मां भारती के १७ वीर सहीद पुत्रों को हृदय की आखिरी सतह से नमन करता हूं |एवं परम पिता परमेश्वर से कमाना करता हूं कि वीर वसुंधरा के अमर सहीदों के परिजनों को इस संकट की घड़ी में उन्हें साहस प्रदान करें |सहीद भाइयों की श्रंद्धाली में कुछ पंक्तियां अर्पण करता हूं |
दरवाजे की चौखट पर
राह तकती,
वो दो मासूम नजरें,
वो तुतलाती-सी बोली, भाव नयन में थमे-थमे से,
वो सीने से उठता ज्वार, खड़े पांव जमे-जमे से।
छाया देता कल्पवृक्ष,
गोदी का आश्वासित बचपन,
जीवट था उसका नायक,
सवाल पूछता भोला मन।
उसके कंधों पर चढ़कर, चांद को छूने जाना है,
बता दे मेरी मां, मेरे जीवनदाता को कब आना है ?
दरवाजे की चौखट पर
राह तकती, वो दो निगाहें,
अपनी सिलवटों का दर्द बयां कर रही है,
हर लम्हा पदचाप की सुधियां तलाश रही हैं।
कलेजा हथेली पर, सांसे घूमी-फिरी सी,
तारीखें मौन पसराए,आशाओं में झुरझुरी सी।
सूखे आंसू और दिलहाहाकार कर रोता है,
जब तिरगें में लिपटा,
किसी जवान का जनाजा होता है ! जय हिन्द जय जवान ||
*पं.मंगलेश्वर त्रिपाठी*
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