Monday, September 19, 2016

धर्मार्थ संघ के विशेष पोस्ट

[17/09 6:50 pm] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: भैया अनिल जी को सादर प्रणाम शुभ संध्या,अति सम्यक👌👌👌🌹🙏🌹
[17/09 6:54 pm] पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी: प्रश्न- गुरु के बिना उद्धार कैसे होगा; क्योँकि रामायण मेँ आया है- 'गुरु बिनु भव निधि तरइ न कोई' (मानस, उत्तर॰ 99 । 3-4)?
उत्तर- उसी रामायण मेँ यह भी आया है-
गुरु सिष बधिर अंध का लेखा । एक न सुनइ एक नहिँ देखा ॥
हरइ सिष्य धन सोक न हरइ । सो गुरु घोर नरक महुँ परई ॥
(मानस, उत्तर॰ 99 । 3-4)
तात्पर्य हुआ कि बनावटी गुरु से उद्धार नहीँ होगा । बनाया हुआ गुरु कुछ काम नहीँ करेगा । किसी-न-किसी संत की बात मानेँगे, तभी उद्धार होगा और जिसकी बात मानने से उद्धार होगा, वही हमारा गुरु होगा ।
श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्ध मेँ दत्तात्रेयजी ने अपने चौबीस गुरुओँ का वर्णन किया है । तात्पर्य है कि मनुष्य किसी से भी शिक्षा लेकर अपना उद्धार कर सकता है ।
अतः गुरु बनाने की जरुरत नहीँ है, प्रत्युत शिक्षा लेने की जरुरत है । जिसकी शिक्षा लेने से, जिसकी बात मानने से हमारा उद्धार हो जाय, वह बिना गुरु बनाये भी गुरु हो गया । अगर बात न मानेँ तो गुरु बनाने पर भी कल्याण नहीँ होगा, उलटे पाप होगा, अपराध होगा ।
आजकल एक साथ कई लोगों को दीक्षा दे देते हैं और सामूहिक रुप से सबको अपना चेला बना लेते हैँ । न तो गुरु में चेलों के कल्याण की चिंता होती है और न चेलों में ही अपने कल्याण की लगन होती है । गुरु चेलोँ का कल्याण कर सकता नहीं और चेले दूसरी जगह जा सकते नहीँ । अतः चेले बनाकर उलटे उन लोगों के कल्याण में बाधा लगा दी !
जिनको गुरु बनने का शौक है, वही ऐसा प्रचार करते हैं कि गुरु बनाना बहुत जरुरी है, बिना गुरु के मुक्ति नहीं होती, आदि-आदि ।
गुरु बनाने पर उसकी महिमा बताते हैं कि गुरु गोविन्द से बढ़कर है । इसका नतीजा यह होता है कि चेला भगवान के भजन में न लगकर गुरु के ही भजन में लग जाता है !
आजकल के गुरु चेले को भगवान की तरफ न लगाकर अपनी तरफ लगाते हैं, उनको भगवान का न बनाकर अपना बनाते हैं । यह बड़ा भारी अपराध है ।
एक जीव परमात्मा की तरफ जाना चाहता है, उसको अपना चेला बना लिया तो अब वह गुरु में अटक गया । अब वह भगवान की तरफ कैसे जायगा ? गुरु भगवान की तरफ जाने मेँ रुकावट डालनेवाला हो गया ! गुरु तो वह है, जो भगवान के सम्मुख कर दे, भगवान मेँ श्रद्धा-विश्वास करा दे;
जैसे- हनुमानजी ने विभीषण का विश्वास अपने में न कराकर भगवान में कराया-
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती । करहिँ सदा सेवक पर प्रीती ॥
कहहु कवने परम कुलीना । कपि चंचल सबहीँ बिधि हीना ॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा । तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा ॥
अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर ।
कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ॥
चेले को अपने में लगाने वाले कालनेमि अथवा कपटमुनि होते हैं, गुरु नहीं होते । गुरु वे होते हैं, जो चेले को भगवान में लगाते हैं ।
भगवान के समान हमारा हित चाहने वाला गुरु, पिता, माता, बन्धु, समर्थ आदि कोई नहीं है-
उमा राम सम हित जग माहीं । गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं ॥
भगवान की जगह अपनी पूजा करवाना पाखण्डियों का काम है । जिसके भीतर शिष्य बनाने की इच्छा है, रुपयों की इच्छा है, मकान (आश्रम आदि) बनाने की इच्छा है, मान-बड़ाई की इच्छा है, अपनी प्रसिद्धि की इच्छा है, उसके द्वारा दूसरे का कल्याण होना तो दूर रहा, उसका अपना कल्याण भी नहीँ हो सकता-
शिष शाखा सुत वितको तरसे, परम तत्त्व को कैसे परसे??
उसके द्वारा लोगों की वही दुर्दशा होती है, जो कपटी मुनि के द्वारा राजा प्रतापभानु की हुई थी।
गुरु की जय-जयकार तभी होती है जब वह अपने साथ गोविन्द ले आए , वरना गुरु-शिष्य का रिश्ता ठगाई है। केवल गुरु बन जाने से बात नहीं बनती। शिष्य का उद्धार तभी हो सकता है जब गुरु उसे गोविन्द के दर्शन करा दे। जो अपने शिष्य से मान-सम्मान चाहता है , दान-दक्षिणा चाहता है , नाम चाहता है , वह अपना कल्याण कर रहा है , शिष्य का नहीं। इसमें शिष्य की इच्छा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
कबीर ने रामानन्द से जबरदस्ती ' राम ' नाम का मंत्र ले लिया। अंधेरे में उनकी राह पर लेट गए , स्वामी जी का पैर पड़ा तो वे बोल उठे ' राम-राम! ' बस कबीर ने उन्हें गुरु स्वीकार कर लिया और लग गए साधना में।
द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिष्य रूप में स्वीकार नहीं किया , तो उसने दोणाचार्य की प्रतिमा बनाई और उसे ही गुरु मानकर शुरू कर दिया धनुविर्द्या का अभ्यास।
कल्याण तो उनके संग से होता है, जिनके भीतर सबका कल्याण करने की भावना है । दूसरे के कल्याण के सिवाय जिनके भीतर कोई इच्छा नहीं है । जो स्वयं इच्छारहित होता है, वही दूसरे को इच्छारहित कर सकता है । इच्छावाले के द्वारा ठगाई होती है, कल्याण नहीं होता ।
[18/09 12:07 am] P satyprkash: प्रिय ओमिश् भक्ति काल के प्रायः सभी निर्गुण और सगुण कवियों का अध्ययन किया है मैंने।
भक्ति उपजी द्रविण में लाये रामानन्द।
परगट कियो कबीर ने सात द्वीप नव खण्ड।।
कबीर की उलट वासियों के बारे में कहा जाता है की ये साबर मन्त्रों की भाँति कीलित हैं आज तक कोई ऐसा सन्त नही हुआ जो इनका अर्थ लिखने का दुःसाहस कर सके कुछ साहित्यकारों जिनमे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसे छुआ भर है।ये प्रायः प्रतीकात्मक होती है।कबीर की साखी सबद, रैमिनि को पाठ्य पुस्तकों में स्थान प्राप्त है लेकिन उलट बासी को केवल दिल्ली विश्व विद्यालय की  पुस्तकों में चर्चा भर हुई है।
इनकी खास विशेषता यह है कबीर ने इन्हें कुछ खास प्रसंगों पर कहा है।आपने जो पद्य भेजा है उस प्रसङ्ग को मैं लिख रहा हूँ आशा करता हूँ आप सन्तुष्ट होगें फिर भी अगर सन्तुष्टी न हो तो समय निकाल कर दर्शन दीजिये तो बात आपकी समझ में आ जायेगी।
एक बार की बात है, काशी नरेश राजा वीरदेव सिंह जुदेव अपना राज्य छोड़ने के दौरान माफी माँगने के लिये अपनी पत्नी के साथ कबीर मठ आये थे। कहानी ऐसे है कि: एक बार काशी नरेश ने कबीर दास की ढ़ेरों प्रशंसा सुनकर सभी संतों को अपने राज्य में आमंत्रित किया, कबीर दास राजा के यहाँ अपनी एक छोटी सी पानी के बोतल के साथ पहुँचे। उन्होंने उस छोटे बोतल का सारा पानी उनके पैरों पर डाल दिया, कम मात्रा का पानी देर तक जमीन पर बहना शुरु हो गया। पूरा राज्य पानी से भर उठा, इसलिये कबीर से इसके बारे में पूछा गया उन्होंने कहा कि एक भक्त जो जगन्नाथपुरी में खाना बना रहा था उसकी झोपड़ी में आग लग गयी।

जो पानी मैंने गिराया वो उसके झोपड़ी को आग से बचाने के लिये था। आग बहुत भयानक थी इसलिये छोटे बोतल से और पानी की जरुरत हो गयी थी। लेकिन राजा और उनके अनुयायी इस बात को स्वीकार नहीं किया और वे सच्चा गवाह चाहते थे। उनका विचार था कि आग लगी उड़ीसा में और पानी डाला जा रहा है काशी में। राजा ने अपने एक अनुगामी को इसकी छानबीन के लिये भेजा। अनुयायी आया और बताया कि कबीर ने जो कहा था वो बिल्कुल सत्य था
[18/09 9:16 am] ओमीश: पितृ- पक्ष
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    जो चले गए ........

जो चले गए........
वो अपने थे........
उनके भी क्या-क्या....'सपने' थे....
आज ! सपने में भी है"अपने" साथ ....
क्यों........?
आज सपना "हकीकत" है .........!
"अपना " समझो गनीमत है ........!
जो चले गए वो 'अपने' थे ............!
आओ कुछ उनका भी 'मान' करें
सम्मान करें नमन कर गुणगान करें...!
श्रद्धानत करें समर्पण........
कुंठाओं गल-गरल भावनाओ का करें
            " तर्पण "
"याद" तो उनकी आती है .......!
"दिल " को बहुत तड़पाती है....!
बार-बार "दिल " कहता है .......
"कुछ" देर और रुक जाते ......
वे "दर्पण" में हैं न "तर्पण " में.......
बस ! याद करो श्रद्धा और विश्वास से
"समर्पण" में ........!
जो रह गए वो " सपने " थे .....
जो चले गए " वो " अपने थे .........!
पितरों को सादर समर्पित........!
[18/09 12:12 pm] P alok. ji: ➡ सूर्य मुद्रा से होने वाले 13 चमत्कारी फायदे :
इस मुद्रा से वजन कम होता है और शरीर संतुलित रहता है-मोटापा कम करने के लिए आप इसका प्रयोग नित्य-प्रति करे ये बिना पेसे की दवा है हाँ जादू की अपेक्षा न करे।इस मुद्रा का रोज दो बार 5 से 15 मिनट तक अभ्यास करने से शरीर का कोलेस्ट्रॉल घटता है।वजन कम करने के लिए यह असान क्रिया चमत्कारी रूप से कारगर पाई गई है-सूर्य मुद्रा के अभ्यास से मोटापा दूर होता है तथा शरीर की सूजन दूर करने में भी यह मुद्रा लाभकारी है।जिन स्त्रियों के बच्चा होने के बाद शरीर में मोटापा बढ़ जाता है वे अगर इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करें तो उनका शरीर बिल्कुल पहले जैसा हो जाता है।सूर्य मुद्रा को रोजाना करने से पूरे शरीर में ऊर्जा बढ़ती है और गर्मी पैदा होती है तथा सूर्य मुद्रा को करने से शरीर में ताकत पैदा होती है। कमजोर शरीर वाले व्यक्तियों को यह मुद्रा नहीं करनी चाहिए- वर्ना और कमजोरी आएगी -हाँ जिनको अपना शरीर स्लिम रखना है वो कर सकते है।इसे नियमित करने से बेचैनी और चिंता कम होकर दिमाग शांत बना रहता है।यह जठराग्रि ( भूख) को संतुलित करके पाचन संबंधी तमाम समस्याओं से छुटकारा दिलाती है।यह मुद्रा शरीर की सूजन मिटाकर उसे हल्का और चुस्त-दुरुस्त बनाती है।सूर्य मुद्रा करने से शरीर में गर्मी बढ़ती है अतः गर्मियों में मुद्रा करने से पहले एक गिलास पानी पी लेना चाहिए। प्रातः सूर्योदय के समय स्नान आदि से निवृत्त होकर इस मुद्रा को करना अधिक लाभदायक होता है सांयकाल सूर्यास्त से पूर्व कर सकते हैं।अनामिका अंगुली पृथ्वी एवं अंगूठा अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है इन तत्वों के मिलन से शरीर में तुरंत उर्जा उत्पन्न हो जाती है। सूर्य मुद्रा के अभ्यास से व्यक्ति में अंतर्ज्ञान जाग्रत होता है।
[18/09 1:33 pm] प बलभद्र: 🌻🌻बीज रूप में सोयी हुई वासनाओं को जैसे ही थोड़ी सी भी अनुकूल परिस्थितियां मिलती हैं वे पनप कर बड़ी हो जाती हैं, फैलने लगती हैं, फूलती हैं और अपने बीजों को विखेर देती हैं अपने चारों ओर बिल्कुल वैसे ही जैसे पत्थरों की शिलाओं के बीच पड़े हुए बिज पौधे बनते हैँ, बृक्ष बनते हैं और फिर अपने बीजों को बिखेर देते हैं आस-पास की समूची धरती पर।🌻🌻
[18/09 6:22 pm] कृष्णा जी: वेदांगहिन्दू धर्म ग्रन्थहैं। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त- ये छ: वेदांग है।1.शिक्षा- इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है।2.कल्प- वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कथन किया गया है। इसकी तीन शाखायें हैं-श्रौतसूत्र,गृह्यसूत्रऔरधर्मसूत्र।3.व्याकरण- इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।4.निरुक्त- वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है।5.ज्योतिष- इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है।6.छन्द- वेदों में प्रयुक्तगायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञानछन्दशास्त्रसे होता है।छन्द को वेदों का पाद, कल्प को हाथ, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को कान, शिक्षा कोनाक और व्याकरण को मुख कहा गया है।छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यतेज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते।शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम्तस्मात्साङ्कमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते॥परिचयवेदांग छह हैं; वेद का अर्थज्ञान होने के लिए इनका उपयोग होता है। वेदांग ये हैं-शिक्षावेदों के स्वर, वर्ण आदि के शुद्ध उच्चारण करने की शिक्षा जिससे मिलती है, वह 'शिक्षा' है। वेदों के मंत्रों का पठन पाठन तथा उच्चारण ठीक रीति से करने की सूचना इस 'शिक्षा' से प्राप्त होती है। इस समय 'पाणिनीय शिक्षा' भारत में विशेष मननीय मानी जाती है।स्वर, व्यंजन ये वर्ण हैं; ह्रस्व, दीर्घ तथा प्लुत ये स्वर के उच्चारण के तीन भेद हैं। उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित ये भी स्वर के उच्चारण के भेद हैं। वर्णों के स्थान आठ हैं -(1) जिह्वा, (2) कंठ, (3) मूर्धा , (4) जिह्वामूल, (5) दंत, (6) नासिका, (7) ओष्ठ और (8) तालु।कण्ठः – अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः – (अ‚ क्‚ ख्‚ ग्‚ घ्‚ ड्。‚ ह्‚ : = विसर्गः )तालुः – इचुयशानां तालुः – (इ‚ च्‚ छ्‚ ज्‚ झ्‚ ञ्‚ य्‚ श् )मूर्धा – ऋटुरषाणां मूर्धा – (ऋ‚ ट्‚ ठ्‚ ड्‚ ढ्‚ ण्‚ र्‚ ष्)दन्तः – लृतुलसानां दन्तः – (लृ‚ त्‚ थ्‚ द्‚ ध्‚ न्‚ ल्‚ स्)ओष्ठः – उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ – (उ‚ प्‚ फ्‚ ब्‚ भ्‚ म्‚ उपध्मानीय प्‚ फ्)नासिका च – ञमड。णनानां नासिका च (ञ्‚ म्‚ ड्。‚ण्‚ न्)कण्ठतालुः – एदैतोः कण्ठतालुः – (ए‚ एे)कण्ठोष्ठम् – ओदौतोः कण्ठोष्ठम् – (ओ‚ औ)दन्तोष्ठम् – वकारस्य दन्तोष्ठम् (व)जिह्वामूलम् – जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् (जिह्वामूलीय क्‚ ख्)नासिका – नासिकानुस्वारस्य (ं = अनुस्वारः)इन आठ स्थानों में से यथायोग्य रीति से, जहाँ से जैसा होना चाहिए वैसा, वर्णोच्चार करने की शिक्षा यह पाणिनीय शिक्षा देती है। अत: हम इसको 'वर्णोच्चार शिक्षा' भी कह सकते हैं।कल्पसूत्रवेदोक्त कर्मो का विस्तारश् के साथ संपूर्ण वर्णन करने का कार्य कल्पसूत्र ग्रंथकरते हैं। ये कल्पसूत्र दो प्रकार के होते हैं। एक 'श्रौतसूत्र' हैं और दूसरे 'स्मार्तसूत्र' हैं। वेदों में जिस यज्ञयाग आदि कर्मकांड का उपदेश आया है, उनमें से किस यज्ञ में किन मंत्रों का प्रयोग करना चाहिए, किसमें कौन सा अनुष्ठान किस रीति से करना चाहिए, इत्यादि कर्मकांड की सम्पूर्ण विधि इन कल्पसूत्र ग्रंथों मेंकही होती है। इसलिए कर्मकांड की पद्धति जानने के लिए इन कल्पसूत्र ग्रंथों की विशेष आवश्यकता होती है। यज्ञ आगादि का ज्ञान श्रौतसूत्र से होता है और षोडश संस्कारों का ज्ञान स्मार्तसूत्र से मिलता है।वैदिक कर्मकांड में यज्ञों का बड़ा भारी विस्तार मिलता है। और हर एक यज्ञ की विधि श्रौतसूत्र से ही देखनी होती है। इसलिए श्रौतसूत्र अनेक हुए हैं। इसी प्रकार स्मार्तसूक्त भी सोलह संस्कारों का वर्णन करते हैं, इसलिए ये भी पर्याप्त विस्तृत हैं। श्रौतसूत्रों में यज्ञयाग के सब नियम मिलेंगे और स्मार्तसूत्रों में अर्थात्‌ गृह्यसूत्रों में उपनयन, जातकर्म, विवाह, गर्भाधान, आदि षोडश संस्कारों का विधि विधान रहेगा।व्याकरण वेदों के ज्ञान के लिए जिन छः वेदांगों का विवेचन किया गया है उनमें व्याकरण भी महत्त्वपूर्ण वेदांग है। शब्दों व धातु रूपों आदि की शुद्धता पर व्याकरण में विचार किया जाता है। व्याकरण का अर्थ- व्याकरण शब्द का अर्थ अनेक रूपों में प्राप्त होता है- (क) व्याकरण का व्युत्पत्तिगत अर्थ है- व्याक्रियन्ते शब्दा अनेन इति व्याकरणम् (ख) आचार्य सायण के शब्दों में व्याकरणमपि प्रकृति-प्रत्ययादि-उपदेशेन पदस्वरूपं तदर्थं निश्चयाय प्रसज्यते। (ग) पाणिनीय शिक्षा में व्याकरण को वेद-पुरुष का मुख कहा गया है- मुखं व्याकरणंस्मृतम्।व्याकरण के प्रयोजन              आचार्य वररुचि ने व्याकरण के पाँच प्रयोजन बताए हैं- (1)रक्षा (2) ऊह (3) आगम (4) लघु (5) असंदेह(1) व्याकरण का अध्ययन वेदों की रक्षा करना है। (2) ऊह का अर्थ है-कल्पना। वैदिक मन्त्रों में न तो लिंग है और न ही विभक्तियाँ। लिंगों और विभक्तियों का प्रयोग वही कर सकता है जो व्याकरण का ज्ञाता हो। (3) आगम का अर्थ है- श्रुति। श्रुति कहती है कि ब्राह्मण का कर्त्तव्य है कि वह वेदों का अध्ययन करे।(4) लघु का अर्थ है-शीघ्र उपाय। वेदों में अनेक ऐसे शब्द हैं जिनकी जानकारी एकजीवन में सम्भव नहीं है।व्याकरण वह साधन है जिससे समस्त शास्त्रों का ज्ञान हो जाता है। (5) असंदेह का अर्थ है-संदेह न होना। संदेहों को दूर करने वाला व्याकरण होता है, क्योंकि वह शब्दों का समुचित ज्ञान करवाता है।निरुक्तशब्द की उत्पत्ति तथा व्युत्पत्ति कैसे हुई, यह निरुक्त बताता है। इसविषय पर यही महत्व का ग्रंथ है।यास्काचार्यजी का यह निरुक्त प्रसिद्ध है। इसको शब्द-व्युत्पत्ति-शास्त्र भी कह सकते हैं। वेद का यथार्थ अर्थ समझने के लिए इस निरुक्त की अत्यंत आवश्यकता है।छंदगायत्री, अनुष्टुप्‌, त्रिष्टुप्‌, वृहती आदि छंदों का ज्ञान होने के लिए छंद:शास्त्र की उपयोगिता है। प्रत्येक छंद के पाद कितने होते हैं और ह्रस्व दीर्घादि अक्षर प्रत्येक पाद में कैसे होने चाहिए, यह विषय इसका है।ज्योतिषखगोलमें सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि आदि ग्रह किस प्रकार गति करते हैं, सूर्य, चंद्र आदि के ग्रहण कब होंगे, अन्य तारकों की गति कैसी होती है,यह विषय ज्योतिष शास्त्र का है। वेदमंत्रों में यह नक्षत्रों का जो वर्णन है, उसेठीक प्रकार से समझने के लिए ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान बहुत उपयोगी है।इस प्रकार वेदांगों का ज्ञान वेद का उत्तम बोध होने के लिए अत्यंत आवश्यक है।इन्हें भी देखें*.वेद*.वेदान्त- वेदों का अन्तिम भाग अर्थात्उपनिषद्बाहरी कड़ियाँ*.वेदांगहिन्दू एन्साइक्लोपीडिया पर*.🚩
[18/09 9:07 pm] P satyprkash: भगवान भीमाशंकर की यह यात्रा अति मंगल दायीं रही विशेषकर बाबा जी के साथ किसी ज्योतिर्लिंग का अभिषेक पंचम अध्याय से किसी जन्म के पुण्योदय का फल है। योगिराज पं विजय भान गोस्वामी, अग्रज श्री पं ब्रजभूषण तथा पं मनगलेश्वर सहित अन्य अनुजो का मंत्रोचारण आकर्षण का केंद्र बन गया था। यह केवल विप्रो की कृपा का फल है🙏🙏🙏
[18/09 9:48 pm] प विजयभान: भूतभावन भगवान् भोलेनाथ सहित महाकाल बाबाजी की विशेष महानुकम्पा से आज भीमा शंकर जी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।  अनुज आचार्य बी बी जी अनुज भइया सत्य जी और अनुज मंगलेश्वर जी द्वारा मंत्रोपोचार अवर्णीय है। जीवन में कभी कभी ऐसे सुवसर आतें है। आप सबकी कृपा से सुखद यात्रा हुई कोटि कोटि साधुवाद! 🙏🌹🙏
[18/09 10:22 pm] प विजयभान: भीमाशंकर जी की यात्रा उपरान्त भइया बी बी जी के घर भोजन करके जो आनंद की अनुभूति मिली वो शव्दों में नहीं लिखी जा सकती कारण भइया जी के यहां जितने प्रकार के अचार खाये उतने शायद जिंदगी में कभी नहीं मिले।बच्चों के संस्कार देखकर मनमें अति प्रसन्नता हुई। भोजन में घर बालों के मिश्रित प्रेम से मन प्रफुल्लित हो गया। आचार्य जी के अचार और विचार दोनों को कोटि कोटि  नमन 🙏🌹🙏
[18/09 10:24 pm] ओमीश: सभी गुरुजनों को सादर प्रणाम 🙏�🙏�🙏�
जिनके सत्संग  मात्र से ही सभी पाप-ताप सब भस्म हो जाते हैं परमपूज्य कुलदीपक धर्मार्थ शिरोमणि बाबा महाकाल जी, श्रीमान विजय भैया जी, और जिनके  दर्शन मात्र से निःसंदेह  करोडों यज्ञों का फल प्राप्त हो जाता है वो कलिपावनावतार अग्रज बी बी जी, सत्य जी और मंगला जी और भी जिन गुरूजनों को भीमाशंकर के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो सभी के चरणों में सादर दण्डवत प्रणाम स्वीकार हो।
और एक निवेदन कि दर्शन,अभिषेक से जो भी पुण्य प्राप्त हुआ हो उसमे से स्वेच्छानुसार इस भिक्षुक के खाते में भी थोड़ा सा प्रदान करने की कृपा करे।🙏�
दर्शन तो प्रारब्ध में नहीं था अगर पुण्य मिले तो आप सबके आशीर्वाद से प्रारब्ध बनने में देर न लगेगी।🙏�🙏�🙏�
     🙏�सेवक ओमीश🙏
[18/09 11:57 pm] P alok. ji: [9/18, 11:39 PM] आलोकजी शास्त्री: कई बार देखने मे आता है कि जब राहु शुक्र की युति कर्क राशि में मिलती है तो जातक के पास या तो अथाह सम्पत्ति मिलती है अथवा वह पूरा जीवन केवल कनफ़्यूजन में ही निकाल देता है। कनफ़्यूजन भी ऐसे कि कोई भी समझाने की कोशिश करे लेकिन किसी भी बात से वे कनफ़्यूजन नही निकलें। राहु जब किसी भी ग्रह के साथ जुडा हो और वह अगर मन के कारक भावों में जैसे चौथे भाव मे आठवें भाव में या बारहवें भाव में हो तो या इन भावों के मालिकों से जुडा हो तो व्यक्ति के अन्दर उस ग्रह की आदत के अनुसार ऐसा नशा सवार रहता है कि व्यक्ति को आगे पीछे ऊपर नीचे कुछ भी नही दिखाई देता है और वह अपने अनुसार ही कार्य में घुसता चला जाता है,जब वह निकलता है उस समय या तो वह मरने की श्रेणी में होता है या वह बिलकुल खाली हाथ होकर सडक पर घूम रहा होता है। राहु एक बुखार की तरह से होता है और जब वह शुक्र के साथ स्त्री या पुरुष किसी की भी कुंडली में अपनी युति बनाता है तो जातक अगर पुरुष है तो वाहन स्त्रियों चमक दमक वाले भवनों के प्रति आशक्त होता है और अगर स्त्री की कुंडली में होता है तो वह उसे अपनी इमेज को प्रदर्शित करने के लिये एक नशा सा देता है,अक्सर यह उस समय और खतरनाक हो जाता है जब उसे किसी प्रकार से रोकने की कोशिश की जाये या फ़िर उसे उसके माहौल से दूर करने की कोशिश की जाये। अगर राहु को मंगल का बल मिल जाता है और वह पुरुष की कुंडली में होता है तो उसे प्रयास से असफ़लता मिलने के बाद वह जबरदस्ती किसी भी काम को निकालने की कोशिश करता है। इसके अलावा अगर उसे वाहन का नशा चढता है तो वह एक के बाद एक नये नये वाहनों को खरीद कर उसे चलाकर अपनी हाजिरी जाहिर करता है।
जब शनि का साथ राहु और शुक्र के साथ हो जाता है तो जातक के अन्दर बडी बडी चमक दमक वाली इमारतें बनाने का भूत सवार हो जाता है,उसे धन के लिये फ़िर चाहे कोई भी रास्ता अख्तियार करना पडे वह अपने को किसी भी प्रकार से चमक दमक के रूप में दिखाना चाहता है। शुक्र भौतिकता का ग्रह है और राहु असीमित सोच प्रदान करता है,अगर किसी प्रकार से जातक की मन की इच्छा पूरी नही हो पाती है तो वह रात की नींद और दिन का चैन अपने लिये हराम कर लेता है,उसके दिमाग में पता नही कितनी प्रकार की भावनाये पनपने लगती है और गोचर के अनुसार जैसे जैसे राहु शुक्र अपना रास्ता नापते जाते है जातक उसी प्रकार से अपने कार्यों को करता हुआ चला जाता है। यही नही अगर कालपुरुष की कुंडली के अनुसार भी राहु किसी भी प्रकार से शुक्र के साथ गोचर करने लगता है या राहु की नजर शुक्र पर होती है तो वह जमाने को भी चका चौंध में ले जाता है.राहु और शुक्र की उपस्थिति को शादी वाले पांडाल के रूप में देखा जा सकता है,चमक दमक वाले होटलों के रूप में और सजने सजाने वाले रूपों के रूप में देखा जाता है.
[9/18, 11:40 PM] आलोकजी शास्त्री: आलोकजी शास्त्री इन्दौर 9425069983
[19/09 6:43 am] पं अनिल ब: सर्वेभ्यो नमो नमः🙏🏻🌷🙏🏻जय महाँकाल

प्रसन्न व्यक्ति वह है जो निरंतर स्वयं का मूल्यांकन एवं सुधार करता है।
जबकि दुःखी व्यक्ति वह है जो दूसरों का मूल्यांकन करता है।
🙏🏻🌷🙏🏻सुप्रभातम🙏🏻🌷🙏🏻
[19/09 7:14 am] व्यास u p: 💢🌴💢🌴💢🌴💢🌴💢
सर्वेभ्यो 🌺🙏�नमो 🍁🙏नमः🌹🙏

🌻 *आज का सुविचार* 🌻

पंछी अपने पैरो के कारण
     जाल में फँसते हैं....
परन्तु इंसान अपनी
     जुबान के कारण....!
 
ऊँचा उठने के लिए
     पंखों की ज़रुरत केवल
     पक्षियों को ही पड़ती है....
मनुष्य तो जितना विनम्रता से
     झुकता है
     उतना ही ऊपर उठता है...!!
जय माता दी🌺🌺🌺🌺
[19/09 9:07 am] ओमीश: अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति
प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च
दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥
आठ गुण पुरुष को सुशोभित करते हैं - बुद्धि, सुन्दर चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता॥ 🙏�🌹🙏
[19/09 10:51 am] Mhakal: कन्हैया कब से खड़ा तेरे द्वारे 2
दरस हेतु मेरे नैन थके है, कब से राह निहारे 2।कन्हैया,,,,,,,
तू मेरो सखा बाल पने को, आयो द्वार तिहारे।
दरद हिया में रहि रहि आवै सम्मुख होहु हमारे।2
तुम बोल्यो मेरो घर कब आवेगों खुल्यो द्वार अवारे।
आज घड़ी पँहि आयो रे कान्हा निरखत नैन विचारे ।2कन्हैया,,,,,
वरस बीत गयो दरस को तेरो हिय में चैन न  पायो।
आजु बसी मन मूरत मेरो हिय, दर्शन ताही पायो।2
तुम तो कान्हा जग स्वामी ही, सब की दियो सहारे।कन्हैया,,,
सुर दास के स्याम सूंदर हो ताही तुमहि उबारे।
महाकाल तेरो दरस बिना प्रभु, डूब रह्यो मजधारे ।2 कन्हैया,,,,,
[19/09 11:57 am] Mhakal: भीमाशंकर मंदिर काशीपुर् में ज्योतिर्लिंग के रुप में है. इस मंदिर की गणना भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में की जाती है. इस ज्योतिर्लिंग के निकट ही भीमा नामक नदी बहती है. इसके अतिरिक्त यहां बहने वाली एक अन्य नदी कृ्ष्णा नदी है. दो पवित्र नदियों के निकट बहने से इस स्थान की महत्वत्ता ओर भी बढ जाती है. 

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है. धर्म पुराणों में भी इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता है. इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के समस्त दु:खों से छुटकारा मिलता है. इस मंदिर के विषय में यह मान्यता है, कि जो भक्त श्रद्वा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर होते है. तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग स्वत: खुल जाते है.

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है. पास में ही बहती भीमा नदी इसके सौन्दर्य को बढाती है. महाशिवरात्री या प्रत्येक माह में आने वाली शिवरात्री में यहां पहुंचने के लिए विशेष बसों का प्रबन्ध किया जाता है. 

इसके अतिरिक्त भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों का एक अन्य पौराणिक मान्यता भी है, कि जो व्यक्ति सुबह स्नान और नित्यकर्म क्रियाओं के बाद प्रात: 12 ज्योतिर्लिगों का नाम जाप भी करता है. उसके सभी पापों का नाश होता ह

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का नाम भीमा शंकर किस कारण से पडा इस पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा महाभारत काल की है. महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के मध्य हुआ था.  इस युद्ध ने भारत मे बडे महान वीरों की क्षति हुई थी. दोनों ही पक्षों से अनेक महावीरों और सैनिकों को युद्ध में अपनी जान देनी पडी थी. 
इस युद्ध में शामिल होने वाले दोनों पक्षों को गुरु द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था. कौरवों और पांडवों ने जिस स्थान पर दोनों को प्रशिक्षण देने का कार्य किया था. वह स्धान है. आज उज्जनक के नाम से जाना जाता है. यहीं पर आज भगवान महादेव का भीमशंकर विशाल ज्योतिर्लिंग है. कुछ लोग इस मंदिर को भीमाशंकर ज्योतिर्लिग भी कहते है. 
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है. शिवपुराण में कहा गया है, कि पुराने समय में भीम नाम का एक राक्षस था. वह राक्षस कुंभकर्ण का पुत्र था. परन्तु उसका जन्म ठिक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था. अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी. समय बीतने के साथ जब उसे अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया.   

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया. वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया. उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी देवताओ भी भयभीत रहने लगे.  

धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी. युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारम्भ कर दिया.    

जहां वह जाता मृ्त्यु का तांडव होने लगता.  उसने सभी और पूजा पाठ बन्द करवा दिए. अत्यन्त परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए.

भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया की वे इस का उपाय निकालेगें.  भगवान शिव ने राक्षस को नष्ट कर दिया. भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रुप में विराजित हो़.  उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया. और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रुप में आज भी यहां विराजित है.
[19/09 12:25 pm] P alok. ji: 🍃🍃🍃🍃🌹🌹🍃🍃🍃🍃
भद्रं कर्णेभि: शृणुयाम देवा:
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा: ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभि:
व्यशेम   देवहितं   यदायु  ॥

हे देवताओं ! हम अपने कानो द्वारा कण्याणकारी वचन सुने,पूजन योग्य हे देवताओं ! हम अपनी आँखों द्वारा अच्छे तथा सुन्दर स्वरूपो को देखे । बलशाली अंगो से संपन्न शरीरवाले, हम आपकी स्तुति करते-करते देवता (प्रजापति) द्वारा निर्मित दीर्घ आयु प्राप्त करने योग्य बनें ।।
                    🌹सुप्रभातम्🌹

                 🌻जय श्रीकृष्ण 🌻

         💐आपका  दिन मंगलमय हो💐

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