Wednesday, September 28, 2016

भारतीय हिन्‍दुधर्म की मान्‍यतानुसार पितृ दोष

भारतीय हिन्‍दुधर्म की मान्‍यतानुसार पितृ दोष एक ऐसी स्थिति का नाम है, जिसके अन्‍तर्गत किसी एक के किए गए पापों का नुकसान किसी दूसरे को भोगना पडता है।

उदाहरण के लिए पिता के पापों का परिणाम यदि पुत्र को भोगना पडे, तो इसे पितृ दोष ही कहा जाएगा क्‍योंकि हिन्‍दु धर्म की मान्‍यता यही है कि पिता के किए गए अच्‍छे या बुरे कामों का प्रभाव पुत्र पर भी पडता है। इसलिए यदि पिता ने अपने जीवन में अच्‍छे कर्म की तुलना में बुरे कर्म अधिक किए हों, तो मृत्‍यु के बाद उनकी सद्गति नहीं होती और ऐसे में वे प्रेत योनि में प्रवेश कर अपने ही कुल को कष्ट देना शुरू कर देते हैं। इसी स्थिति को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।

इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि किसी भी व्‍यक्ति के पूर्वज पितृलोक में निवास करते हैं और पितृ पक्ष के दौरान ये पूर्वज पृथ्‍वी पर आते हैं तथा अपने वंशजों से भोजन की आशा रखते हैं। इसलिए जो लोग पितृपक्ष में अपने पूर्वजों या पितरों जैसे कि पिता, ताया, चाचा, ससुर, माता, ताई, चाची और सास आदि का श्राद्ध, तर्पण, पिण्‍डदान आदि नहीं करते, उनके पितर अपने वंशजों से नाराज हाेकर श्राप देते हुए पितृलोक को लौटते हैं, जिससे इन लोगों को तरह-तरह की परेशानियों जैसे कि आकस्मिक दुर्घटनाओं, मानसिक बीमारियों, प्रेत-बाधा आदि से सम्‍बंधित अज्ञात दु:खों को भोगना पडता है और जिन्‍हें पितृ दोष जनित माना जाता है।

साथ ही ऐसी भी मान्‍यता है कि जो लोग अपने पूर्वजन्‍म में अथवा वर्तमान जन्‍म में अपने से बडों का आदर नहीं करते बल्कि उनका अपमान करते हैं, उन्‍हें पीडा पहुंचाते हैं, अपने, पूर्वजों का शास्त्रानुसार श्राद्ध व तर्पण नहीं करते, पशु-पक्षियों की व्यर्थ ही हत्या करते हैं और विशेष रूप से रेंगने वाले जीवों जैसे कि सर्प आदि का वध करते हैं, ऐसे लोगों को पितृ दोष का भाजन बनना पडता है।पितृ गण हमारे पूर्वज  हैंजिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि   उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए  किया है | मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है|  आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज  मिलते हैं |अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया |इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार  पर सूर्य लोक की तरफ बढती है |वहाँ से आगे  ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को बेध कर  स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित  होती है |जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता | मनुष्य लोक एवं पितृ लोक  में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश  ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं|

पितृ दोष के संदर्भ में यदि हम धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार बात करें तो जब हमारे पूर्वजों की मृत्‍यु होती है और वे सदगति प्राप्‍त न करके अपने निकृष्‍ट कर्मो की वजह से अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति व असंतुष्टि का अनुभव करते हैं, तो वे अपने वंशजों से आशा करते हैं कि वे उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें जिससे उनका अगला जन्म हो सके अथवा उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके।

मृत्यु के पश्चात संतान अपने पिता का श्राद्ध नहीं करते हैं एवं उनका जीवित अवस्था में अनादर करते हैं तो पुनर्जन्म में उनकी कुण्डली में पितृदोष लगता है. सर्प हत्या या किसी निरपराध की हत्या से भी यह दोष लगता है.पितृ दोष को अशुभ प्रभाव देने वाला माना जाता है.

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