Wednesday, July 6, 2016

परमात्मा ने पंचतत्वों से निर्मित

परमात्मा ने पंचतत्वों से निर्मित इस काया में इतनी अगणित संभावनाएं भर कर रख दी है कि यदि उनका विवेक-पूर्वक उपयोग किया जाये तो सामान्य स्थिति में प्राप्त किये जाने वाले लाभों, सफलताओं और उपलब्धियों से अनन्त गुना अधिक लाभ तथा सफलताएं प्राप्त की जा सकती हैं। किसी के पास प्रचुर धन-सम्पदा हो, आर्थिक दृष्टि से कोई कितना ही सम्पन्न क्यों न हो, किंतु यदि वह मनमाने तरीके से अस्त-व्यस्त और बिना सोचे समझे उसे खर्च करता रहे तो अंततः आर्थिक संतुलन का बिगड़ना निश्चित ही है। इसी प्रकार मनुष्य उपलब्ध शक्ति को आवश्यक अनुपयोगी कार्यों में खर्च करता रहता है और बाद में उपयोगी आवश्यक कार्यों के लिए शक्ति लगाने में वह प्रायः असमर्थ ही रह जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनुष्य के पास जितनी मात्रा में शारीरिक और मानसिक शक्ति उपलब्ध है, यदि उसे ढंग से प्रयोग में लाया जाय तो आमतौर पर लोग जितना काम करते हैं, कम से कम उसका दूना काम तो किया ही जा सकता है।
इस तथ्य से सभी अवगत हैं कि मनुष्य की अधिकाँश शक्तियाँ व्यर्थ के कार्यों में खर्च होती है और सभी जानते हैं कि जितना कुछ करने की क्षमता अपने पास है, उससे अधिक कुछ किया जा सकता है। प्रश्न उठता है कि पर्याप्त शक्ति-सामर्थ्य होते हुए भी मनुष्य अपनी आसक्ति और दुर्बलता के कारण क्यों वाँछित सफलताएं प्राप्त नहीं कर सकता ? होता यह है कि उपयोगी प्रयोजनों में जितनी शक्ति खर्च होती है, उससे कहीं अधिक उसकी शक्ति निरर्थक कामों में खर्च होती रहती है। यदि तनिक सतर्कता से काम लिया जाये तो इस अनावश्यक अपव्यय को बचाया जा सकता है और ऐसे कार्यों में लगाया जा सकता है, जिनसे कुछ उपयोगी प्रयोजन सधता हो।
व्यर्थ में बिना किसी कारण, बिना किसी आवश्यकता के लोग बक-झक करते रहते हैं। इस प्रकार जिह्वा के माध्यम से जितनी शक्ति नष्ट होती है, लोग उसका मूल्याँकन नहीं कर पाते। वे यह भूल जाते हैं कि क्रिया चाहे कोई भी क्यों न हो, उसके लिए ऊर्जा चाहिए और उसे जुटाने में कोशिकाओं का ईंधन जलेगा ही। इस तरह शक्तियों को अनावश्यक रूप से नष्ट करना उनका अपव्यय करना ही तो है। इस प्रकार शक्ति का ऐसा महत्वपूर्ण कोश, जिसे यदि उपयोगी, योजना बद्ध कार्यों में लगाया जाये, तो उतने से ही प्रगति की दिशा में काफी दूर तक आगे बढ़ जा सकता है। सतर्कता बरत कर शक्ति की यह थोड़ी-थोड़ी बचत और उसे उपयोगी कार्यों में लगाने की प्रवृत्ति ही बूँद-बूँद करके घड़ा भरने की उक्ति को चरितार्थ करती हुई, जीवन को महान बनाने वाली सफलताओं में परिणत होती है।
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"धर्मार्थ वार्ता समाधान संघ"
पं. मंगलेश्वर त्रिपाठी✍

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