Sunday, February 12, 2017

हमलोग आजकल अपनी वेश-भूषा में

हमलोग आजकल अपनी वेश-भूषा में, बातचीत के लहजे में, आचार-व्यवहार में पारिवारिक सम्बन्धों को निभाने में, बहुत बेशर्मी के साथ पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करने लगे हैं। (चरण-स्पर्श को घुटना-छूने जे तरीके में बदल देना, माँ -पिताजी को 'मम्मी-पापा' कहना, उनके लिये 'ओल्ड एज होम' आदि बनवाना चाचा,फूफा,मौसा -चाची, बुआ,मौसी के लिये 'अंकल-आंटी'  कहना, आदि ) हमलोग शुद्ध हिन्दी तो नहीं बोल पाते किन्तु अंग्रेजी बोलने और अंग्रेजी ढंग से 'Birth Day' गीत गाने सीखने के स्कूल खोलते हैं। हमारे पास शब्दों की गरीबी इतनी है कि हमलोग थोड़ी देर के लिए भी भारत के किसी भी भाषा में भाषण नहीं कर सकते हैं, चेष्टा करने से भी विदेशी  भाषा के शब्द बीच में आ ही जाते हैं। किन्तु इस प्रकार हम किसी नई ' भारतीय-संस्कृति ' का निर्माण नहीं कर सकते। यदि हमलोग शिक्षा प्रचार के साथ साथ संस्कृति प्राप्त करने की अनिवार्यता को थोडा भी समझते हैं, तो हमें यह समझना पड़ेगा कि हमलोग किस बुनियाद के उपर अपनी संस्कृति का निर्माण कर सकते हैं ? इसका गहराई से चिन्तन करने पर हम देखेंगे कि इसके लियेपाश्चात्य जगत की ओर न देखकर हमें अपने गौरवशाली अतीत की ओर ही निहारना पड़ेगा। 
आप सब "अपनी दृष्टि को प्राचीन भारत के महिमामय अतीत पर केन्द्रित करके देखो, तुमको कितनी गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत प्राप्त है, तुम कितने गौरवशाली अतीत के अधिकारी हो, तुम्हारे पूर्वजों ने कितना बड़े ज्ञान का भण्डार तुम्हारे लिये रख छोड़ा है !पहले उसको समझने की चेष्टा करो !"

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