसभक्षी जीव और कृमि नहीं करते हैं । अर्थात् ये इतने पापी होते हैं कि ये मांसभक्षी भी इनको खाना नहीं चाहते हैं । आगे कहते हैं-

      'कुतः कृतघ्नस्य यशः कुतः स्थानं कुतः सुखम्।
      अश्रद्धेय: कृतघ्नो हि कृतघ्ने नास्ति निष्कृतिः '।।१७३/२०
   
कृतघ्न प्राणी के लिए कहाँ यश है ,कहाँ सुख है , कहाँ स्थान है एवं कहाँ उसके लिए श्रद्धा है अर्थात् कहीं भी उसे कुछ भी प्राप्त नहीं है यहाँ तक कि शास्त्रों द्वारा बताया गया प्रायश्चित भी उसके लिए नहीं है । कृतघ्न की बहुत निंदा शास्त्रों में की गयी है । इसी लिए कभी भी किसी के अनजाने में भी किये गए उपकार को भूलना नहीं चाहिए ।लेकिन  आज समाज की दुर्दशा देखिये किे जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ाता है , समाज में सम्मान दिलाता है हम जरूरत पड़ने पर स्वार्थ वशात उसको भी धोखा देने में पीछे नहीं हटते । जब तक हमारी हाँ में हाँ तब तक बहुत अच्छा ज़रा सी न तो बड़े से बड़ा उपकार भी भूल कर उसके लिए गड्ढा खोदने लग जाते हैं । इससे बड़ी कृतघ्नता क्या होगी ? आज बड़े बड़े स्वयंभूओं के भाग्य विधाता जिनकी कृपा से आज वो समाज में कुछ कहने लायक हुए वो बेचारे गुरु जन किसी तरह अपना समय काटते हैं लेकिन वो स्वयंभू एक बार भी अपने उन गुरुओं की सुध नहीं लेते क्या ये कृतघ्नता नहीं है ? आज बड़े बड़े मठ मंदिरों की दुर्गति क्यों हो रही है जरा विचार करिये इसके पीछे भी ये कृतघ्न ही हैं । इन लोगों को उस गद्दी पर बैठाने वाले उनके आचार्य में सोचा होगा कि ये इसकी रक्षा करेंगें इसका वर्धन करेंगें लेकिन आज के कितने ही कृतघ्नों ने अपने आचार्यों तक को नहीं छोड़ा उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । एक ही संप्रदाय में भेद कर कर के अलग थलग कर दिया क्या इस महापाप से इनको श्री रामानुज स्वामी जी बचायेंगें कदापि नहीं । इसकी भरपाई ये स्वयं करेंगें और गोस्वामी जी की चौपाई को चरितार्थ करेंगें -
             ' उभय लोक निज हाथ गवावहिं '
संसार में सच बोलने से लोग बुरे बन जाते हैं । लेकिन क्या करूँ चापलूसी न तो कर पाता हूँ न ही करना चाहता हूँ ।

                      ।।  जय श्रीमन्नारायण ।।

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