Friday, September 16, 2016

प्रश्नोत्तर

[16/09 11:02 pm] P satyprkash: कृपया इसका भावार्थ पूर्ण हो आप सभी गुरू जनों द्वारा बड़ी कृपा होगी बालक पर🌹🙏🌹
नहि पराग नहि मधुर मधु नहि विकास यहि काल | अलि कली मे लगि रह्यो आगे कौन हुवाल ||☝☝☝☝
[16/09 11:02 pm] P satyprkash: मंगला जी आप का दोहा रीति काल के अंतिम स्तम्भ कविवर विहारी कि रचना सतसई से उधृत है जिसके बारे में कहा जाता है-
सतसइया का दोहरा ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगैं घाव करैं गम्भीर।।
सतसई के दोहे देखने में छोटे हैं जैसे नावक एक प्रकार का तीर जो बहुत छोटा होता हैं लेकिन गहरा गंभीर घाव छोड़ता हैं |उसी प्रकार सतसई के दोहे छोटे हैं लेकिन उनमे अथाह ज्ञान समाहित हैं ।
देखा यह जाता है कि रीति काल के कवि अपने आश्रय दाता राजाओं की प्रसंशा और नायिकाओं के नख शिख कि अतिशयोक्ति पूर्ण सुंदरता के वर्णन से आगे नही बढ़े पाये लेकिन विहारी की सतसई इसके लिए कुछ हद तक अपवाद सावित हुई जिसने छायावाद को अपनी कोख में पाला जिसका जन्म प्रसाद के छायावाद युग में हुआ।
निम्न लिखित दोहे में विहारी अपने आश्रय दाता राजा जय सिंह को आगाह कर रहे हैं जो अपनी 12 वर्षीय विवाहिता रानी के रूप पाश में बंधकर महल के बाहर ही नही निकल रहा है।
नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यहि काल।

अली कली में ही बिन्ध्यो आगे कौन हवाल।।
कविवर बिहारी ने राजा को व्यगं करते हुए यह कहा कि विवाह के बाद वे अपने जीवन में रसमय हो गये हैं और विकास कार्य की तरफ उनका कोई ध्यान नहीं हैं और राजकीय कार्य से भी दूर हैं ऐसे मैं कौन राज्य भार सम्भालेगा |
(श्लेष अलंकारः अली = राजा, भौंरा; कली = रानी, पुष्प की कली)
कहते हैं कि बात राजा की समझ में आ गई और उन्होंने फिर से राज्य पर ध्यान देना शुरू कर दिया। जयसिंह शाहजहाँ के अधीन राजा थे। एक बार शाहजहाँ ने बलख पर हमला किया जो सफल नही रहा और शाही सेना को वहाँ से निकालना मुश्किल हो गया। कहते हैं कि जयसिंह ने अपनी चतुराई से सेना को वहाँ से कुशलपूर्वक निकाला है |

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